कुत्ता |
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कुत्ता एक ऐतिहासिक प्राणी है। कुत्ते ने इंसान को 'इंसान' बनाया। यह बात आपको अबूझी-सी लग सकती है पर कम से कम मेरा तो यही मानना है। कहते हैं जब इंसान सभ्य हुआ तो पहला काम उसने यह किया कि उसने कुत्ते को पालतू बनाया। मेरा ख़याल यह है कि जब इंसान ने कुत्ते को पालतू बनाया तब वह सभ्य कहलाया। इंसान के साथ रहने से कुत्ता भी सभ्य हो गया। इंसान के प्राकृतिक गुण वफ़ादारी को उसने अपना गुण बना लिया। यह अलग की बात है कि इंसान जिसे भूल गया उसे कुत्ते ने याद रख लिया। यह कुत्ते की महानता थी जिससे इंसान कुछ नहीं सीख पाया। कुत्ते के साथ कुत्तागिरी का भी अपना इतिहास रहा है। कुत्तागिरी के अनेक पहलू हैं। पहले कुत्ता इंसान के लिए लड़ता था बाद में वह आपस में ही लड़ने लगा अपने लिए। यह गुण उसने इंसान से सीखा। कालांतर में कुत्ते की लड़ाई की गुणवत्ता इंसान की लड़ाई से कहीं अधिक हो गई। यह बात इंसान के लिए असह्य थी। वह कुत्ते से आगे निकलने की सोचने लगा और अंतत: आगे निकल ही गया। दरअसल इंसान जिससे भी आगे निकलना चाहे निकल सकता है। वह कुत्ते से भी आगे निकल गया। रोटी के लिए अपने मालिक के आसपास दाँत निपोड़े, हिलने-डुलने की कला आख़िर उसने कहाँ से सीखी? हाँ, यह अलग ही बात है कि उसने अपनी इस कला को इतना निखारा कि आप कह नहीं सकते कि यह कला कुत्ते के संसार द्वारा मानव को दी गई एक अनुपम भेंट है। लेकिन एक बात का दु:ख उसे सब दिन रहा। यह दु:ख उसे अब भी सालता रहता है कि कुत्तागिरी करते हुए कुत्ता अपनी पूँछ भी हिला सकता है और वह नहीं। जैसे संज्ञा सर्वनाम विशेषण आदि के अनेक प्रकार होते हैं ठीक उसी तरह कुत्ते के भी अनेक प्रकार होते हैं। पहले कुत्ते को केवल 'कुत्ता' कहकर बुलाया जाता था पर बाद के दिनों में उसे भी कुछ न कुछ नाम दिया गया और उसी नाम से उसे पुकारा जाने लगा। अब की स्थिति यह है कि यदि आप किसी के कुत्ते को उसका नाम लेकर न पुकारें तो उस कुत्ते का मालिक आपसे नाराज़ हो जाने वाला है, पर छोड़िए, मैं तो कुत्ते के प्रकार की चर्चा कर रहा था। मेरे वर्गीकरण का आधार कम से कम उसका नाम तो नहीं ही है। मैं कुत्ते को उसके रूप और उसके गुण या उसकी प्रकृति के आधार पर दो प्रमुख भागों
में बाँटना चाहूँगा। रूप के हिसाब से भी वे अनेक तरह के हैं- दूसरे वे हैं जिन्हें देखते ही उच्च वर्ग का ख़याल हो आता है। वे आम इंसानों से अधिक अच्छे घरों में रहते हैं। वे कुछ ख़ास इंसानों के साथ जीते हैं। सुबह-शाम वे टहलने निकलते हैं। यदा-कदा बीमार पड़ जाने पर उनके ख़ास चिकित्सक उन्हें देखने आते हैं। उनके खानेपीने का स्तर काफ़ी अलग होता है। मैंने कई लोगों को यह कहते सुना है कि उसका 'वो' ये चीज़ें खाता है और वे चीज़ें नहीं। ऐसा कहते हुए वे गर्व का अनुभव करते हैं। उच्चवर्गीय कुत्तों ने अपने स्वरूप को अनेक आयाम दिए हैं- कुछ बहुत बड़े हैं तो कुछ बहुत छोटे। प्रवृत्ति के हिसाब से कुत्तों का अभूतपूर्व विकास हुआ है। इंसान के साथ रहते हुए कुछ तो अपने को कुत्ता ही नहीं समझते। उसका अपना अहंकार होता है। उसकी अपनी चाल होती है। वे आपकी तरफ़ देखेंगे तो कुछ इस तरह जैसे यह उनकी कृपा है कि वे आपको देख रहे हैं। ख़ासकर यदि वे अपने मालिक के साथ हैं तो कुछ इस तरह का ऐक्शन करेंगे कि यदि उसका मालिक ही किसी को नहीं देख रहा है तो उसे वह क्या देखेगा। वे न तो भौंकते हैं और न ही काटते हैं। वे कुत्तों में अपने को आर्य समझते हैं। उनकी मानसिक स्थिति उस समय किसी राजकुमार से कम नहीं होती जब वह अपनी 'टीन एज़' मालकिन के साथ भ्रमण कर रहा होता है। यह देख जहाँ अन्य जलते हैं वह मंद-मंद मुस्कराता रहता है। वह जान रहा होता है कि जो अपनी नज़रों से भी किसी को नहीं छूती उसका वह सद्य: स्पर्श पाता है। सफ़र के समय कार की पिछली सीट में धँसी अपनी मालकिन की गोद में विश्राम करना उसे सुहाता है। कुछ कुत्तों की प्रवृत्ति केवल भौंकने की होती है। वे आपको काटते नहीं। काटना उसके
लिए एक ऐसा कर्म है जिसे नीच कुत्ते किया करते हैं। इस अर्थ में वे अपने को अन्य से
श्रेष्ठ समझते हैं। कुछ कुत्तों की प्रवृत्ति केवल काटने की होती है। अक्सर वे पुलिस में भर्ती हो जाते हैं। उनका अपना स्वाभिमान होता है कि वे देश और समाज की सेवा कर रहे हैं और वह भी मनुष्य के देश की और मनुष्य के समाज की। उन्हें इस बात का भी गर्व होता है कि वे उस काम को अंजाम देते हैं जिसे मनुष्य नहीं कर सकते। ईश्वर की तरफ़ से प्राप्त सबसे अनूठे उपहार अपनी घ्राणशक्ति का भी सबसे अधिक उपयोग वे ही करते हैं। उन्हें अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता है। अन्य कुत्ते भी उन्हें बड़े ही आदर और सम्मान से देखते हैं। पर अंतत: उन्हें वह सुख नसीब नहीं होता जो अन्य उच्चवर्गीय कुत्तों को प्राप्त होता है। इसका उन्हें कतई दु:ख नहीं क्योंकि कर्तव्यपरायणता के बुखार का अपना ख़ास तापमान होता है और इस ख़याल का अपना सुख होता है। 'वे' स्वाभिमानी 'इन' आरामपसंदों को भ्रष्ट ही नहीं पथभ्रष्ट कहकर संबोधित करते हैं। कुछ केवल काटने वाले कुत्ते गलियों में भी भटकते मिल जाते हैं जिन्हें पागल करार
दिया जाता है और जिनके पीछे मोहल्ले के तमाम बच्चे, बूढ़े और जवान लोग कुत्ते की
तरह पड़े रहते हैं। कुछ कुत्ते फ़कीर किस्म के होते हैं। संतनुमा उनका स्वभाव होता है। जब चाहें वे घूमें जब चाहें वे विश्राम करें। इस दुनिया से उनका मोहभंग हो चुका होता है। विरक्ति का भाव लिए वे घूमते रहते हैं। वे आपको बिरले दिखाई पड़ेंगे। लेकिन आम कुत्तों को इसकी ख़बर रहती है कि उनके संत कब कहाँ हो सकते हैं। लड़ने-झगड़ने और आवारागर्दी करने से अन्य कुत्तों को जब फ़ुर्सत मिल जाती है तब वे अपने संत के पास शांति की तलाश करने पहुँच जाते हैं। वे वहाँ ईश्वर प्राप्ति की कामना तो करते ही हैं साथ ही यह भी कामना करते हैं कि कभी उनका मनुष्य जन्म न हो। उनके गुरु प्रवचन में कहते हैं कि मनुष्य आज किस तरह उनकी जाति से भी अधिक नीचे गिर गया है। एक बार एक शिष्य कुत्ते ने कुछ मनुष्यों को आपस में लड़ते देखकर अपने गुरु से पूछा था "यह क्या हो रहा है गुरुदेव?" गुरुदेव ने गंभीर भाव से कहा था "छोड़ो भी वत्स, कुत्ते हैं वे। लड़ना उनका स्वभाव हो गया है। तुम तो अपने साधना पथ पर अग्रसर होते रहो।" भगवान बुद्ध को जब ज्ञान की प्राप्ति हुई तब किसी ने उनसे पूछा था "भंते, क्या आप बताएँगे कि भगवान कहाँ है?" बुद्ध ने मुस्कराते हुए करुणा भरी आँखों से चारों ओर देखा जिसका अर्थ था कि भगवान कहाँ नहीं है। एक बार मुझे प्रसिद्ध नर्तक बिरजू महाराज का नृत्य देखने का मौक़ा मिला मिरांडा हाऊस दिल्ली में। मिरांडा हाऊस के सभागार का भीतरी भाग नक्काशीकृत है। अपने प्रारंभिक वक्तव्य में उन्होंने कहा था,"इन नक्काशियों में भी मुझे नृत्य की लय दिखाई पड़ती है।" मैं सोचता हूँ कि चेतना के स्तर पर एक समय आता है जब हर जगह 'वही' दिखाई पड़ता है। मेरे साथ एक अजीब दुर्घटना घट गई है। मुझे हर कुत्ते में एक इंसान नज़र आता है और हर इंसान में एक कुत्ता। 24 जुलाई 2005 |