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                    अपना चालीसवाँ जन्मदिन मनाते समय 
					मुझे अपनी बढ़ती हुई उम्र का इतना एहसास नहीं हुआ था जितना 
					जन्मदिन के कुछ महीनों बाद पापा को चुपचाप बैठे देखकर हुआ था। 
					उस दिन दिनेश पापा और मम्मी से बात कर रहा था। दिनेश मेरा छोटा 
					भाई, हम सब का लाड़ला, यहाँ तक मेरा भी लाड़ला। मुझसे चौदह साल 
					छोटा होने के कारण वह मुझे हमेशा अपना भाई कम और बेटा जैसा 
					ज्यादा लगता है। दिनेश उस दिन अपनी शादी की बात कर रहा था – 
					मौनिका के साथ। मम्मी उससे सवाल जवाब कर रही थी। भैया भी बैठे 
					थे और पापा भी। पर मेरा ध्यान नहीं गया तब तक, दिनेश ने झुंझला 
					कर यह नहीं कहा, "पापा अगर आप को मेरे जिंदगी में कोई दिलचस्पी 
					है, तो यह अखबार छोड़ दो..." कि इस मामले में पापा ने अभी तक 
					कुछ नहीं कहा है।
 इस मामले की बात तो छोड़ो, पापा ने किसी भी मामले में कुछ नहीं 
					कहा है। बहुत दिनों से असल में बहुत महीनों से देख रही हूँ, 
					पापा किसी भी मामले में कुछ नहीं कहते हैं। अपनी राय तक नहीं 
					देते हैं, आज्ञा देना तो दूर की बात है।
 
 दिनेश ने जब पापा से अखबार छोड़ने की बात कही थी तब मैने पहली 
					बार देखा था कि पापा कितने बूढ़े लग रहे थे। सिर्फ बूढ़े नहीं 
					थके हुए लग रहे थे। और पापा के बूढ़े होने के साथ–साथ यह अहसास 
					आया कि मैं भी तो चालीस साल की हो गई हूँ और भैया छियालीस के 
					और हमारा नन्हा सा दिनेश पच्चीस साल का हो गया है और अपनी शादी 
					की बात कर रहा है।
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