मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


पर्यटन

न्यूजीलैंड का नैसर्गिक सौंदर्य

ड्यूनेडिन नगर का एक विहंगम दृश्य

—डॉ . सूरज जोशी

सन दो हज़ार पाँच के बड़े दिन की छुट्टी में मुझे न्यूज़ीलैंड के दक्षिणी द्वीप और कुछ अन्य भागों की सैर करने का एक अनोखा मौका मिला, जब मेलबोर्न में रहने वाले मेरे एक 'कीवी' मित्र ने मुझे अपने घर आने का निमंत्रण दिया। न्यूज़ीलैंड की रोमांचक छवि के चलते और ऑस्ट्रेलिया में टीवी पर आकर्षक विज्ञापन देखने के बाद मैं इस प्रलोभन को ठुकरा न पाया और हम दोनों ने आख़िरकार न्यूज़ीलैंड की दस–दिवसीय भ्रमण–योजना बना ही डाली।

२४ दिसंबर की सुबह की मेलबोर्न से ड्यूनेडिन की फ्रीडम एयर की उड़ान काफ़ी रोमांचकारी रही। करीब सवा लाख की आबादी वाला ड्यूनेडिन नगर न्यूज़ीलैंड के ओटागो प्रांत की राजधानी है और यह क्राइस्टचर्च के बाद दक्षिणी द्वीप का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। हवाईअड्डे पर मेरे मित्र के परिवारजन हमें लेने के लिए आ रहे थे, इसलिए मैं बिल्कुल निश्चिंत हो कर विमान से नीचे धरती के बदलते हुए परिवेश को निहार रहा था। तस्मान सागर पार करने के बाद न्यूज़ीलैंड के दक्षिण–पश्चिम में स्थित अदभुत प्रांत फ़ियोर्डलैण्ड के दर्शन हुए। फ़ियोर्डलैण्ड में सामान्यतः कोई आबादी नहीं बसी हुई है। यहाँ बस आड़ी–तिरछी लकीरों की तरह नीला समुंदर हिमाच्छादित पहाड़ियों को चीरते हुए धरती पर अपना रास्ता बनाता हुआ दिखाई देता है। न्यूज़ीलैंड की सबसे बड़ी झील 'वाकाटिपू' और इसके मनोहारी तट पर बसा नगर क्वींसटाउन भी आकाश से दिखाई पड़ा। कुछ समय पश्चात ड्यूनेडिन हवाईअड्डे पर उतर कर मेरे मित्र के परिवारजन हमें देख कर भाव–विभोर हो उठे।

हम उनकी कार में बैठकर न्यूज़ीलैंड के आठवें सबसे बड़े नगर इन्वर्कारगिल की तरफ़ चल पड़े तीन घंटे के इस सफ़र में ओटागो और साउथलैण्ड प्रांतों की ऊँची– नीची पहाड़ियों पर हरी–भरी घास पर चरती भेड़ों, गायों और हिरणों को देख कर हृदय प्रफुल्लित हो उठा। ऑस्ट्रेलिया के वीराने रेगिस्तानी भूमिपरिवेश से कहीं दूर न्यूज़ीलैण्ड में सर्वत्र ऐसी हरीतिमा देख क
र यह मानना असंभव–सा प्रतीत होता है कि यह दोनों देश ओशिएनिया में एक–साथ गिने जाते हैं।

२४ दिसंबर व क्रिसमस का दिन हमने इन्वर्कारगिल में ही बिताया। ५० हज़ार की आबादी वाला इन्वर्कारगिल शहर अपनी चौड़ी–चौड़ी सड़कों व क्वींस पार्क के लिए जाना जाता है। क्रिसमस की शाम को मेरे मित्र के कुछ अन्य संबंधी भी घर पर आए और हम सब ने मिलकर स्वादिष्ट क्रिसमस भोज का आनंद उठाया।

अगले दिन का कार्यक्रम था – न्यूज़ीलैंड के तीसरे द्वीप स्ट्युअर्ट आईलैण्ड के लिए प्रस्थान। अधिकांश लोगों ने इस द्वीप के बारे में सुना ही नहीं होता है। न्यूज़ीलैंड सरकार के शासन के तहत स्ट्युअर्ट द्वीप के अलावा औकलैंड व कैम्पबैल जैसे कई अंतः–अंटार्कटिक द्वीप भी आते हैं, पर कड़ाके की ठंड के कारण वैज्ञानिकों व पशु–पक्षियों के अतिरिक्त इन द्वीपों पर कोई नहीं रहता स्ट्युअर्ट द्वीप पर केवल एक ही कस्बा है – ओबन। सरकार ने द्वीप का ८२ प्रतिशत भाग मानव की विकासलीलाओं से बचा कर रैकुरा राष्ट्रीय उद्यान के रूप में भविष्य के लिए सुरक्षित बना कर रखा है। स्ट्युअर्ट द्वीप वस्तुतः कई छोटे–छोटे द्वीपों का एक समूह है, जिनमें से उल्वा द्वीप अपने अनोखे पक्षी उद्यान के लिए विशेषकर जाना
जाता है।

ब्लफ का नीलाभ सागर जलइन्वर्कारगिल से करीब २० मिनट की बस यात्रा से न्यूज़ीलैंड के दक्षिणतम शहर ब्लफ़ पहुँच कर हमने नाव द्वारा ओबन के लिए प्रस्थान किया। वैसे तो विशेष छोटे आकार के विमानों द्वारा भी स्ट्युअर्ट द्वीप पर शीघ्रता से पहुँचा जा सकता है। ब्लफ़ से नाव द्वारा यहाँ जाने में करीब एक घंटे का समय लगता है।

दक्षिण प्रशांत महासागर का यह भाग इतना गहरा नीला है जितना मैंने और कहीं नहीं देखा। पानी भी कुछ ज़्यादा ही ठंडा और खारा है ओबन कस्बे में नाव के पहुँचते ही पहले हम अपने होटल में सामान रखने के लिए गए, और फिर गर्मा–गर्म भोजन का स्वाद उठाया। सामने समुद्र–तट पर छोटी–छोटी अनेकानेक निजी नावें लहरों पर थिरकती हुई बहुत सुंदर लग रही थीं। भोजन के बाद मनमोहक प्रकृति का लुत्फ़ उठाते हुए हम पहाड़ियों पर घूमने चल पड़े पूरा का पूरा दिन न जाने कैसे बीत गया पता ही न चला।

भूमध्य रेखा से काफ़ी दक्षिण में होने के कारण ग्रीष्म–ऋतु में पृथ्वी के इस भाग में सूर्योदय बहुत तड़के व सूर्यास्त रात में काफ़ी देर से होता है, इसलिए दिन में लगभग १६–१७ घंटे का प्रकाश रहता है। पर्यटकों के लिए तो यह और भी अच्छा है, क्योंकि इसके चलते वे पूरे दिन–भर घूम सकते हैं। हमने भी अगले दिन उल्वा द्वीप में प्रकृति की १६–१७ घंटे की मनोहारी छटा का भरपूर आनंद उठाया। उल्वा द्वीप के राष्ट्रीय प्राणी उद्यान में न्यूज़ीलैंड के कीवी पक्षी के दिव्य–दर्शन तो नहीं हो पाए, परंतु वीका पक्षी के शिशुओं समेत एक पूरे परिवार को निकट से देख कर मानो यहाँ आने का लक्ष्य साकार हो
गया। और भी कई प्रकार के तोते, मैना और बहुरंगी चिड़ियाँ देख कर हम ब्लफ़ की ओर नाव से रवाना हो गए।

स्ट्युअर्ट द्वीप समूह से वापस आने और छुट्टी बचाने के उद्देश्य से मेरे मित्र ने यह सुझाव दिया कि क्यों न हम नववर्ष की पूर्वसंध्या तक का समय इन्वर्कारगिल और साउथलैण्ड में ही गुज़ारें। वैसे भी वह कुछ और समय अपने माता–पिता के
साथ बिताना चाहता था मैंने भी हामी भर दी और अगले दिन हम इन्वर्कारगिल देशाटन के लिए निकल पड़े। नगर का मुख्य भाग छुट्टियों के लिए किसी नववधू की तरह सजाया हुआ था। हमने पूरा दिन यहाँ के ऐतिहासिक क्वींस पार्क और संग्रहालय में गुज़ारा क्वींस पार्क में मैंने न्यूज़ीलैंड के देशीय वुड पिजीयन को अपने प्राकृतिक माहौल में देखा। हरे रंग के वक्षस्थल और भूरे रंग के शरीर वाला यह वृहदाकारी कबूतर न्यूज़ीलैंड के बड़े आकार के फलों के बीज फैला कर यहाँ के पर्यावरण के संरक्षण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पार्क के नज़दीक ही एक पक्षी–उद्यान में यहाँ के कई अन्य देशीय पक्षियों के दर्शन भी हुए, पर अभी तक न्यूज़ीलैंड के राजपक्षी कीवीदेव हमारे साथ लुका–छिपी का खेल खेलते रहे। मैं इस बात को लेकर थोड़ा उद्विग्न था कि क्या हम न्यूज़ीलैंड आ कर भी कभी कीवी देख पाएँगे अब तक हमें कीवी क्यों न दिखा इस बात का रहस्य तो दो दिन बाद क्वींसटाउन पहुँच कर ही प्रकट हुआ।

अग
ले दिन हम भेड़ की ऊन काटने की प्रक्रिया देखने के लिए ओहाई ग्राम में एक कृषक के घर पहुँचे। न्यूज़ीलैंड में भेड़–पालन व ऊन–उद्योग काफ़ी अच्छी तरह से विकसित है और यहाँ की अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भेड़ों की रखवाली में कुत्तासंतानोत्पत्ति के महीनों में तो यहाँ भेड़ों की आबादी मानव जनसंख्या की सात गुना हो जाती है और रमादान के पावन महीने में ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड से पानी के जहाज भर–भर कर भेड़ें और मेमने हलाल के लिए मध्य–पूर्व के देशों में पहुँचाए जाते हैं। यहाँ कृषक के भेड़–फ़ार्म में करीब २०० भेड़ों का झुंड एक दड़बे में खड़ा दिखाई पड़ा। तीन भेड़ के रखवाले कुत्ते चारों तरफ़ से भौंक–भौंक कर भेड़ों का नियंत्रण कर रहे थे।

एक अन्य कमरे में तीन कर्मचारी भेड़ों को इलेक्ट्रॉनिक क्लिप्परों की सहायता से मूँड रहे थे और क्लिप्पर की आवाज़ से घबराई हुई बेचारी भेड़ें असहाय–सी कर्मचारियों के हाथों में छटपटा रही थीं। मेरे लिए जीवन में ऐसा पहला अवसर था और करीब एक घंटे तक हमने इस हास्यप्रद माहौल का पूरा मज़ा उठाया। वहाँ से निकल कर हम कार में बस ऐसे ही घूमते–घामते न जाने कैसे फ़ियोर्डलैण्ड की सीमा पर स्थित न्यूज़ीलैंड की सबसे गहरी झील 'हॉरोका' के तट पर पहुँच गए। झील के स्पष्ट जल व किनारे के घने जंगलों को निहार कर स्वर्ग का आनंद आ गया। हॉरोका झील न्यूज़ीलैंड के एक माओरी
समुदाय द्वारा 'टापू', यानि पवित्र मानी जाती है, क्योंकि इस समुदाय का मानना है कि यहाँ उनके पितरों की आत्माएँ निवास करती हैं। अन्य किसी माओरी समुदाय के लोगों का यहाँ आना निषिद्ध है, पर हमें किस बात की चिंता – हम माओरी तो नहीं। कितनी ही देर बस झील के तट पर यों ही चुपचाप बैठे रहने के बाद हम वहाँ से वापस इन्वर्कारगिल की ओर चल पड़े। रास्ते में एक दुकान से तस्मान सागर की ताज़ी पकड़ी हुई ब्लू–कॉड मछली ख़रीद कर मित्र के परिवारजनों के साथ घर पर उसका जम के आनंद उठाया।

अगले दिन नववर्ष की पूर्वसंध्या थी मित्र के परिवारगणों से विदा ले कर हम इन्वर्कारगिल से क्वींसटाउन के लिए चल पड़े। दो घंटे के इस सफ़र में प्रकृति के ऐसे दिव्य–दर्शन हुए जिसे मैं कभी भुला नहीं सकता। वाकाटिपू झील के तट पर बसा और रिमार्केबल्स पर्वत–शृंखला से घिरा क्वींसटाउन शहर 'विश्व की रोमांच राजधानी' के नाम से जाना जाता है। यहाँ आपको मनोरंजन व रोमांचक क्रीड़ाओं का कौन सा साधन नहीं मिल सकता!

यहाँ पहुँचने के तुरंत बाद टाइटेनिक से भी पुराने वाष्प–चालित जलपोत 'टी एस एस अर्नस्लॉ' पर डेढ़ घंटे की वाकाटिपू झील की हमारी सैर बेहद हृदयाह्लादक रही इस नौकायन के बाद नववर्ष पूर्वसंध्या के रात के कार्यक्रम के लिए तैयार होने के लिए हम अपने अपने ब्रेड एण्ड ब्रेकफ़ास्ट होटल में आराम करने के लिए चले गए।

नववर्ष की पूर्वसंध्या के लिए पूरा नगर रुचिकर तरीके से सजाया हुआ था हमने एक कोरियाई रेस्तरां में ऑक्टोपस स्ट्यू का भोजन किया और झील के तट पर बैठे हुए हम घड़ी की सुई के १२ बजने का इंतज़ार करने लगे। ज्यों ही घड़ी की सुइयाँ मिलीं, त्यों ही झील के अंधकार में छिपी एक नौका से आसमानी आतिशबाजी छूट पड़ी चारों तरफ़ संगीत की धुनें और तीव्र हो गईं और कुछ नौजवान लोग हड़कंप मचाने लगे। वैसे तो पुलिस ने सार्वजनिक क्षेत्रों में मदिरापान पर प्रतिबंध लगा रखा था करीब १५ मिनट तक की शानदार आतिशबाजी देख कर हृदय पुलकित हो गया।

पहली जनवरी का दिन पूरे भ्रमण काल का सबसे यादगार दिन रहा। हम प्रातः तड़के ही उठ कर घूमने के लिए चल पड़े। सूर्यदेव आज बादलों के साथ लुका–छिपी का खेल खेल रहे थे और जल्द ही मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई पर हम युवाओं को पानी या ठंड की क्या चिंता – बारिश में भीगते–भागते हम बॉब पीक की गोंडोला राइड के स्टेशन की ओर जा ही रहे थे कि मेरी नज़र कीवी–हाउस नाम के एक पक्षी–विहार के मुख्य–द्वार पर पड़ी। एकाएक दिल में आया कि हो सकता है यहाँ हमें कीवी पक्षी के दर्शन हो जाएँ आव देखा न ताव – बस हम दोनों महँगे टिकट के बावजूद भी विहार–भ्रमण के लिए अंदर चले गए। विश्व की नवीनतम स्वचालित श्रवण–तंत्र तकनीक से युक्त यह विहार अपने–आप में एक अनोखा अनुभव था। मैं ध
न्य हो गया जब एक कृत्रिम अंधकारमय गुहा में मुझे एक मादा कीवी के दिव्य–दर्शन हुए।

वस्तुतः कीवी एक उड़ानहीन, बड़े आकार का पक्षी होता है जो कभी न्यूज़ीलैंड में लाखों की संख्या में पाया जाता था, परंतु १२वीं सदी में माओरी समुदाय के पदार्पण और फ़िर श्वेत उपनिवेशकों द्वारा बिल्लियों, कुत्तों और सियारों जैसे भक्षक पशुओं के छोड़े जाने के कारण अब यहाँ मात्र ७०,००० कीवी ही बचे हुए हैं। मादा कीवी का अंडा उसके भार का २०–३० प्रतिशत होता है – यानि कि पक्षी–जगत के हिसाब से बहुत बड़ा – और नर कीवी अंडे सेने और फ़िर चूजे की देखभाल करने का काम करता है। यह तथ्य भी यहाँ उजागर हुआ कि कीवी रात का प्राणी है, दिन का नहीं – अब समझ में आया कि उल्वा द्वीप व इन्वर्कारगिल के पक्षी उद्यान के दिन के भ्रमण में हमें कीवी क्यों न दिखाई पड़ा। वैसे भी मुक्त रूप से जंगलों में घूमने वाले अब बहुत कम कीवी बचे हुए हैं। कीवी के अलावा इस पक्षी–विहार में हमने टुआटारा नामक डायनासोर काल की न्यूज़ीलैंड की एक मूल छिपकली भी देखी। टुआटारा अब विश्व में कहीं और नहीं पाई जाती। यहाँ मा
ओरी ग्राम की एक अनुकृति भी थी जिसके माध्यम से माओरी समुदाय की दैनिक जीवन–शैली के बारे में विस्तृत जानकारी भी मिली।

कीवी दर्शन के बाद अपनी इस विजयश्री पर स्वयं को सराहते हुए हम गोंडोला स्टेशन की ओर निकले समुद्र–तल से करीब ८०० मीटर ऊँची बॉब चोटी पर जाने के लिए स्काईलाइन कंपनी ने यहाँ एक गोंडोला–तंत्र का निर्माण किया है। करीब १० मिनट की यह यात्रा बहुत ही रोमांचक रही और चोटी पर पहुँच कर हमें नीचे क्वींसटाउन नगर का विहंगम दृश्य देखने को मिला। शीत–ऋतु में यहाँ बर्फ़ जमी रहती है और जम कर स्कीइंग की जाती है आजकल तो यहाँ बर्फ़ नहीं थी, पर थोड़ी ही दूरी पर बंजी–जंपिंग और फ्री–स्विंग क्रीड़ाओं का आनंद उठाते पर्यटकों को देख कर दिल दहल गया। ऊँची चोटी से गुरूत्वाकर्षण द्वारा सीधे नीचे गिरते हुए भारहीनता कैसी प्रतीत होती होगी, मैं तो इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता बस दू
र से ही उन पर्यटकों को इतनी ऊँची चोटी से नीचे गिरते देख कर रोमांच का मुफ़्त में आनंद उठा लिया।

गोंडोला से नीचे क्वींसटाउन नगर आने तक हम बारिश में पूरी तरह भीग चुके थे और फ़िर कुछ करने का साहस नहीं रह गया था। रात भी ढल रही थी मित्र ने सुझाव दिया कि क्यों न गर्म भोजन कर सिनेमा देखने चला जाए। सुझाव पसंद आया और हम एक तुर्क रेस्तरां में मेमने के कबाब का आनंद उठा कर बॉक्सिंग डे को निकली ज़बर्दस्त फ़िल्म 'नार्निया' देखने गए। इसकी शूटिंग न्यूज़ीलैंड में ही की गई थी और आजकल यह हॉलीवुड में ब्लॉकबस्टर चल रही थी। रात में १२ बजे फ़िल्म समाप्त होने के बाद टैक्सी द्वारा हम अपने ब्रेड एण्ड ब्रेकफ़ास्ट होटल चले आए।

अब हमारा भ्रमण–काल ख़त्म होने को आ रहा था अगले दिन हम बस द्वारा क्वींसटाउन से ड्यूनेडिन के लिए निकल पड़े। चार घंटे के सफ़र के बाद ड्यूनेडिन पहुँच कर एक बैकपैकर्स में रात के लिए कमरा ले लिया। अगले दिन वापस मेलबोर्न की उड़ान दोपहर में थी, अतः सवेरे ड्यूनेडिन के कला–संग्रहालय व फ़र्स्ट चर्च देखने की योजना बनाई गई। दोनों ही स्थान काफ़ी पसंद आए।

अब न्यूज़ीलैंड से विदा लेने का समय आ गया था। विमान से क्राइस्टचर्च व मेलबोर्न की ओर प्रस्थान करते समय इस यादगार यात्रा का स्मरण करते हुए हृदय भाव–विभोर हो उठा व मन ही मन हमने संकल्प किया कि एक दिन फ़िर से न्यूज़ीलैंड की नैसर्गिक सुंदरता देखने अवश्य आएँगे।

२४ जनवरी २००६

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।