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                           वरूण
    वैदिक युग का अन्य महत्वपूर्ण
    देवता है। वेदों में वरूण का रूप इतना अमूर्त हैं कि उसका प्राकृतिक
    चित्रण मुश्किल है। माना जाता है कि वरूण की स्थिति अन्य वैदिक
    देवताओं की अपेक्षा प्राचीन है, इसीलिए वैदिक युग में वरूण किसी
    प्राकृतिक उपादान का वाचक नहीं है। अग्नि व इंद्र की अपेक्षा वरूण को
    संबोधित सूक्तों की मात्रा बहुत कम है फिर भी उसका महत्व कम नहीं
    है। इंद्र को महान योद्धा के रूप में जाना जाता है तो वरूण को नैतिक
    शक्ति का महान पोषक माना गया है, वह ऋत (सत्य) का पोषक है।
    अधिकतर सूक्तों में वरूण के प्रति उद्दात्त भक्ति की भावना दिखाई देती
    है। ऋग्वेद के अधिकतर सूक्तों में वरूण से किए गए पापों के लिए क्षमा
    प्रार्थना की गई हैं। वरूण को अन्य देवताओं जैसे इंद्र आदि के साथ
    भी वर्णित किया गया है। वरूण से संबंधित प्रार्थनाओं में भक्ति
    भावना की पराकाष्ठा दिखाई देती है। उदाहरण के लिए ऋग्वेद के सातवें
    मंडल में वरूण के लिए सुंदर 
    प्रार्थना गीत मिलते हैं  
                          हम जानते हैं महिमा तुझ धीर की 
    जिसने थामा है द्यौ और पृथिवी को 
    रचता जो बृहद नक्षत्र और स्वर्ग को 
    ऊंचाई पर भूमि से अलग करता। 
                          मैं कहता हूं, कब कर सकूंगा प्रवेश 
    सशरीर वरूण के महान भुवनों में 
    क्या करेंगे वे स्वीकार मेरी भेंट 
    कब देखूंगा मैं सुख दाता का सुंदर मन? 
                          पूछता हूं हे वरूण, तुमसे 
    दर्शनाभिलाषी हूं, कैसे पाऊं तुमको 
    समान चित वाले विद्वान कहते हैं मुझसे 
    वरूण ही तुम्हारे(दुख) हरने वाला। 
                          हे वरूण! क्या कारण है कि 
    श्रेष्ठ स्तोता मारे जाते? 
    कहे वचन दुर्लभ वाणी से 
    रक्षा करें मेरी, मैं पाऊं तुम्हें नमन कर 
    शीघ्रशीघ्र तर। (ऋग्वेदसातवां मंडल, 86 सूक्त, 14मंत्र)
                           
                          वैदिक युग में वरूण के प्रति जिस तरह की
    भक्ति भावना दिखाई देती है, उतनी संभवतः किसी अन्य देवता के प्रति
    नहीं होगी। उनके भक्त न केवल कुछ पाने की कामना करते हैं बल्कि
    पापमोचन भी चाहते हैं। अधिकतर ऐसे प्रार्थना गीतों में मन के
    उद्गार उसी तरह द्रवित होते हैं जिस तरह किसी भक्त की भावना में
    संभव हैं। इन क्षणों में भक्त अपनी ग़लतियों को स्वीकारता हुआ
    क्षमा प्रार्थना करता है।
                           जो दोष पाए हमने माता पिता से  
    जो दुष्कर्म किए अपने तन से 
    पशुवृति, चोरी आदि पापों के बंधन 
    हे श्रेष्ठ मुक्त करो उन सभी से। 
                          इस तरह की भक्ति भावना वैदिक मंत्रों
    में दुर्लभ है क्यों कि यहां पर स्तोता द्वारा देवता विशेष की प्रशंसा
    करना तो सामान्य भाव है किंतु भक्ति विगलित हो पापा मोचन की
    कामना करना स्वल्प है। वैदिक ऋषि जिस देवता की प्रार्थना करता है उसे
    सर्वश्रेष्ठ स्थापित करने में कोई कमी नहीं रखता। वरूण के लिए भी
    विभिन्न मंत्रों में कहा गया  है कि वरूण के शासन में द्यौ और
    पृथ्वी अलगअलग रहते हैं। उसी ने सूर्य के लिए आकाश पथ का
    निर्माण किया। आसमान में बहने वाला वायु उसका निश्वास है।
    उसी के शासन में चांद रात में संचार करता है, तारे चमकते और
    लुप्त होते हैं। वरूण ही नदियों को प्रवाहित करता है, उसी के शासन
    में वे सतत बहती हैं। उसी की शक्ति से नदियां समुद्र में जा
    मिलती हैं किंतु समुद्र में बाढ़ नहीं आती है। वह उल्टे रखे पात्र से
    पानी टपकाता है और भूमि को आर्द्र करता है। उसी की प्रेरणा से पर्वत
    समुद्र पर आच्छन्न होते हैं।  
                          वरूण की सर्वश्रेष्ठता यही नहीं ही कि वह
    शक्तिमान है, उसकी सर्वज्ञता और मानसिक शक्ति भी भक्तों
    को प्रेरित करती रही है। ऋग्वेद और अथर्ववेद दोनों में वरूण की
    सर्वज्ञता का उल्लेख मिलता है। वह उड़ने वाले पक्षियों की उड़ान
    समझता है, समुद्रगामी पोत का मार्ग जानता है। वह किए गए और किए
    जाने वाले सभी कामों को जानता है। वह मानवों के सत्य असत्य
    का ज्ञाता है। उसकी आज्ञा के बिना कोई प्राणी हिल नहीं सकता है।
    वह पाप से नफरत करता है और पापियों को दंड देता है, किंतु पश्चाताप
    करने वाले को माफ भी कर देता है। वरूण से स्ांब्ांधित कुछ मंत्र
    तो इतने सहज  हैं कि जिन्हें पढ़ कर लगता है कि सामान्य व्यक्ति
    को उस पर कितना विश्वास था
                          
                           हे वरूण, मिट्टी से बना घर मुझे
    प्राप्त न हो। तू मुझे सुखी बना और दया कर। (ऋग्वेद 7899)
                          
                           हे वरूण, जल में रह कर भी मुझे
    प्यास सता रही है। तू मुझे सुखी कर और दया कर।(ऋग्वेद 7894) हे
    वरूण, मनुष्य रूप में जो अपराध मुझसे हुए हों, अविवेकवश जिन
    नियमों का उल्लंघन हमने किया हो, हमें क्षमा करो और हम पर
    क्रोधित न हो।(ऋग्वेद 7895) अथर्ववेद
    के चौथे कांड के सोलहवें सूक्त में एक प्रार्थना है जिसे वैदिक
    प्रार्थनाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।   सभी
    महान वस्तुओं का अधिष्ठाता 
    देखता है सबकुछ ज्यों बैठा हो पास 
    जो कोई विचारता कि उसका गमन है गुप्त 
    यह देव सबकुछ जानता है 
    जो कोई चलता है, जो धोखा देता  है 
    जो छिप कर घूमता 
    दो व्यक्तियों की मंत्रणा में वरूण है तीसरा व्यक्ति 
    यह भूमि वरूण राजा की, वह दूर स्थित द्यौ भी 
    ये दोनो समुद्र वरूण के कक्षी 
    बूंद भर पानी में भी जो रहता 
    पाप कर जो छिप जाए द्यौ में 
    न छूटे वह वरूण के पाश से 
    उसके गुप्तचर स्वर्ग से आते ज़मीन पर 
    सहस्त्र आंखों से भूमि परखते 
    वह सर्वज्ञ वरूण राजा 
    देखते परखते जो कुछ आकाश पृथ्वी मध्य 
    और जो उससे भी है परे 
    जिस तरह जुआरी पांसे चलता 
    वरूण सबका भाग्य चलता 
    हे वरूण तुम्हारे पाश 
    सात गुना सात व तीन तरह से बंधे 
    वे नष्ट करें असत्यवादियों को 
    सुख शांति दे सत्य वादियों को 
    तुम देखते हो सभी नरों को विवेक से 
    मिथ्याभाषी न बचे तुमसे 
    नष्ट हो जाए वह जलोदर से 
    (सरल अनुवाद) इस तरह वैदिक
    युग में वरूण की स्थिति एक सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सत्यवादी
    देवता के रूप में दिखाई देती है। वस्तुतः महत्व की दृष्टि से वरूण का
    महत्व इंद्र से कम नहीं था। किंतु परवर्ती युग में वरूण का स्थान
    सीमित होता गया। उसकी सार्वभौमिकता नष्ट होती गई और वह समुद्र
    के देवता के रूप में स्थापित होता गया। महाभारत
    में वरूण को अदिति के गर्भ से उत्पन्न बारह आदित्यों में से एक
    माना गया है। (महाभारतआदिपर्व65/15) इनकी ज्येष्ठ देवी से
    इनको बल नामक एक पुत्र और सुरा नामक एक पुत्री
    थी।(महाभारतआदिपर्व66/52) महर्षि वशिष्ठ इनके पुत्र रूप में
    उत्पन्न हुए थे। (महाभारतआदिपर्व122/66)  इन्हें चौथे
    लोकपाल के रूप में भी माना जाता था। इन्होंने अर्जुन को पाश नामक
    अस्त्र दान दिया था,(म .भ . वनपर्व 41 . 2732) ऋचीक नामक ऋषि को
    एक हज़ार श्यामकर्ण घोड़े दान किए थे(म .भ . वनपर्व 115/27) और
    स्कंद को एक हाथ दिया था।(म .भ . शल्य 46/52,अनु 86/25)  पुराणों
    की कथाओं में प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में वरूण ने सहायता की थी।
    दैत्य कुंभज से संग्राम के समय महिषासुर वरूण को निगलने को
    लपका, उस वक्त चंद्रमा ने सोम अस्त्र छोड़ कर वरूण की रक्षा की
    थी।(मत्स्य पुराण1/150) महाभारत
    में एक ऐसी कथा है जिससे वरूण के चारित्रिक पतन की ओर इशारा जाता
    है। राजा सोम की पुत्री भद्रा बहुत सुंदर और गुणवती थी। सोम ने
    ऋषि उतथ्य को पुत्री के अनुकूल माना। भद्रा भी उतथ्य को पति रूप में
    पाने के लिए तपस्या करने लगी। सोम को पिता महर्षि अत्रि ने अपनी पुत्री
    का विवाह उतथ्य से करवा दिया किंतु राजा वरूण भद्रा पर पहले से
    आसक्त थे। एक बार जब भद्रा यमुना नदी के तट पर स्नान कर रही थी
    तो वरूण उसका अपहरण करके ले गए। वे उसको अपनी रानी बना कर सुख
    पूर्वक रहने लगे। नारद ने यह समाचार उतथ्य को दिया तो उतथ्य 
    ने नारद को अपना दूत बना कर वरूण के पास भेजा और भद्रा को
    छोड़ने की विनती की। वडण ने किसी की बात नहीं मानी। तब उतथ्य ऋषि
    वरूण के पास गए और उस स्थान का सारा जल पी गए। स्थान ऊसर हो
    गया तो सरस्वती को आज्ञा दी कि वह मरूस्थल में चली जाए। सब
    ओर सूखे का कष्ट व्यापत हो गया तो वरूण ने भद्रा को वापिस कर
    दिया।(महाभारत  अनुशासन पर्व  154) यद्यपि
    यह कथा ब्राह्मण महत्व स्थापित करने के लिए कही गई है किंतु हमारे
    मन में यह जिज्ञासा पैदा होती है कि जो देवता सत्य का प्रतिष्ठाता
    था वही बलात्कारी कैसे बन गया। चरित्र परिवर्तन की दृष्टि के कारणों
    को खोजने पर हमें तत्कालीन सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तनों की
    जानकारी मिल सकती है। फिर इसमें
    कोई संदेह नहीं कि वरूण वैदिक काल का एक ऐसा देवता  है
    जिसने लोगों को मन और मस्तिष्क पर राज्य किया, तथा जिसने
    लोगों के मन में ग़लत काम के प्रति भय बनाए रखा।
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