जल
अगर जीवन है तो जलाधिक्य मृत्यु और तबाहियों का कारण।
प्राणीमात्र ही नहीं, बल्कि समूचे प्रकृति में जल का इतना
अनुशासित महत्व है कि इसकी कमी और आधिक्य दोनों ही
स्वीकार्य नहीं। आसमान में उमड़ती घुमड़ती घटाओं को देखकर,
इसकी सुंदरता के वर्णन में हम भूल जाते हैं कि जल की बूँदों
से निकली धाराएँ सिर्फ जीवन रस नहीं, आपदाओं का अंबार भी
लाती है। ईश्वर के बनाए संहारक रूपों में, बाढ शायद वह हथियार
है जिसके आगे मानव हमेशा से झुकता रहा है और प्रकृति अपनी
प्रभुता का अहसास कराती रही है।
बाढ
का आतंक तो देखिए कि लेखकों और कवियों ने भी इसपर लिखने का
साहस कम ही किया है। कारण यह नहीं कि बाढ के आने का कोई क्रम
नहीं, बल्कि शायद यह है कि अनचाही परिस्थियों और पहाड़सी
विपतियों का वर्णन भला कौन करना चाहेगा! बाढ नियंत्रण
कक्ष में बैठकर, आपको अगर मैं इसके आगमन की पूर्वसूचना दे
भी दूँ तो क्या इसके स्वागत में आप पलक पाँवरे बिछाकर इंतजार
करना पसंद करेंगे? पेशे से आप अगर पत्रकार हैं तो भी, कमर भर
पानी में घुसकर तस्वीरें लेने के बजाए आपको हवाई चित्र लेना
ही पसंद होगा। अस्वभाविक कारणों से उपजी जलाधिक्य की स्थिति का
भाषायी महत्व यह है कि कोई भी वस्तु जब परिमाणात्मक सीमा के
परे चली जाती है तो इससे उत्पन्न दुर्दशाओं का विशेषण हम बाढ
संज्ञात्मक शब्द से देते हैं। उत्कृष्ट साहित्य, अच्छी फिल्में या
शास्त्रीय संगीत का नहीं बल्कि घटिया साहित्य, अश्लील फिल्में और
फूहड़ गानों की ही बाढ आती है! हाи सौन्दर्य प्रतियोगिताओं
में रूपसियों की परेड को देखकर, अगर सुंदरता की बाढ आने का
वर्णन कर रहे हैं तो अवश्य ही आप साहित्यकार होंगे! चुनावी
समय हो तो नेताओं, राजनीतिक वायदे और प्रचारों की बाढ आ
जाती है। फिलहाल, हम यहां उस बाढ़ की चर्चा करेंगे जो जलदों
या चक्रवातीय हवाओं की संतान है।
कब,
क्यों और कैसेः
अत्यंत कम समय में अस्वाभाविक रूप से हुई भारी वर्षा,
हिमगलन, चक्रवातीय तूफान या अन्य कारणों के चलते समुद्री
ज्वार या अंर्तस्थलीय जल से उत्पन्न जलमग्नता की स्थिति बाढ या
सैलाब कहलाती है। प्रायः हर देश के लिए यह एक आपदा की स्थिति है
और दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश है जहाँ बाढ ने अपना
कहर न ढाया हो। फिर भी, कुछ के लिए बाढ की संवेदनशीलता अधिक
है तो कुछ के लिए कम। समुद्रतटीय प्रदेश या नदीघाटी क्षेत्रों
में रहनेवाले लोगों के लिए बाढ जहाँ अत्यधिक महत्वपूर्ण है
वहीं उच्च भूमि या मरूस्थलीय प्रदेशों में रहने वालों के लिए
एक विरल अनुभव। कुछ क्षेत्रों के लिए तो यह एक सालाना अनुभव है
और लोगों नेे उसी के रंग में स्वयं को रंगकर जीना सीख
लिया है। आमतौर पर अतिवृष्टि को ही बाढ के लिए उतरदायी माना
जाता है किंतु इसके निम्नलिखित कारणहो सकते हैः-
-
भयंकर
तूफान या चक्रवातीय हवाओं के चलने पर तटीय प्रदेशों में
सैकड़ों मील तक समुद्री जल का घुस आना।
-
कम
समय में होनेवाली तीव्र वर्षा या बादल फटने से हुई
भारी वर्षा के फलस्वरूप अचानक आनेवाली बाढ।
-
तापमान
में अचानक वृद्धि के परिणामस्वरूप हिमगलन से उत्पन्न बाढ की
स्थिति।
-
लगातार
होनेवाली वर्षा के चलते संतृप्त मिट्टी या चट्टानों में
होनेवाली भूस्खलन तथा मृदा का बहाव।
-
हिमखंडों
या मलबों (लकड़ी) आदि के चलते नदी का जलमार्ग अवरूद्ध
हो जाने पर आई बाढ।
इसके
अलावा अन्य कई विशेष भौगोलिक स्थितियाँ जैसे अलनीनो
( Al Nino ) या सुनामी
(Tsunami)
भी खतरनाक सैलाब का कारण बन सकती है। विद्युत ऊर्जा उत्पादन या
कृषि उद्देश्यों से बनायी गई बाँध या स्वयं बाढ नियंत्रण के
लिए बनाई गई तटबंधों की विफलता भी बाढ के लिए जिम्मेदार हो
सकती है; हलाँकि ऐसे उदाहरण नगण्य हैं। इटली के संत वायोंत
बाँध के जलाशय में हुई भयानक भूस्खलन के पश्चात उठी
जलतरंगो से 1963 में मात्र 15 मिनटों के भीतर 2500 लोगों
की मृत्यु हो गयी थी। मजे की बात यह है कि उस घटना में 262
मीटर ऊँचे बाँध को कोई नुकसान नहीं हुआ। वर्षण विधि के
अतिरिक्त बारिश की तीव्रता, अपवाह क्षेत्र का भूगोल तथा भूपटल की
स्थिति बाढ के पीछे कारक तत्व हैं। पिछले कई दशकों में हुई
शहरीकरण की तीव्र गति के चलते जलबहाव की दर में 2 से 4
गुणा वृद्धि हुई है और पहले की तुलना में बाढ आने की
संभाव्यता भी बढी है।
बाढ़
के प्रभाव
सभ्यता के प्रारंभ से ही बाढ आती रही है और स्थानीय कहानियों
या पौराणिक कथाओं के रूप में यह दर्ज है।बाढ के चलते
होनेवाले नुकसान एवं फायदों का ज्ञान प्राचीन काल से ही
नदी घाटी प्रदेशों में रहने वाले लोगों को रहा है।चिंता का
विषय यह है कि पहले की तुलना में, बाढ से होनेवाली क्षति
और इसका प्रभाव क्षेत्र आज बढा है। जलाधिक्य से उत्पन्न
दुष्प्रभावों में जानमाल की होनेवाली अपूरणीय क्षति के अतिरिक्त
व्यापक आर्थिक नुकसान अतिमहत्वपूर्ण है। बंग्लादेश में 1970 के
नवंबर में चक्रवात के चलते आई बाढ से 50 लाख लोगों की
मृत्यु हुई जो 20 वीं शताब्दी की सबसे भीषण दुर्घटनाओं में
से एक है।अकेले एशिया में 1998 में आई बाढ के चलते 7000
लोगों की मौतें हुई, 60 लाख घर बर्बाद हुए और 250 लाख
हेक्टेअर फसल की तबाही हुई।अक्टुबर 1999 में उड़ीसा में चक्रवातीय
तूफान के चलते आई बाढ में कई हजार जानवर और लगभग 10000
लोगों की मृत्यु को आप भूले नहीं होंगे।बंग्लादेश, भारत,
चीन, वियतनाम आदि देशों में बाढ से प्रतिवर्ष होनेवाली
क्षति, यहाँ की सरकारों के लिए बड़ी चुनौती है।बाढ के चलते
होनेवाले मुख्य प्रभावों को निम्न रूप में देखा जा सकता है
-
पशुओं
तथा असहाय लोगों की मौत, अस्तव्यस्त जीवन तथा
बाढक्षेत्र से पलायन
-
घर,
खेतखलिहान एवं फसल की बर्बादी
-
प्रभावित
क्षेत्र का शेष भाग से कटने से उत्पन्न समस्याएँ
-
शहर
के सीवर लाईन की विफलता
-
गंदे
जल एवं मलमूत्रों के बहाव होने से महामारी की संभावना
-
मृदाक्षरण
तथा कटाव की समस्या
-
भूस्खलन
की संभावना में वृद्धि
बाढ
से जुड़ा अर्थशास्त्र भी चौंकाने वाला है।अकेले भारत में ही
जानमाल की अपूरणीय क्षति के अतिरिक्त प्रतिवर्ष औसतन 1000 करोड़
रूपये की आर्थिक क्षति होती है।भारत की 4 करोड़ हेक्टेअर भूमि यानी
देश का आठवाँ हिस्सा बाढ के प्रभाव क्षेत्र में है।बाढ से
होनेवाली आर्थिक क्षति का सार्वाधिक (6080)
प्रभाव उतर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और उड़ीसा
राज्य में होती है।भारत के 8041 किलोमीटर लंबे समुद्र तटीय क्षेत्र
तथा बंग्लादेश में, उष्णकटिबंधीय चक्रवात तथा इसके
परिणामस्वरूप आनेवाली बाढ की आशंका हमेशा बनी रहती है।दक्षिण
एशिया के लगभग सभी देशों में ज्यादातर नुकसान अगस्त से
सितंबर के महीनों में गंगा और बह्यपुत्र जैसी हिमालयी
नदियों के चलते होता है।
तमाम
अवांछनीय प्रभावों के बीच शैलाब कुछ अच्छे प्रभाव भी लेकर आता
है जिसे कम करके नहीं आँका जा सकता।नदी के किनारे बाढ के
मैदानों में लाई गयी उपजाऊ मिट्टी की नई परत खेतों की उर्वरा
शक्ति को बढा देती है। भारत में गंगा एवं ब्रह्यपुत्र डेल्टा तथा
समूचा बंग्लादेश की उपजाऊ भूमि का राज यही है।लगभग 5000
वर्ष पूर्व नील नदी में आनेवाली बाढ का अवलोकन कर ही
मिस्रवासियों ने पहले कैलेण्डर का निर्माण किया था।बाढ अगर
विनाश का पर्याय है तो सभ्यता का जनक भी। वैज्ञानिक तथ्य ही
नहीं बल्कि पौराणिक कहानियाँ और धार्मिक मान्यताएँ भी इसकी
पुष्टि करती है।संसार का कोई हिस्सा नहीं जहाँ बाढ से जुड़ी
कहानियाँ या मान्यताएँ न हो।
बाढ
से उत्पन्न प्रलय की कुछ कहानियां
हिंदू
धर्मग्रंथ सतपथ ब्राह्मण के अनुसार आदि पुरूष मनु
ने एक बार एक छोटी सी मछली को क्रमश: तालाब, गंगा और फिर
समुद्र में डालकर रक्षा की।प्राणरक्षा के बदले में उसने मनु को
समूची मानवजाति को नष्ट करने वाली प्रलय की जानकारी दी और
बचने का उपाय भी बताया।समय आने पर मनु ने अपनी नाव को
उस मछली के सींग से बाँधकर अपनी रक्षा की और फिर ब्रह्मा के
आदेशानुसार नई सृष्टि की रचना की।महाभारत में उस मछली को
ब्रह्मा का एक रूप और पुराणों में उसे विष्णु का मतस्यावतार
बताया गया है।
यहूदी
और इसाई धर्म में सृष्टि की रचना के पश्चात आए प्रलयकारी नोआह
बाढ का वर्णन है।ओल्ड टेस्टामेंट के जेनेसिस पाठ के छठे से लेकर
नौवें सूक्त में लिखा गया है कि आदम और ईव को पृथ्वी पर
भेजने के पश्चात मनुष्यों की अगली पीढी के कुकृत्यों से दुखी
होकर ईश्वर जिहोवा ने संसार को नष्ट करने की सोची।अच्छा
मनुष्य होने के कारण जिहोवा ने जान बचाने के लिए नोआह
को गोंद की लकड़ी से आर्क(सन्दूक)बनाने और उसकी सहायता से
बचने का उपाय बताया।चालीस दिनों तक लगातार हुई बर्षा से
उत्पन्न प्रलय में सारा संसार डुब गया और जिहोवा के बताए
रास्ते के अनुसार नोआह ने अपनी पत्नी, तीन बेटे और उसकी
पत्नियों समेत प्रत्येक जीव जंतुओं के एक एक युग्म की रक्षा
की।इस्लामिक धर्मग्रंथ कुराण भी में नोआह बाढ से होनेवाली
प्रलय की इसी कहानी को दुहराया गया है।
यूनानी
पुराणों के अनुसार, देवताओं के राजा एवं आसमान तथा
बादलों के भगवान जीयूस ने मनुष्य के बुरे आचरण से
गुस्सा होकर एक प्रलय द्वारा पृथ्वी को नष्ट करने की सोची।आदिपुरूष
प्रोमेथ्यूस ने ड्युकेलियन एवं उसकी पत्नी पेरिहा को बचने के
लिए एक आर्क बनाने का आदेश दिया। प्रलय आने पर, उसकी सहायता
से दोनों ने लगातार नौै दिनोें तक बाढ के पानी में बहते हुए
पारनेसस नामक पहाड़ी पर शरण ली।जीयूस को पूजाअर्चना कर
खुश करने पर उसने मानव जीवन की पुर्नरचना करने के लिए,
दोनों को अपनी माँ की हड्डी पीछे की ओर फेंकने के लिए
कहा।दोनों ने इसका अभिप्राय धरती माता से समझकर, पहाड़ी पर
अपने कंधे के पीछे की ओर से पत्थर फेंका जिससे एक स्त्री और एक
पुरूष का उद्भव हुआ और सृष्टि आगे चली।रोमन मान्यताओं में,
जीयूस की जगह ज्युपिटर बताकर इसी कहानी को दुहरायी गयी
है। कहानियाँ
चाहे जैसी गढी जाएи यह तो तय है कि बाढ का मतलब सबके लिए
तबाही है।
दुनिया
के सभी धर्मो या जनसमूहों में मनुष्य की उत्पति को लेकर
प्रचलित कथाओं में बाढ से विनाश और फिर ईश्वर के द्वारा या
उसकी प्रेरणा से नवसृष्टि का निर्माण शामिल है।यद्यपि सभी नदी
घाटी सभ्यताओं से ऊपजी कथाओं में बाढ किसी न किसी रूप में
अवश्य शामिल है किंतु यह आश्चर्य का विषय है कि नील नदी घाटी
में, जहाँ बाढ प्रायः हर वर्ष आती रही है, बाढ से जुड़ी
कहानियाँ नहीं है।
बाढ
पर नियंत्रणः
अति प्राचीन काल से ही बाढ के खतरों से बचाव हेतु मनुष्य
संरक्षात्मक एवं सुरक्षात्मक तरीके अपनाता रहा है।दूसरी सदी के
आसपास, चीन के ह्वांगहो नदी में आनेवाली बाढ से
बचाव के लिए सैंकड़ों किलोमीटर लंबे तटबंधों का निर्माण
किया गया किंतु पिछले 2000 सालों में नदी का स्तर 21 मीटर तक ऊँचा
उठा है।
बाढ से बचाव के लिए किए गये तटबंधों के निर्माण के चलते
कई बार बाढ की तीव्रता और बढ जाती है।आवश्यकता इस बात की है कि
ऐसी विधि अपनाई जाए जो स्थानीय पर्यावरण के अनुकूल हो।
बाढ पर नियंत्रण तथा इससे बचाव के लिए संरचनात्मक तथा
गैरसंरचनात्मक विधियाँ अपनायी जाती है। संरचनात्मक विधि
में निम्नलिखित तरीके महत्वपूर्ण है
-
बाँध
बनाकर जलाशयों में बाढ के पानी का जलग्रहण
-
नदी
के दोनों ओर तटीय बाँध या डाईक का निर्माण
-
जलनिकाषी
के लिए बाढवाही नहरें या प्राकृतिक चैनल का उपयोग
-
जल
निकाष के लिए बनी चैनलों का परिवर्धन
बहुउद्येश्यीय
परियोजनाओं को ध्यान में रखकर किए गए,
बड़े बाँधों के निर्माण से बाढ नियंत्रण में काफी मदद मिली
है।नील नदी पर मिस्र में बनाए गए असवां बाँध से बना
जलाशय अपने अपवाह क्षेत्र में तीन वर्षो तक होनेवाली सामान्य
वर्षा का पानी रोक सकता है।गैरसंरचनात्मक
तरीकों में बाढ की समयपूर्व भविष्यवाणी, वूक्षारोपन,
मृदा संरक्षण के तरीकों का उपयोग या बाढ के मैदान का खंडों में
बाँटना तथा उसका प्रबंधन शामिल है।बाढ के समय बाढमैदान
में संस्थापित वस्तु को अत्यधिक संवेदनशील जोन से हटाकर
तुलनात्मक सुरक्षित जोन में लाकर बचाया जा सकता है।
बाढ
का पूर्वानुमान :
समय रहते बाढ की भविष्यवाणी, बाढ से होनेवाली तबाहियों
के प्रति बचाव तथा नियंत्रण का सबसे सस्ता और कारगर तरीका
है।उचित समय से दी गयी चेतावनी बाढ से होनेवाली खतरों से
लोगों को जहाँ बचाता है वहीं गलत अनुमान होने से
चेतावनी तंत्र के प्रति लोगों की विश्वसनीयता घटती है।इसलिए
पर्याप्त समय रहते किया गया भरोसेमंद पूर्वानुमान बाढ
नियंत्रण तंत्र की दोहरी आवश्यकता है।चेतावनी के लिए सामान्य तौर
पर तीन प्रकार के पूर्वानुमान किए जाते हैं (क) छोटी अवधि के
लिए 12 से 40 घंटा पूर्व की गयी भविष्यवाणी (ख) मध्यम अवधि
के लिए 2 से 5 दिन पूर्व की भविष्यवाणी तथा (ग) मौसमी आँकड़े
तथा रडार प्रणाली की सहायता से लंबी अवधि के लिए की जाने
वाली भविष्यवाणी
बाँध,
सेतु या कलवर्ट जैसी अभियांत्रिकीय संरचनाओं के निर्माण के
लिए बाढ के शीर्ष बहाव की मात्रा का सही पूर्वानुमान एक
महत्वपूर्ण चुनौती है।बाढ को ऊँचाई, शीर्ष प्रवाह, डुबाव
क्षेत्रफल या जलीय आयतन के अनुसार मापा जा सकता है लेकिन यह
आसान काम नहीं।अपवाह क्षेत्र की विशेषताएи वर्षा की मात्रा एवं
भूपटल की बाढ पूर्व स्थिति जैसी राशियों के आकलन में
अनिश्चितता के चलते, संभावित बाढ के अनुमान के लिए
सांख्यिकीय विधि का प्रयोग किया जाता है।परंतु, पर्याप्त आँकड़े
(कम से कम 30 वर्ष) के न होने की स्थिति में आवृति विश्लेषण
विधि का प्रयोग संभव नहीं होता।
बचाने
वाले पर एक नज़रः
विश्व के अधिकांश देशों की सरकारों ने बाढ की पूर्वसूचना या
बाढ के खतरों से निबटने हेतु एक स्वतंत्र निकाय बना रखी है।भारत
में समयपूर्व बाढ की भविष्यवाणी का काम केन्द्रीय जल आयोग
करता है।आयोग ने देशभर में 141 बाढ भविष्यवाणी केंद्र बना
रखे हैं जो भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से
संचालित है।बाढ से उत्पन्न स्थिति की समीक्षा, बाढ नियंत्रण के
तरीकों का मूल्यांकन तथा भविष्य में सुधार आदि विषयों पर
1976 में स्थापित राष्ट्रीय बाढ आयोग अपनी नज़र रखता है।संयुक्त
राज्य अमेरिका में फेडरल इमरजेंसी मैनेजमेंट एजेंसी बाढ
जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निबटने के लिए सभी प्रकार की सहायता
उपलब्ध कराता है।वैश्विक स्तर पर बाढ प्रभावित क्षेत्र के आलेखन,
मापण, विरल घटनाओं का विश्लेषण तथा इसपर अनुसंधान कार्य
के लिए, अमेरिका की ही एक अन्य संस्था डार्टमाउथ बाढ
बेधशाला काम कर रही है।यह बेधशाला दूरसंवेदी उपग्रह की
सहायता से पृथ्वी पर कहीं भी होनेवाली बाढ की घटना पर नज़र
रखती है तथा अद्यतन जानकारी उपलब्ध कराती है।
मानवीय
उद्यमशीलता ने काफी हद तक बाढ पर आज नियंत्रण कर लिया है लेकिन
फिर भी कब, कहाँ और कैसे बाढ आकर आपको घेर लेगा यह तो
ईश्वर ही जाने।बाढ आने की थोड़ी भी संभावना अगर आपको दिख
रही हो, तो एहतियात बरतने के लिए कुछ दिनों का राशन पानी, जरूरी
दवाएи फ्लैश लाईट या मोमबतियाи आवश्यक कपड़े और
समाचार तथा गाने सुनने के लिए बैटरी वाला रेडियो जरूर रख
लीजिए।बाढ में अगर सचमुच घिर जाएँ, तो आसमान पर नज़र
डालते रहिए ताकि भगवान और राहत सामग्री गिरानेवाले की दृष्टि
आपसे न चूके!
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