गेट खुलने की आवाज़-सी आई। मैंने
एक पल के लिए अपना ध्यान आवाज़ पर केंद्रित किया। मैं कमरे में
था - किताब पढ़ता हुआ।
गर्मी के दिन थे। गली वीरान
थी। लोग घरों में थे। मैं अपने कमरे में। मैंने जाली वाला
दरवाज़ा बंद कर रखा था। चिटखनी नहीं लगाई थी। जाली वाले
दरवाज़े का डोर क्लोज़र दरवाज़े को बंद होने की स्थिति में ला
खड़ा करता था।
मेरा ध्यान अब भी गेट की तरफ़
था। गेट खुलने की आवाज़ आई ज़रूर थी। शायद साथ वाले पड़ोसी के
घर का गेट खुला हो - मैंने सोचा। दोनों के एक जैसे गेट हैं।
आवाज़ें भी कमोबेश एक जैसी।
अचानक जाली वाला दरवाज़ा
खुला। एक बच्चे ने दरवाज़े को आधा खोलते हुए और उसमें से अपने
चेहरे को निकालते हुए मुझे देखा। मुझे देखकर मुस्कराया। मैंने
उसे देखा। हैरान होकर देखा। लेकिन वह मुस्कराया, तो मैं भी
मुस्कराया। वैसे मुस्कराने जैसा मेरे पास कुछ था नहीं। फिर भी
मैं मुस्कराया। शायद बच्चे को देखकर। फिर वह झीनी-सी मुस्कान
लोप हो गई। हैरान रह गई। मेरी हैरानी समझदार थी। सयानी भी। उस
बच्चे की मुस्कान मासूम थी। मैं कुछ कहता कि वह बड़ी प्यारी-सी
आवाज़ में बोला, "हम आ जाएँ?"
|