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वैदिक देवताओं की कहानियां

—डा रति सक्सेना

परिचय 

दि किसी टाइम मशीन के द्वारा हम अपने समय से पीछे – काफी पीछे चलते चले तो कहां जाकर रूकना पसन्द करेंगे? निसन्देह उस लकीर के पार तो जाना पसन्द नहीं करेंगे जहां आदमी और अन्य जीवों में कोई अन्तर ही नहीं था। आदमी का आदमी बनना, प्रकृति से दोस्ती बनाए रखते हुए अपने आसपास को समझना एक ऐसा मुकाम था जहां से आदमीयत या मनुष्यता की कहानी शुरू होती है। 

इसी आदिम मानवीयता का सबसे पुराना साहित्यिक व सांस्कृतिक दस्तावेज है हमारा वैदिक साहित्य। यह उस वक्त का साहित्य है जब आदमी खाने–पीने और सोने जैसी मूलभूत समस्याओं से ऊपर उठ कर धरती और आकाश ही नहीं बल्कि अन्तरिक्ष तक को समझने की कोशिश में लगा था। वह हर किसी सामान्य या असामान्य को कौतूहल के साथ देख रहा था। आग, पानी, बादल, बिजली, सूरज, भाप, रात चांद तारे आदि तो उसके दिमाग में अनेक सवाल जगाते ही थे, वह अपनी जमीन पर उगे पेड़–पौधों, वनस्पतियों, नदी–नालों, तालाबों आदि से भी बड़ी प्रभावित था। उसे अपने मानसिक भाव भी समझ में आने लगे थे, इसलिए वह सुख–दुख, प्रेम–स्नेह, गुस्सा–घृणा, और दोस्ती तथा दुश्मनी मनोभावों का सही उपयोग करना भी सीख रहा था।

वेदों में संकलित समस्त ऋचाओं में तीन तत्व महत्वपूर्ण हैं, वे हैं – देवता, ऋषि और छन्द। यहां देवता का अर्थ है – जिसके लिए ऋचा रची गई है, ऋषि का अर्थ है – जिसने रची है और छन्द का अर्थ है कविता का प्रकार। इस तरह से वेदकालीन देवता का बाद के साहित्य में उपलब्ध देवता से काफी अलग है। चारों वेदों में सामान्यरूप से देवताओं से सम्बन्धित प्रार्थना गीत हैं, किन्तु वेदों के बाद के साहित्य जैसे ब्राह्मण साहित्य, आरण्यक और उपनिषदों में इन्हीं देवताओं से सम्बन्धित कहानियां भी हैं। (वेद साहित्य के चार विभाग हैं – चारों वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, और उनसे जुड़ें ब्राह्मण साहित्य, आरण्यक और उपनिषद।)  रोचक बात यह है कि जो देवता एक वेद में महत्वपूर्ण स्थान रखता है वहीं दूसरे वेद में अपना महत्व कुछ खो सा देता है। उदाहरण के लिए ऋग्वेद में इन्द्र शक्तिशाली योद्धा व बलशालीव्

वेदों में वर्णित देवताओं के तीन विभाग हैं – आधिभौतिक – जैसे अग्नि, नदी, आपस्, औषध (पानी) आदि (जिनका सम्बन्ध धरती से है), आधिदैविक (दिव्य शक्ति सम्बन्धित) जैसे इन्द्र, वरूण, मरूत, आदि, आध्यात्मिक (जिनका सम्बन्ध मन से है) जैसे ब्रह्म, वेन, आत्म, आदि। अथर्ववेद में तो मन्यु, (क्रोध), भय, मोह आदि मनोभावना पर भी सुन्दर ऋचाएं मिलता हैं। इसका अर्थ यह है कि वेदकालीन जन मनुष्यता से करीब–करीब उतने ही परिचित थे जितने कि हम हैं, वे अपने आसपास को उतना ही समझने की कोशिश कर रहे थे जितने कि हम करते हैं। इस दृष्टि से वेद काल के देवताओं का परिचय पाना हमारे लिए जरूरी है।

जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि वेदों में हर उस प्राकृतिक तत्व, शक्ति या भाव को देवता की उपाधि दी गई है, जिसको लक्षित करके प्रार्थना की जाती थी। इन प्रार्थना गीतों को ऋचा या मंत्र कहा जाता है। ऋचाओं में देवताओं की मूर्त रूप में स्तुति की गई हैं। ध्यान देने वाली बात है कि यूं तो वैदिक देवताओं मूर्त–स्वरूप मानवीय है, उनके हाथ–पांव, भुजा, सिर, मस्तक आदि बताएं गए हैं किन्तु उनकी प्रतिमा छायात्मक है अर्थात् वेदों के समय मूर्तिपूजा का प्रचलन नहीं हुआ था। मूर्ति या प्रतिमा का सबसे पहले उल्लेख सूत्र साहित्य (वैदिक साहित्य का अन्तिम भाग जिसमें धार्मिक, सामाजिक व व्यवहारिक नियमों को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया गया है।) में वर्णन मिलता है। हर देवता की स्तुति सर्वेश्वर के रूप में की जाती है, अर्थात् जिस देवता की स्तुति होती है उसे उस क्षण सबसे शक्तिशाली देवता माना जाता है। एक देवता का दूसरे सद
हे अग्नि! जन्म से तुम हो वरूण, सुलगते हो तो बनते मित्र।
ओ शक्ति के पुत्र! तुममे सभी देवता, मनुष्यों के लिए तुम इन्द्र।। ऋग्वेद– 5, 3, 1
(हिन्दी में अनुवाद किया गया है।)

इस तरह वेदों में अनेक देवता होते हुए भी एकेश्वरवाद की नींव रखी गई थी। वहां माना गया था कि शक्ति एक ही है किन्तु पण्डित वर्ग उसका वर्णन मातरिश्वा, यम, अग्नि आदि अनेक रूपों में करते हैं।

एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिस्वानमाहुः। ऋग्वेद – 1, 164, 46

वेदों में देवता सदैव ही उपकारी व दीर्घायु रहे हैं। रूद्र को छोड़ कर अन्य सभी देवता भय का वातावरण उपस्थित नहीं करते। उनका चरित्र भी नैतिक माना जाता था, वे अधिकतर सत्यवादी, छल न करने वाले न्यायप्रिय माने जाते थे। वरूण देवता तो नीति की मिसाल माने जा सकते हैं।

ऋचाओं को देखने से साफ लगता है कि वैदिक देवता और ऋषियों में सीधा सम्बन्ध था, अर्थात् इन ऋचाओं में भक्ति का आदिम रूप मिलता है।

एक बात और ध्यान देने वाली है कि वेदों में देवता शब्द उभय लिंगी है, अर्थात देवता शब्द स्त्रीलिंग व पुल्लिंग दोनों का वाचक है। यहां राका, कुहु, उषा रात्रि आदि देवियों और इन्द्र, वरूण, मरूत आदि शक्ति शाली देवों, दोनों को देवता कहा गया है।

अब हम वेदों के प्रमुख देवताओं के बारे में एक एक करके जानकारी प्राप्त करेंगे।

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अग्नि—

 
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