|  | यहाँ जो कुछ लिखा हुआ है, वह कहानी नहीं है। कभी-कभी सच्चाई 
					कहानी से भी ज्यादा हैरतअंगेज होती है। टेपचू के बारे में सब 
					कुछ जान लेने के बाद आपको भी ऐसा ही लगेगा। 
 टेपचू को मैं बहुत करीब से जानता हूँ। हमारा गाँव मड़र सोन नदी 
					के किनारे एक-दो फर्लांग के फासले पर बसा हुआ है। दूरी शायद 
					कुछ और कम हो, क्योंकि गाँव की औरतें सुबह खेतों में जाने से 
					पहले और शाम को वहाँ से लौटने के बाद सोन नदी से ही घरेलू 
					काम-काज के लिए पानी भरती है। ये औरतें कुछ ऐसी औरतें हैं, 
					जिन्हें मैंने थकते हुए कभी नहीं देखा है। वे लगातार काम करती 
					जाती है।
 
 गाँव के लोग सोन नदी में ही डुबकियाँ लगा-लगाकर नहाते हैं। 
					डुबकियाँ लगा पाने लायक पानी गहरा करने के लिए नदी के भीतर 
					कुइयाँ खोदनी पड़ती है। नदी की बहती हुई धार के नीचे बालू को 
					अंजुलियों से सरका दिया जाए तो कुइयाँ बन जाती है। गर्मी के 
					दिनों में सोन नदी में पानी इतना कम होता है कि बिना कुइयाँ 
					बनाए आदमी का धड़ ही नहीं भींगता। यही सोन नदी बिहार 
					पहुँचते-पहुँचते कितनी बड़ी हो 
					गई है, इसका अनुमान आप हमारे 
					गाँव के घाट पर खड़े होकर नहीं लगा सकते।
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