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रचना प्रसंग– ग़ज़ल लिखते समय–१८

मराठी ग़ज़लों में छंद भाग–२
रामप्रसाद शर्मा महर्षि

 

श्री धेंडे द्वारा उर्दू बहरों में रचित उनकी मराठी ग़ज़लों से संबंधित बहरों के नाम, उनके वज़न (मीटर) तथा पंक्तियों की तक्ती (विखंडन) के उदाहरण, भाग–१ में दिए जा चुके हैं। उनकी शेष ग़ज़लें हिंदी छंदों में हैं, जो निम्नानुसार हैं–
१) आज जाहले, स्मरण गझलचे
२) एक चूक मी, केली भारी
३) घडू नये तो, घडू लागले
४) गरीब जनता, भोळी आहे

प्रत्येक पंक्ति की मात्राओं का योग १६ होने के कारण, ये सभी पंक्तियां चौपाई छंद के अंतर्गत आती हैं। तर्ज़ भी इनकी चौपाई जैसी ही है।
१) मी दुःखाला हास, म्हणालो, चुकलो सॉरी
२) एकांताची शाल, पांघरून, बसलो होतो
३) जरी बहुशः जीवनात बेसूर जाहलो

प्रत्येक पंक्ति की मात्राएँ का योग ११ .१३ पर यति से २४ होता है, जैसा कि इन पंक्तियों वाली ग़ज़लों की निम्नलिखित पंक्तियों से अधिक स्पष्ट है–
१) केबल, टी वी मध्ये, हर पले आज बालपण
११ : १३ =२४
२) मी मौनाची साद, ऐकुनी फसलो होतो
११ : १३ =२४
३) मात्र पाहता क्षणी, तिला संतूर जाहलो
११ : १३ =२४
अतः ये सभी पंक्तियां तथा इनसे संबंधित तीनों ग़ज़लें 'रोला' छंद में रचित हैं, जैसे – अबला जीवन हाथ, तुम्हारी यह कहानी/आंचल में है दूध आंखों में पानी।
१) उधळून शब्द का द्यावे, रचनेचे जोडु न त्यांनी
इस पंक्ति में १४ : १४ =२८ मात्राएँ होती हैं।
जैसे – जो घनीभूत पीड़ा थी/ मस्तक में स्मृतिसी छाई(जयशंकर प्रसाद)
१) हे असेच जगता जगता, मरणार वाटते आम्ही
इस पंक्ति की मात्राओं का योग १४ : १४=२८ है। १६: १२ =२८ होने पर यह 'सार' छंद होता, चरणांत में दो गुरू (ऽऽ) भी हैं। अतः यह पंक्ति 'योगिक' जाति के किसी अन्य भेद के अंतर्गत आती है। (सार छंद : तट पर खड़ा गगन गंगा के, मधुर गीत गाता है १६ : १२=२८) मराठी पंक्ति की लय सार छंद की इस हिंदी पंक्ति से मिलती–जुलती–सी ही है।
१) जगण्या साठी मरणाचा, आधार वाटतो मला तरी
२) मला वाटतो, लिहावीच या मरणावर्ती एक गझल
३) धरणी झाली विकून सारी, चला विकू पाताळ आता

इन पंक्तियों की लय, राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त द्वारा रचित इस पद्यांश के समान है, – चारू चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल–थल में – जो 'ताटंक' छंद, प्रति चरण १६ : १४=३० मात्राओं के अंतर्गत आता है। ८ : ८ : ८ : ६ =३० मात्राओं वाला छंद 'महातैथिक' जाति का एक अन्य भेद 'रूचिरा' छंद के नाम से जाना जाता है। उपर्युक्त तीनों पंक्तियां 'ताटक' छंद में ही रचित प्रतीत होती हैं।

श्री धेंडे ने 'सवाल' शीर्षक के अंतर्गत एक मुस्तज़ाद ग़ज़ल भी अपने ग़ज़ल संग्रह 'बासरी में शामिल की है। ('मुस्तज़ाद' अर्थात 'अतिरिक्त') यह एक कला है, जिसके द्वारा ग़ज़ल की प्रत्येक पंक्ति के अंत में एक छोटा–सा वाक्य और जोड़ दिया जाता है, जैसा कि श्री धेंडे ने अपनी इस ग़ज़ल में किया है, उदाहरणार्थ –

पंक्ति (मुस्तज़ाद)
भलते सलते सवाल आता नको विचारू/मला कुणीही (अति : मला कुणीही)
अभ्या जगाची गजाल आता नका विचारू/मला कुणीही (अति : मला कुणीही)
शांत सागरी नाव बुडाली, कशी अचानक/गूढ कथानक (अति : गूढ कथानक)
सांगितले तर हसाल आता नका विचारू/ मला कुणीही (अति : मला कुणीही)

यदि इन अतिरिक्त(मुस्तज़ाद) वाक्यों को निकाल भी दें, तो भी ग़ज़ल अपने आप में संपूर्ण रहती है, यह मुस्तज़ाद ग़ज़ल की विशेषता है।

अतः इस ग़ज़ल के छंद पर विचार, इसके अतिरिक्त वाक्यों को निकाल कर ही, करना होता है, अर्थात 'भलते सलते सवाल आता, नका विचारू' तथा ग़ज़ल की ऐसी ही अन्य पंक्तियों पर हिंदी मात्रा गणना :
भलते सलते सवाल आता ।।ऽ।।ऽ।ऽ।ऽऽ = १६ मात्राएँ
नका विचारू ।ऽ।ऽऽ = ८ मात्राएँ कुल योग २४ मात्राएँ
(ऽ=२ मात्राएँ, ।= एक मात्रा)

अतः चौबीस–मात्रिक यह पंक्ति 'अवतारी' जाति के एक भेद (छंद) के अंतर्गत आती है। (अतिरिक्त वाक्य 'मुस्तज़ाद' की मात्राओं की गणना नहीं की जाती)

१) लिहिल्या गझला सुरा सुंदरी, ।।ऽ।।ऽ।ऽऽ।ऽ = १६ मात्राएँ
वा परीवरी ।ऽ।ऽ।ऽ = ८ मात्राएँ कुल योग २४ मात्राएँ

एक अन्य ग़ज़ल की यह पंक्ति भी १६ : ८=२४ मात्राओं की होने के कारण 'अवतारी' जाति के अंतर्गत ही आती है।
१) मी सवाल केला साधा, कोण भ्रष्ट नाही
एक अन्य ग़ज़ल की यह पंक्ति निम्नलिखित संस्कृत वर्ण–वृत के अंतर्गत आती है–
ऽ।ऽ, ।ऽऽ, ऽऽऽ, ।ऽ। और ऽऽ (रगण, यगण, मगण, जगण और दो गुरू)

अर्थात इस प्रकार–
मी स वा, ल के ला, सा धा को, ण भ्र ष्ट ना ही
ऽ । ऽ । ऽ ऽ, ऽ ऽ ऽ, । ऽ । ऽ ऽ

यह वर्ण–वृत, चौदह–अक्षरीय होने के कारण 'शक्करी' जाति का एक भेद है। इसका मात्रिक, रूप २४ मात्रिक होने के कारण, 'अवतारी' जाति का एक अन्य भेद है–
मी सवाल केला साधा ऽ।ऽ।ऽऽऽऽ = १४ मात्राएँ
कोण भ्रष्ट नाही ऽ।ऽऽऽ =१० मात्राएँ कुलयोग २४ मात्राएँ

मात्रिक छंदों में लघु–गुरू वर्णों को पंक्तियों में कहीं भी लाने की स्वतंत्रता है, जब कि वर्ण–वृतों में लघु–गुरू वर्णों का क्रम सुनिश्चित एवं सुव्यवस्थित होता है, अतः हिंदी में केवल मात्रिक छंद ही प्रयोग में आते हैं।

श्री धेंडे के प्रस्तुत ग़ज़ल–संग्रह में पचास मराठी ग़ज़लें संग्रहीत हैं, जिनमें से ५३ उर्दू बहरों में हैं तथा १५ मात्रिक–सम–छंदों में। इन पचास छंदों के विवरणों से मराठी 'भाषी ही नहीं', अब अन्य भाषाओं में ग़ज़लें रचनेवाले ग़ज़लकार भी लाभान्वित हो सकते हैं, यही इस ग़ज़ल–लेखमाला का उद्देश्य है। ग़ज़लों का, चाहे वे किसी भी छंद अथवा बहर में हों, सही छंदोबद्ध होना परमावश्यक है, ताकि उसकी गेयता बनी रहे क्योंकि ग़ज़ल एक गेय कविता है, जो उसका गुण विशेष है। ग़ज़ल पद्य की तरह पढ़ी जाती है, गद्य की तरह कदापि नहीं। मुशायरों में जो ग़ज़लें तरन्नुम से न पढ़ी जाकर 'तहत' में पढ़ी जाती हैं, उनमें भी अपनी ही पद्यात्मकता होती है, जो बहुत ही प्रभावी बन पड़ती है। छंद और लय एक दूसरे के पूरक है। तथा कथ्य एवं शिल्प उनसे जीवंत हो उठते हैं, उनमें लालित्य का संचार हो जाता है, गंभीरतम विषयों में भी रोचकता आ जाती है। अतः ग़ज़लों में छंदों के महत्व को किसी प्रकार भी नकारा नहीं जा सकता, चाहे वे, श्री धेंडे के कथनानुसार, 'सुधारवादी ग़ज़लें' ही क्यों न हों। उनकी सभी ग़ज़लें, परंपरागत विषयों से दूर हटकर, सुधारवादी प्रकार की ग़ज़लें हैं, जिन्हें सुरूचिपूर्ण बनाने में बहरों और छंदों का पूरा–पूरा योगदान है।


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२४ अगस्त २००५

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