अनुभूति

 1. 5. 2004

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पिछले सप्ताह

उपन्यास में
स्वदेश राणा के नये अप्रकाशित उपन्यास
कोठेवाली का चौथा भाग
ख़त डाक में छोड़ कर जब ताहिरा अपनी गली में मुड़ी तो किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रख दिया। मटमैले पैंट कोट वाला एक खुरदरा सा बुजुर्ग गोरा था। ताहिरा को अपनी तरफ देखते पाया तो उसकी गिजगिजी आंखों में लार उतर आई। खीसे निपोर कर बोला, "तो तुम्हीं हो वो ख़ूबसूरत बला जो उस सुअर बिली की गंदगी के ढेर में रहती है?"
°!

परिक्रमा में 
शैल अग्रवाल की कलम से
वसुधैव कुटुम्बकम
°

विज्ञान वार्ता में
'
आपका सूरज आपकी मेज़ पर'
डा गुरूदयाल प्रदीप का आलेख
डेस्कटॉप न्युक्लियर फ्यूज़न संयंत्र
°

प्रौद्योगिकी में
भारत में कंप्यूटर के बढ़ते कदम
नगर नगर कंप्यूटर
°

कहानियों में
भारत से तरूण भटनागर की कहानी
ढंकी हुई बातें

मैं तालाब के पास वाली पुलिया पर बैठ गया और वह दौड़ता हुआ जंगल में खो गया। वहां सरई के पेड़ों की गंध आ रही थी और चारों ओर चट्टान सी चुप्पी थी। इतनी शांति कि सूखे पत्तों पर पड़ने वाली ओस की बूंदों की आवाज़ तक सुनाई दे रही थी। तालाब में से भाप के छल्ले उठा रहे थे। एक अजीब सी खुशी देने वाली हवा बह रही थी। सुबह की हल्की ठण्डी हवा जो कभी धीरे तो कभी फुरफुराती सी मुझे छू जाती थी। थोड़ी देर बाद बीजू भी आ गया। वह एक्सरसाइज करते हुए मुझसे पूछने लगा –"क्यों मेरे गांव की सुबह मजेदार होती है न . . .।"°

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!इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से रवीन्द्र कालिया की कहानी
गौरैया

जेठ की उजली दुपहरी थी। पत्ता तक नहीं हिल रहा था। लू के थपेड़े, घने पेडों के बावजूद, बदन पर आग की लपटों की तरह लपलपा रहे थे। इस खौफनाक मौसम में बस एक ही राहत थी, गौरैया की मधुर आवाज़। दोपहर के इस घनघोर सन्नाटे में उसकी आवाज़ पेड़–पौधों के ऊपर तितली की तरह थिरक रही थी। इस आवाज़ के सम्मोहन में ही मैं बाहर बगिया में निकल आया था और पेड़ के नीचे पड़ी खटिया पर पसर गया था। गौरैया चुप हो जाती तो लगता, पूरी कायनात धू–धू जल रही है, अभी सब कुछ जल कर राख हो जाएगा। गौरैया बोलती तो लगता, अभी प्रलय बहुत दूर है। पृथ्वी पर जीवन के चिह्न बाकी हैं।

°

सामयिकी में
मई दिवस के अवसर पर
योगश चंद्र शर्मा प्रस्तुत कर रहे हैं
मई दिवस की यात्रा कथा

°

नगरनामा में
असगर वजाहत द्वारा पत्र शैली में लिखा गया बुदापेस्त का नगर वृतांत
इस पतझड़ में आना

°

फुलवारी में
जंगल के पशु श्रृखला में जानकारी 
कस्तूरी मृग
हिरन का एक सुंदर सा चित्र
रंगने के लिए
और कविता
हिरन

°

मंच मचान में
अशोक चक्रधर प्रस्तुत कर रहे हैं
ढिंचिक–ढिंचिक वाली रामचरित मानस

1°1

!सप्ताह का विचार!
चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में
फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने
ही पास रखता है।
—रवीन्द्र

 

अनुभूति में

गौरवग्राम में रमानाथ अवस्थी
तथा अन्य स्तंभों में
धनपत राय झा, कल्याण सिंह, शार्दूला व शिवानी लढ्ढा

° पिछले अंकों से°

कहानियों में

यही सच हैै–मन्नू भंडारी
आई एस आई एजेंट–महेश चंद्र द्विवेदी
टेपचूउदय प्रकाश 
आते समयडा कुसुम अंसल
सारांशशुभांगी भड़भड़े
अलग अलग तीलियांप्रभु जोशी

°

हास्य व्यंग्य में
संजय ग्रोवर की कलम से
मरा हुआ लेखक सवा लाख का

°

आज सिरहाने में
आचार्य भगवत दुबे के कविता संग्रह
हिन्दी तुझे प्रणाम
से संक्षिप्त परिचय डा इसाक 'अश्क'
के शब्दों में
°

प्रकृति और पर्यावरण में
प्रभात कुमार का जानकारी पूर्ण आलेख
आपदाओं का धनजल

°

नगरनामा में
सूरज प्रकाश का सजीव रेखाचित्र

!अहमदाबाद एटले अहमदाबाद
°

वैदिक कहानियों में
डा रति सक्सेना की कलम से
वरूण

°

स्वाद और स्वास्थ्य में
दीपिका जोशी बता रही हैं
फलों का फलित
°

समाचार में
यू के में
कथा सम्मान यूके घोषित
और जकार्ता में होली

°

परिक्रमा में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत
गये माह भारत की घटनाओं
का लेखा जोखा
शांति के रंग

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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