| 
                    श्री  
					घनश्याम धेंडे, पुणे निवासी, एक स्थापित मराठी ग़ज़लकार हैं। 
					उनके बासरी ग़ज़ल–संग्रह में उनकी पचास मराठी ग़ज़लें संग्रहीत 
					हैं। उनके अनुसार– "ग़ज़ल कानों को मीठा लगने वाला 
					काव्य–प्रकार है और मराठी में आज उसे बहुत ही पसंद करते हैं। 
					कई लोगों ने उस पर विस्तार पूर्वक लिखा है। फारसी, उर्दू से 
					लेकर मराठी तक का उसका सफ़र, ग़ज़ल के रचना–तंत्र इत्यादि 
					विषयों पर अलग–अलग किताबें लिखी गईं हैं। डॉ .अविनाश कांबळे ने 
					'ग़ज़लधारा' तथा 'मराठी ग़ज़ल–१९२०–१९८५', दोनों पुस्तकों में, 
					ग़ज़ल के विषय में अभ्यासपूर्ण विवेचन किया है। इन से हमें 
					ग़ज़ल के अंतरंग को पहचानने में मदद मिलती है। माधव ज्युलियन 
					ने भी ग़ज़ल की पहचान कराई है। सुरेश भट मराठी ग़ज़ल के उस्ताद 
					हैं। महाराष्ट्र में मराठी ग़ज़लकारों की एक पीढ़ी तैयार हो गई 
					है। इस ग़ज़ल के संप्रदाय में श्री म .भा .चव्हाण, सौ .संगीता 
					जोशी, श्री अनिल कांबले, श्री इलाही जमादार, दीपक करंदीकर, 
					अरविंद भुजबल, मलिक नदाफ़ का विशेष योगदान रहा है।" (मराठी से 
					अनुवाद : मो .मरियम ग़ज़ाला द्वारा) 
                    
                     
                    
                    श्री धेंडे ने दुष्यंत कुमार के ग़ज़ल–संग्रह 'साये में धूप' 
					तथा मौलाना अल्ताफ हुसेन 'हाली' की पुस्तक 'मुकद्दमा–ए 
					शे'रो–शायरी' को गंभीरता से पढ़ा है और उनकी सुधारवादी ग़ज़लों 
					के प्रति, प्रतिबद्धता से प्रभावित है। श्री धेंडे की ग़ज़लों 
					में भी यह प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। विशेष रूप से 
					उन्होंने अपने उपर्युक्त ग़ज़ल–संग्रह में एक ग़ज़ल के माध्यम 
					से ग़ज़ल का व्याकरण लिखने का भी प्रयास किया है–
                    
                     
                    लगक्रम, छंद, बहर, गण, मात्रा'वृत–दोष' हे मरण गझलचे
 गुरूविन ज्ञान कसे लाभावे?
 'इस्ला' हे संस्करण गझलचे
 (लगक्रम = लघु–गुरू का क्रम, इस्ला = इस्लाह (संशोधन)
 
                    इस ग़ज़ल–लेखमाला का विषय–विशेष मराठी ग़ज़लों में छंदानुशासन 
					है, जिसके लिए श्री धेंडे का यह ग़ज़ल–संग्रह बहुत ही उपयुक्त 
					है। उन्होंने अपनी ग़ज़लों के लिए हिंदी छंदों तथा उर्दू 
					बहरों, दोनों ही का चयन किया है। उनके इस चयन से यह भी ज्ञात 
					होता है कि मराठी में किन बहरों और छंदों का चलन है। अतः श्री 
					धेंडे की ग़ज़लों को सामने रखकर, इस आलेख में उनके छांदिक पक्ष 
					को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, ताकि अन्य भाषाओं में 
					ग़ज़लें रचनेवाले ग़ज़लकार भी उससे लाभान्वित हो सकें।                     बहरे–मज़ारे का एक भेद – ऽऽ।, 
					ऽ।ऽऽ, ऽऽ।, ऽ।ऽऽइस बहर में तेरह(१३) ग़ज़लें रची गई हैं,
 जिनकी एक–एक पंक्ति निम्नानुसार है–
 (१) जर वाटते तुम्हाला, घनघोर युद्ध व्हावे
 (२) ही जात माणसाला, सोडून जात नाही
 (३) क्रूसावरी मसीहा, का टांगला असावा?
 (४) लावून ढोल ताशा, मिरवीत नेत होते
 (५) डोळे मिटून जो तो, भजनात दंग आहे
 (६) आश्वासने दिलेली, ती पाळता न आली
 (७) खोटयाच भाषणांचा, ज्यांचा सराव आहे
 (८) नेत्यांवर उद्या ही, येईल खास पाळी
 (९) गर्भात रात्रिच्या या, आहे पहाट नक्की
 (१०)फोडून आरशाला, प्रतिबिंब का पळाले?
 (११)मी आपले म्हणालो, त्यांनीच वार केले
 (१२)ती आग लावणारे, कोणी नवेच होते
 (१३)देवास आज घालू, मी साकडे कशाला
 
                    
                    क्रमांक (१) की तक्ती, अर्थात गुरू–लघु के अनुसार विखंडन–
                    
                     
                    
                   	जर वा ट ते तु म्हा ला घं घो र यु द्ध व्हा वेऽ ऽ । ऽ । ऽ ऽ ऽ ऽ । ऽ । ऽ ऽ
 (ऽऽ।=मफ–ऊ लु, ऽ।ऽऽ=फा इ ला तुन)
 बहरे–रमल सालिम (पूर्णाक्षरी) – ऽ।ऽऽ (फा इ ला तुन) प्रति 
					पंक्ति चार बार
 इस बहर में चार ग़ज़लें रची गई हैं, जिसकी एक–एक पंक्ति 
					निम्नानुसार है,–
 १) वाचते मी, बात मी ही, रोज आता सुप्रभाती
 २) ऐन पन्नाशीत माझे, लेकरांनी हाल केले
 ३) एकले मी ते कधीकाळी बडे सरदार होते
 ४) वाटते मृत्यूत माझ्या जीवनाचा हात आहे
 
                    
                    तक्ती : क्रम (१)वा च तो मी बा त मी ही रो ज आ ता सु प्र भा ती
 ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ
 टिप्पणी : चरणांत में, 'प्र' से पहले लघु वर्ण 'सु' गुरू वर्ण 
					पढ़ा गया।
 
 
                    
                   	बहरे–रमल का एक भेद – ऽ।ऽऽ (फा इ ला तुन) प्रति पंक्ति तीन बारपंक्तियां – (१) वंदना ही घे तुला त्रीवार, भीमा
 (१) भ्रष्ट होती माणसे, का जा विचारा
 (२) काल रोजी मी यमाचा खून केला
 
                    
                   	तक्ती : पंक्ति क्रमांक (३)का ल रो जी मी य मा चा खू न के ला
 ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ
 
                    
                   	बहरे–रमल का एक अन्य भेद – ऽ।ऽऽ (फा इ ला तुन) प्रति पंक्ति दो 
					बारआज भारत बंद आहे
 तक्ती :
 आ ज भा रत बं द आ हे
 ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ
 
                    
                   	बहरे–रमल का एक और भेद : ऽ।ऽऽ, ऽ।ऽऽ, ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ (ऽ।ऽ=फा इ लुन)पंक्तियां :
 (१) देव पीतो चोरूनी, शंका मनी ही दाटली
 (२) घाबराया लागला हो, हा मुलीचा बाप का
 (३) खून मैत्रीचा इथे जेंव्हा पडाया लागला
 (४) काल मरणाला म्हणालो, ये पुन्हा, केव्हातरी
 
                    
                    तक्ती : पंक्ति क्रमांकघा ब रा या ला ग ला हो हा मु ली चा बा प का
 ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ
 
                    
                    बहरे– रज़ज का एक भेदऽ।ऽ, ।ऽ।ऽ, ।ऽ।ऽ, ।ऽ।ऽ
 
                    
                   	पंक्तियां(१) या जगी जगायला, मरायलाच पाहिजे
 (२) भाग्य थोर मानतो, मनातल्या मनात मी
 (३) माणसात आणलेस, माणसात तू भिमा
 (४) या वयात सांगतेस, प्रीत तू करायला
 
                    
                    तक्ती : पंक्ति क्रमांक (१)या जगी ज गा य ला म रा य ला च पा हि जे
 ऽ । ऽ । ऽ । ऽ । ऽ । ऽ । ऽ । ऽ
 (ऽ।ऽ=फा इ लुन, ।ऽ।ऽ=म फा इ लुन)
 
                    
                    बहरे–हज़ज सालिम (पूर्णाक्षरी):।ऽऽऽ (म फा ई लुन चार बार)
 पंक्ति : जसा आहे तसा कोणा 
					कधी मी वाटलो नाहीतक्ती :
 ज सा आ हे त सा को णा क धी मी वा ट लो ना ही
 । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ ऽ
 
                    
                   	बहरे–मुतकारिब (पूर्णाक्षरी):फ ऊ लुन (।ऽऽ) चार बार
 पंक्ति :
 (१) निराले असे, आज कां ही घडावे
 (२) पहा कालचा क्रूर, ढोंगी शिकारी
 तक्ती : पंक्ति क्र . (१)
 नि रा ले अ से आ ज कां ही घ डा वे
 । ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ
 
                   	बहरे–मुतदारिक पूर्णाक्षरीःऽ।ऽ (फा इ लुन) चार बार
 पंक्ति : ना कुठे भिंत वा दार, फुटपाथवर
 तक्ती :
 ना कु ठे भिन् त वा दा र फु ट पा थ वर
 
                    
                    बहरे–मुक्तज़ब का एक भेदः।ऽ।(फ ऊ लु), ऽऽ(फै लुन) दो बार
 पंक्ति : जुनेच सारे दिसावयाचे, नव्याप्रमाणए
 तक्ती :
 जु ने च सा रे दि सा व या चे प्र मा ण सा रे
 । ऽ । ऽ ऽ । ऽ । ऽ ऽ । ऽ । । ऽ
 |