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अनुभूति

9. 2. 2006 

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पिछले सप्ताह

हास्य व्यंग्य में
डा नरेन्द्र कोहली की रचना
लंदन का कोट

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ललित निबंध में
डॉ श्रीराम परिहार का आलेख
सम्मान के चीते पर सवार

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फुलवारी में
स्वीडन, नीदरलैंड और नॉर्वे से पहचान
साथ ही शिल्प कोना में
फोटो फ्रेम में सजाएं गैंडा

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साहित्य समाचार में
नयी दिल्ली में धूमधाम से मनाया गया
चतुर्थ प्रवासी हिंदी उत्सव

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कहानियों में
भारत से उषा महाजन की कहानी
बचपन

उन्होंने बच्ची को उत्साह में भरकर देखा था कि नये फ्रॉक के बाद, साबुन की नयी टिकिया, दूसरे नये कपड़ों और बालों के लिए बढ़िया क्लिपों के मिलने का सुनकर लड़की की क्या प्रतिक्रिया होती है। लेकिन बच्ची के निर्विकार, निरपेक्ष चेहरे पर वे कुछ भी मनचाहा नहीं पढ़ पाई थीं और मन ही मन कुढ़ी थीं, 'ये गरीब लोग भी कितने घुन्ने हो गए हैं आजकल! अभी ज़रा–सी है और चालाकी का आलम यह कि भनक भी नहीं लगने दे रही कि इतना सब मिल रहा है उसे यहां, कब सोची थी उसने या उसकी काकी ने— खासी पगार, बढ़िया खाना–पीना, साबुन–तेल, कपड़ा– लता, कंघा– आइना– सब।

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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से प्रत्यक्षा की कहानी
पिकनिक

अभी निरंजन आएंगे वापस। थोड़ा खीजते हुए, "कहां अटक जाती हो, जिया। चलो न आगे उस पहाड़ी के पीछे। यहीं रूक जाओगी क्या?" नहीं जिया को आज भागना नहीं है। आज अपने हिसाब से जिया चलेगी। जितनी देर जहां रूकना है वहां रूकेगी। और अगर आगे नहीं जाना तो बस नहीं जाएगी। आज निरंजन वाली भागदौड़ नहीं। आज जिया का ठहराव होगा। धीरे–धीरे इत्मीनान से जिया चल रही है। पीछे लटके झोले से एक चॉकलेट निकालकर खाते हुए, हल्की नर्म धूप में यों चलते जाना, बिना किसी गंतव्य पर पहुंचने की हड़बड़ाहट में। जिया के अंदर एक खुशी कांपती है, दिये की लौ सी। 

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मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में
आई कविताई की बाढ़

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महानगर की कहानियां में
रविशंकर श्रीवास्तव की लघुकथा
गति सीमा

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रसोईघर  में
माइक्रोवेव अवन में तैयार करें
भरवां बंदगोभी

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साहित्य समाचार में
बल्गारिया की राजधानी में मनाया गया
हिंदी दिवस

सप्ताह का विचार
नेकी से विमुख हो बदी करना निसंदेह बुरा है। मगर सामने मुस्काना और पीछे चुगली करना और भी बुरा है।
संत तिरूवल्लुवर

 

अनुभूति में

गीतों, मुक्तकों, दोहों, हाइकुओं
और
नयी हवा के अंतर्गत
ढेर सी नयी
रचनाएं

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
मोहभंग–वीना विज उदित
बच्चा–ज्ञानप्रकाश विवेक
बाज़ार बाज़ार–राजनारायण बोहरे
पासपोर्ट के रंग–तेजेन्द्र शर्मा
पापा तुम कहां हो–अलका प्रमोद
गर्म कोट–राजेन्द्रसिंह बेदी
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हास्य व्यंग्य में
पुलिसियाने में क्या हर्ज़ है–अतुल चतुर्वेदी
गधा विवाद में नहीं पड़ता–गुरमीत बेदी
शकुनी मामा–रामेश्वर कांबोज 'हिमांशु'
नया साल मुबारक हो–डा नरेन्द्र कोहली
°

प्रौद्योगिकी में
रमण कौल समझा रहे हैं कि कैसे
चेन मेल की चेन खींच दें

°

पर्यटन में
सूरज जोशी का यात्रा विवरण
न्यूज़ीलैंड का नैसर्गिक सौंदर्य

°

परिक्रमा में
बृजेश कुमार शुक्ला का आलेख 
नये कीर्तिमान

°

संस्कृति में
मीरा सिंह बता रही हैं कि कैसे उठती है
तुलसी की डोली
°

चिट्ठा–पत्री में
चिठ्ठा पंडित  के नए पंचांग से
दिसंबरी चिठ्ठे
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साहित्यिक निबंध में
देवेन्द्रराज अंकुर का आलेख
 गली गली में नुक्कड़ नाटक

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

   

 

 
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