|
दोपहर के ठीक
एक बजे 'टिंग टिंग...' दो बार हल्के से दरवाज़े की घंटी बजी थी,
परंतु उस संक्षिप्त अवधि की घनघनाहट से कम्पित वायु की
प्रत्येक तरंग का उतार चढ़ाव मुझे ऐसा लग रहा था कि कोई मुझे
गहन निद्रा से कोंच कोंच कर जगा रहा हो। दिन हो या रात, जाग्रत
होते हुए भी अपने को तंद्रा की ऐसी अवस्था में समेट लेना, जहाँ
बाहरी ध्वनियों अथवा प्रकाश का प्रवेश बलपूर्वक ही
कराया जा सके, मेरा स्वभाव बन
चुका था।
उन्नीस दिसम्बर, १९७१ की
वह कोहरा से आच्छादित रात्रि मेरे मन व शरीर दोनों मे बर्फ सी
जम गई थी। उस समय मैं गहरी निद्रा में लीन थी कि इसी प्रकार
टिंग टिंग. . . की घंटी उस रात्रि भी बज उठी थी। मैं और मेरे
पति राजेश दोनों किसी अनहोनी की आशंका के साथ जाग उठे थे।
राजेश ने शीघ्रता से पलंग से उठकर खूँटी पर टँगा शाल ओढ़ लिया
था और बिजली का स्विच आन कर दिया था। बल्ब की तेज़ रोशनी में
मेरी आँखें उसी प्रकार चुँधिया गई थी जिस प्रकार ३ दिसम्बर को
भारत द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम में कूद
पड़ने की खबर पाकर मेरा मन चुंधिया गया था।
पश्चिमी
सेक्टर में किसी अज्ञात स्थान पर मेरा एकमात्र बेटा कैप्टन
सुजीत पाकिस्तानी सेनाओं के आमने सामने नियुक्त था। फिर
पाकिस्तान ने पश्चिमी
|