अनुभूति

 24. 10. 2004

आज सिरहानेआभारउपन्यासउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा
घर–परिवारदो पलपरिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
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पिछले सप्ताह

सामयिकी में
विजयादशमी के अवसर पर

मैथिलीशरण गुप्त की रचना

साकेत
 का रेडियो नाट्य रूपांतर
डा प्रेम जनमेजय की कलम से
और
डा शिबन कृष्ण रैणा का निबंध
कश्मीरी काव्य में रामकथा

°

ब्रिटेन में हिन्दी
के अंतर्गत उषाराजे सक्सेना के व्याख्यान
का पांचवां भाग
हिन्दी रचनाएं और रचनाकार

°

आज सिरहाने में
मनोज शर्मा परिचय करवा रहे हैं
देस बिराना से

°

कहानियों में
यू के से दिव्या माथुर की कहानी
फिर कभी सही

कहीं गहरे सोचती तो नेहा को लगता कि वह बसंत के अलावा किसी को चाह ही नहीं पाएगी। 'हां', कहने का मतलब था विष्णु से शादी, शादी का मतलब था विष्णु को पति के रूप में स्वीकारना, यहीं आकर बात बिगड़ जाती। जिस पुरूष को वह प्यार नहीं करती, उसका स्पर्श कैसे झेलेगी? कैसे नकारेगी पतित्व? आदर ही आदर था विष्णु के लिए नेहा के मन में, प्रेम टुकड़ा–भर नहीं। कभी सोचती, शादी कर ले, बाद की बाद में देखी जाएगी। पर नेहा का पति कहां कर पाया था नेहा को प्यार। वह चाहता था किसी और को। मां के कहने पर उसने शादी कर ली, किन्तु गृहस्थी न बसा पाया था वह।
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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से जयनंदन की कहानी
कल्याण का अंत

पता नहीं किस अर्जुन ने या किस राम ने अग्निबाण चलाया कि सौ वर्षों से भी ज्यादा
उम्रवाला कल्याण तालाब सूख गया। कल्याण सूख गया, इससे शायद बहुतों का जीवन
अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुआ होगा लेकिन
प्रत्यक्ष रूप से इससे जो सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, उसका नाम था कोचाई मंडल। कल्याण क्या सूखा जैसे उसके जीवन के सारे स्रोत ही सूख गए। कल्याण उसकी संजीवनी था, कर्म–स्थल था, ऊर्जा–स्रोत था और कुल जमा पूंजी था। अब जब वह नहीं रहा तो मानो उसके पास कुछ भी नहीं रहा . . .जैसे वह उखड़ गया अपनी जड़ से . . .हिल गया अपनी नींव से।

°

प्रकृति और पर्यावरण में
प्रभात कुमार की कलम से
जीवन रक्षक छतरी और गरमी का शीशमहल

°

प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव का आलेख
विश्वजाल पर ज्ञानकोश
विकिपीडिया

°

लंदन पाती में
शैल अग्रवाल का चिरपरिचित अंदाज़
यादों की गलियों में

°

ब्रिटेन में हिन्दी
के अंतर्गत उषाराजे सक्सेना के व्याख्यान
का छठा और अंतिम भाग
पाठ्यक्रम में सुधार
°

1सप्ताह का विचार1
जी
वन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है—दीनानाथ दिनेश!

 

अनुभूति में

आमंत्रण
दीपावली महोत्सव का
त्रत्रत्र
साथ ही
सात कवियों की
सोलह नई कविताएं

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
कल्याण का अंत
धूल की एक परत–तरूण भटनागर
पेनसुकेश साहनी
अंतरालअनामिका रिछारिया
बूढ़ा शेर–सीमा खुराना 
पानी का रंग–कुसुम अंसल
मातमपुरसी–सूरज प्रकाश
°

दृष्टिकोण में
डा रति सक्सेना का विचारोत्तेजक लेख
काम करने की संस्कृति
°

साक्षात्कार में
श्री विभूति नारायण राय के साथ
गौतम सचदेव की बात चीत
व्यंग्य में करूणा की धार
°

°ब्रिटेन में हिन्दी के अंतर्गत उषाराजे
सक्सेना के व्याख्यान का चौथा भाग
विदेशी परिवेश में पनपता हिन्दी लेखन
°

रसोईघर में
पुलावों की श्रृंखला में नया व्यंजन
आम का मीठा पुलाव
°

नगरनामा में
लंदन का नगर वृत्तांत सुधेश की
यात्रा डायरी से
लंदन की चकाचौंध

°

मंच मचान में
डा अशोक चक्रधर का अगला संस्मरण
टोटके और उनके घोटके

°

फुलवारी में
आविष्कारों की कहानी के अंतर्गत
इत्र, काग़ज़–स्याही, मेकअप
और शिल्प कोना में बनाया जाए
पुस्तक चिह्न

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन    
       सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया   साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला