| बाहर ज़ोरों की आँधी आई थी मानो टीन और छतों को 
सामना करने के लिए ललकार रही हो। खिड़की की झिर्री से प्रवेश करती वायु विचित्र-सी 
सीटी के समान ध्वनि उत्पन्न कर रही थी, कि तभी आँधी के कारण बिजली चले जाने से 
वातावरण और भी रहस्यमय हो उठा।  इतने बड़े घर में एकाकी बैठे रामेश्वर जी का हृदय 
अज्ञात आशंका से काँप उठा वह सोचने लगे कि यदि इस भयावह रात में उन्हें कुछ हो जाय 
तो वह किसे पुकारेंगे? उनकी हृदय गति रुक जाए तो पता नहीं वह कब तक यों ही पड़े 
रहेंगे, संभवत: लोगों को पता भी तब चलेगा जब उनकी देह से दुर्गंध आने लगेगी।  अपनी इस वीभत्स कल्पना मात्र से ही वह सिहर उठे और 
अपने विचारों को झटक कर मोमबत्ती ढूँढ़ने का प्रयास करने लगे। उन्हें याद भी नहीं आ 
रहा था कि घर में मोमबत्ती है भी कि नहीं और यदि है भी तो कहाँ रक्खी है। यह सब तो 
मालती का दायित्व था, उन्होंने कभी यह जानने का प्रयास भी नहीं किया कि घर में क्या 
है और क्या नहीं है।  उन्हें यह भी पता नहीं रहता था कि उनके पास कितने 
कपड़े हैं और किस शर्ट के साथ कौन-सी पैंट पहननी है, वह तो दुकान पर जाने से पूर्व 
मालती को आवाज़ देते, "मालती, हमारे कपड़े निकाल दो" और कपड़े उन्हें हाथों-हाथ मिल 
जाते।   |