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पिछले
सप्ताह
सामयिकी
में
विजयादशमी के अवसर पर
मैथिलीशरण गुप्त की रचना
साकेत
का रेडियो नाट्य
रूपांतर
डा प्रेम जनमेजय की कलम से
और
डा शिबन कृष्ण रैणा का निबंध
कश्मीरी काव्य में रामकथा °
ब्रिटेन
में हिन्दी
के अंतर्गत उषाराजे सक्सेना के व्याख्यान
का पांचवां भाग
हिन्दी
रचनाएं और रचनाकार
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आज
सिरहाने में
मनोज शर्मा परिचय करवा रहे हैं
देस बिराना
से
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कहानियों में
यू के से दिव्या माथुर की कहानी
फिर
कभी सही
कहीं गहरे सोचती तो
नेहा को लगता कि वह बसंत के अलावा किसी को चाह
ही नहीं पाएगी। 'हां', कहने का मतलब था विष्णु से
शादी, शादी का मतलब था विष्णु को पति के रूप में
स्वीकारना, यहीं आकर बात बिगड़ जाती। जिस पुरूष
को वह प्यार नहीं करती, उसका स्पर्श कैसे झेलेगी?
कैसे नकारेगी पतित्व? आदर ही आदर था विष्णु के लिए
नेहा के मन में, प्रेम टुकड़ाभर नहीं। कभी
सोचती, शादी कर ले, बाद की बाद में देखी जाएगी।
पर नेहा का पति कहां कर पाया था नेहा को प्यार। वह
चाहता था किसी और को। मां के कहने पर उसने शादी
कर ली, किन्तु गृहस्थी न बसा पाया था वह।
1
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इस
सप्ताह
कहानियों में
भारत से जयनंदन की कहानी
कल्याण
का अंत
पता नहीं किस अर्जुन ने या किस राम ने
अग्निबाण चलाया कि सौ वर्षों से भी ज्यादा
उम्रवाला कल्याण तालाब
सूख गया। कल्याण सूख गया,
इससे शायद बहुतों का जीवन
अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुआ होगा लेकिन
प्रत्यक्ष रूप से इससे जो सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, उसका नाम था
कोचाई मंडल। कल्याण क्या सूखा जैसे उसके जीवन के सारे स्रोत ही सूख
गए। कल्याण उसकी संजीवनी था, कर्मस्थल था, ऊर्जास्रोत था और कुल
जमा पूंजी था। अब जब वह नहीं रहा तो मानो उसके पास कुछ भी नहीं
रहा . . .जैसे वह उखड़ गया अपनी जड़ से . . .हिल गया अपनी नींव से।
°
प्रकृति
और पर्यावरण में
प्रभात कुमार की कलम से
जीवन रक्षक छतरी और
गरमी का शीशमहल
°
प्रौद्योगिकी
में
रविशंकर श्रीवास्तव का
आलेख
विश्वजाल पर
ज्ञानकोश
विकिपीडिया
°
लंदन
पाती में
शैल अग्रवाल का चिरपरिचित अंदाज़
यादों
की गलियों में
°
ब्रिटेन
में हिन्दी
के अंतर्गत उषाराजे सक्सेना के व्याख्यान
का छठा और अंतिम भाग
पाठ्यक्रम
में सुधार
°
1सप्ताह का विचार1
जीवन की जड़ संयम की
भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना
जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और
उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता हैदीनानाथ दिनेश! |
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अनुभूति
में
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आमंत्रण
दीपावली महोत्सव का
त्रत्रत्र
साथ ही
सात कवियों की
सोलह नई कविताएं
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° पिछले अंकों
से °
कहानियों में
कल्याण
का अंत
धूल
की एक परततरूण भटनागर
पेनसुकेश साहनी
अंतरालअनामिका रिछारिया
बूढ़ा
शेरसीमा खुराना
पानी
का रंगकुसुम अंसल
मातमपुरसीसूरज प्रकाश
°
दृष्टिकोण
में
डा
रति सक्सेना का विचारोत्तेजक लेख
काम
करने की संस्कृति
°
साक्षात्कार
में
श्री
विभूति नारायण राय के साथ
गौतम सचदेव की बात चीत
व्यंग्य
में करूणा की धार
°
°ब्रिटेन
में हिन्दी
के अंतर्गत उषाराजे
सक्सेना के व्याख्यान
का चौथा भाग
विदेशी
परिवेश में पनपता हिन्दी लेखन
°
रसोईघर में
पुलावों की श्रृंखला में नया
व्यंजन
आम का मीठा पुलाव
°
नगरनामा
में
लंदन का नगर वृत्तांत सुधेश की
यात्रा डायरी से
लंदन
की चकाचौंध
°
मंच
मचान में
डा अशोक चक्रधर का अगला संस्मरण
टोटके
और उनके घोटके
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फुलवारी में
आविष्कारों की कहानी
के अंतर्गत
इत्र,
काग़ज़स्याही, मेकअप
और शिल्प कोना में बनाया जाए
पुस्तक
चिह्न
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