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पिछले
सप्ताह
दृष्टिकोण
में
डा
रति सक्सेना का विचारोत्तेजक लेख
काम
करने की संस्कृति
°
साक्षात्कार
में
श्री
विभूति नारायण राय के साथ
गौतम सचदेव की बात चीत
व्यंग्य
में करूणा की धार
°
°ब्रिटेन
में हिन्दी
के अंतर्गत उषाराजे सक्सेना के व्याख्यान
का चौथा भाग
विदेशी
परिवेश में पनपता हिन्दी लेखन
°
रसोईघर में
पुलावों की श्रृंखला में नया
व्यंजन
आम का मीठा पुलाव
°
कहानियों में
भारत से तरूण भटनागर की कहानी
धूल
की एक परत
एक सपना जो अब कुंवरजी
की आंखों में नहीं है, जो अब रानी के भीतर खदबदाता
है। पूरे हक के साथ देखा गया सपना, 'हमारी चंदई'
वाला सपना, जिस पर अब घास उग आई है, दरारें पड़
गई हैं। सपना जो अचानक फिसलकर गटर में गिर गया।
हक जो छिन गया, समय के दोष ने छीन लिया। रानी
किसी से कह भी नहीं पाई कि वह छिन गया। आज भी
उन्होंने मुझसे हक छिनने जैसी कोई बात नहीं की।
किसी पर दोष मढ़ना उन्हें नहीं सूझता। बस कहती रहीं,
हमारा चंदई, हमारा चंदई . . .और उन्हें पता भी नहीं
चला कि
उनकी जुबान से यह शब्द बेतुका सा लगता है।
शायद इसे सुनकर लोग हंसते हों।
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इस
सप्ताह
कहानियों में
यू के से दिव्या माथुर की कहानी
फिर
कभी सही
कहीं गहरे सोचती तो
नेहा को लगता कि वह बसंत के अलावा किसी को चाह
ही नहीं पाएगी। 'हां', कहने का मतलब था विष्णु से
शादी, शादी का मतलब था विष्णु को पति के रूप में
स्वीकारना, यहीं आकर बात बिगड़ जाती। जिस पुरूष
को वह प्यार नहीं करती, उसका स्पर्श कैसे झेलेगी?
कैसे नकारेगी पतित्व? आदर ही आदर था विष्णु के लिए
नेहा के मन में, प्रेम टुकड़ाभर नहीं। कभी
सोचती, शादी कर ले, बाद की बाद में देखी जाएगी।
पर नेहा का पति कहां कर पाया था नेहा को प्यार। वह
चाहता था किसी और को। मां के कहने पर उसने शादी
कर ली, किन्तु गृहस्थी न बसा पाया था वह।
°
सामयिकी
में
विजयादशमी के अवसर पर
मैथिलीशरण गुप्त की रचना
साकेत
का रेडियो नाट्य
रूपांतर
डा प्रेम जनमेजय की कलम से
और
डा शिबन कृष्ण रैणा का निबंध
कश्मीरी काव्य में रामकथा °
ब्रिटेन
में हिन्दी
के अंतर्गत उषाराजे सक्सेना के व्याख्यान
का पांचवां भाग
हिन्दी
रचनाएं और रचनाकार
°
आज
सिरहाने में
मनोज शर्मा परिचय करवा रहे हैं
देस बिराना
से °
1सप्ताह का विचार1
वे ही
विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी
होंगे।
अज्ञात
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अनुभूति
में
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आमंत्रण
दीपावली महोत्सव का
त्रत्रत्र
साथ ही
नए पुराने कवियों की 15 नई कविताएं
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° पिछले अंकों
से °
कहानियों में
पेनसुकेश साहनी
अंतरालअनामिका रिछारिया
बूढ़ा
शेरसीमा खुराना
पानी
का रंगकुसुम अंसल
मातमपुरसीसूरज प्रकाश
चिड़ियाअमरेन्द्र कुमार
°
नगरनामा
में
लंदन का नगर वृत्तांत सुधेश की
यात्रा डायरी से
लंदन
की चकाचौंध
°
ब्रिटेन
में हिन्दी
के अंतर्गत उषाराजे सक्सेना के आलेख
का तीसरा भाग
भारतीयों
के बीच हिन्दी
°
मंच
मचान में
डा अशोक चक्रधर का अगला संस्मरण
टोटके
और उनके घोटके
°
फुलवारी में
आविष्कारों की कहानी
के अंतर्गत
इत्र,
काग़ज़स्याही, मेकअप
और शिल्प कोना में बनाया जाए
पुस्तक
चिह्न
°
हास्य
व्यंग्य में
एस आर हरनोट का व्यंग्य
रोबो
°
प्रकृति
और पर्यावरण में
प्रभात कुमार की कलम से
पर्यावरण,
प्रदूषण
एवं
आकस्मिक संकट
°
विज्ञान
वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप के शब्दों में
कथा डी
एन ए की खोज की
(भाग2)
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