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नाटक

नाटकों के स्तंभ में प्रस्तुत है श्री मैथिलीशरण गुप्त की रचना 'साकेत' का रेडियो नाट्य रूपांतर। रूपांतरकार हैं- डॉ. प्रेम जनमेजय


पात्र - सूत्रधार, उर्मिला, लक्ष्मण, कैकयी, मंथरा, दशरथ, सुमंत्र, वसिष्ठ, राम, सीता, भरत, मांडवी, कौशल्या, सुमित्रा, सुलक्षणा

पहला दृश्य

मंगलाचरण - (मंगल ध्वनि के मध्य गणेश वंदना)
जयति कुमार - अभियोग - गिरा गौरी - प्रति
स-गण गिरीश जिसे सुन मुसकाते हैं -
"देखो अंब, ये हेरंब मानस के तीर पर
तुंदिल शरीर एक उधम मचाते हैं।
गोद भरे मोदक धरे हैं, सविनोद उन्हें
सूँड से उठाके मुझे देने को दिखाते हैं,
देते नहीं, कंदुक-सा ऊपर उछालते हैं,
ऊपर ही खेलकर, झेलकर खाते हैं।

अयि दयामयि देवि, सुखदे, सारदे,
इधर भी निज वरद-पाणि पसारदे।
दास की यह देह-तंत्री सार दे,
रोम-तारों में नई झंकार दे।
बैठ, आ, मानस-मराल सनाथ हो,
भार - वाही कंठ - केकी साथ हो।
चल अयोध्या के लिए, सज आज तू,
माँ, मुझे कृतकृत्य कर दे आज तू।

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