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झाँसी से क़रीब १५०किलोमीटर और कानपुर से लगभग
इतनी ही दूर है महोबा। इस कस्बानुमा शहर को देख कर सोच भी नहीं सकते कि यह अपने
अतीत में इतिहास की विशाल धरोहर समेटे है। एक समय था जब महोबा की संपन्नता और
समृद्धि दिल्ली से होड़ लेती थी। या यह कहिए कि दिल्ली इसकी वैभवता के सामने टिक
सकती थी।
ये है उस देस और राज का परिचय-
"उस विश्रुत जुझौती में
वेत्रवती-तीर पर, नीर धन्य जिसका,
गंगा-सी पुनीत जो, सहेली यमुना की है,
किंतु रखती है छटा दोनों से निराली जो।
जिसमें प्रवाह है, प्रपात हैं और हृद हैं,
काट के पहाड़ मार्ग जिसने बनाए हैं,
देवगढ़-तुल्य तीर्थ जिसके किनारे हैं।
देव श्री मदनवर्मा सदन सुकर्मों के राजा हैं,
राजधानी है महोबे में।
वही मदनवर्मन जिसको सवाई जयसिंह सिद्धराज "देखता था विस्मय से श्रद्धा से भोगी है
मदनवर्मा किंवा एक योगी है।"
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