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58–साहित्य समाचार

दिल्ली में चतुर्थ प्रवासी हिंदी उत्सव की धूम – 1

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प्रवासी पराया नहीं है‚ निवेशक मात्र नहीं है बल्कि प्रियवासी है' भारत से बाहर विदेशों में बसे हिंदी साहित्यकारों‚ विद्वानों का तीन दिवसीय 'चतुर्थ प्रवासी हिंदी उत्सव' इस कथन को रेखांकित करते हुए संपन्न हुआ। यह त्रिदिवसीय उत्सव 20–21–22 जनवरी‚ 2006 के दौरान दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी और अक्षरम द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया।
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समिधा काव्य संग्रह के लिए डा लक्ष्मीमल्ल सिंघवी अंतर्राष्ट्रीय कविता सम्मान–2006 ग्रहण करती
बर्मिंघम यू के की कवयित्री शैल अग्रवाल

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक श्री पवन वर्मा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डा. गोपीचंद नारंग और अक्षरम के मुख्य संरक्षक डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यक्रम में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की उपमहानिदेशक श्रीमती मोनिका मोहता‚ भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी श्री मधुप मोहता तथा साहित्य अकादमी की ओर से सचिव श्री के. सचिदानंदन की भागीदारी रही। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की ओर से गगनांचल के संपादक श्री अजय गुप्ता तथा साहित्य अकादमी की ओर से उपसचिव श्री ब्रजेंद्र त्रिपाठी ने समन्वय किया। हिंदी भवन और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने भी अपना भवन प्रदान कर कार्यक्रम में सहयोग किया। तीन दिन के इस उत्सव का संयोजन अक्षरम के अनिल जोशी ने किया। नरेश शांडिल्य और राजेश जैन चेतन ने दिन–रात परिश्रम कर कार्यक्रम के संयोजन में महत्वपूर्ण सहयोग दिया।

'डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी अंतर्राष्ट्रीय कविता सम्मान' 
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद‚ साहित्य अकादमी और अक्षरम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित चतुर्थ प्रवासी हिंदी उत्सव के प्रारंभ में ही जब 20 जनवरी को दिल्ली में अणुव्रत भवन में 'डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी कविता सम्मान' श्रीमती शैल अग्रवाल( बर्मिंघम‚ यू.के.) को उनके काव्य संग्रह 'समिधा' के लिए प्रदान किया गया तो उस समारोह में वक्ताओं ने प्रवासी शब्द की संकल्पना को व्यापक एवं मार्मिक बनाए जाने पर बल दिया। इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि‚ 'हिंदी जगत' नामक पत्रिका के प्रबंध संपादक डा. सुरेश ऋतुपर्ण ने विदेशों में लिखे जा रहे हिंदी साहित्य के बिना हिंदी साहित्य के इतिहास को अधूरा बताया‚ वहीं दूसरी ओर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त रहे‚ प्रख्यात मनीषी डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने कहा कि "भारत का भूमंडलीकरण तो हो ही रहा है‚ आज ज़रूरत इस बात की है कि भूमंडल का भारतीयकरण हो।" डा. पद्मेश गुप्त ने डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी अंतर्राष्ट्रीय कविता सम्मान की विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम में नाटिंघम से पधांरी कवयित्री जयं वर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। हिंदी भवन के डा. गोविंद व्यास ने प्रवासी शब्द के स्थान पर भारतवंशी शब्द के प्रयोग का सुझाव दिया‚ वहीं धन्यवाद ज्ञापित करने आए अक्षरम के संरक्षक प्रसिद्ध कवि डा. अशोक चक्रधर ने 'प्रवासी' शब्द में ही आत्मीयता और रस भरने का आह्वान किया। 'समिधा' काव्य संग्रह की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए अक्षरम संगोष्ठी के संपादक नरेश शांडिल्य ने एक विस्तृत आलेख पढ़ा। कार्यक्रम का संचालन अक्षरम के अध्यक्ष राजेश चेतन ने किया।

प्रवासी नाटक 'कैमलूप्स की मछलियां' का मंचन 
20 जनवरी को ही रात्रि में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अभिमंच प्रेक्षागृह में लेखक आत्मजीत द्वारा लिखित मुश्ताक काक द्वारा निर्देशित प्रवासी नाटक 'कैमलूप्स की मछलियां' का मंचन श्रीराम रंगमंडल के कलाकारों ने किया। उतरी अमेरिका के टोरंटों में बसे पंजाबी मध्यमवर्गीय परिवारों के सामाजिक‚ सांस्कृतिक आर्थिक असमंजस को चिन्हित करता हुआ यह नाटक प्रवासी जीवन की विडंबनाओं का जीवंत चित्र प्रतीत हुआ। 'कनाडा में कैमलूप्स नामक नदी की मछलियां जहां जन्म लेती हैं‚ वहां ही मरती हैं' नाटक के उत्कर्ष पर यह वाक्य प्रवासी हृदय की पीड़ा के उन्मान की सशक्त अभिव्यक्ति था। नाटक देखने भारी संख्या में दर्शक आए। यह नाटक भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के सौजन्य से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. मधुप मोहता(संपादकः गगनांचल) ने की। विदेश मंत्रालय के सचिव समन्वय विजय कुमार मुख्य अतिथि थे। इस कार्यक्रम का संयोजन अक्षरम के महासचिव नरेश शांडिल्य ने किया।

अकादमिक सत्रों का उद्घाटन
21 जनवरी प्रातःकाल उत्सव का औपचारिक उद्घाटन हुआ। कार्यक्रम के प्रारंभ में बृजेंद्र त्रिपाठी ने साहित्य अकादमी के सचिव के. सच्चिदानंदन का 'स्वागत–भाषण' पढ़कर सुनाया। अस्वस्थता के कारण वे कार्यक्रम में नहीं आ सके थे। अपने स्वागत भाषण में साहित्य अकादमी के सचिव श्री सचिदानंद ने कहा कि वे हाल के प्रवासी अनुभव के स्थायी मूल्यों से परिचित हैं। यह संघर्षशील प्रेरणा बहुलअस्मिताओं‚ नयी वस्तुनिष्ठताओं‚ सृजनात्मक स्मृतियों और भाषा तथा जीवन के नये परिप्रेक्ष्य का स्रोत है। दूसरे देश में हिंदी में लेखन अपने आप में महत्वपूर्ण चयन है। यह एक साथ स्मृति और प्रतिरोध दोनों हैं। ऐसे लेखकों ने हिंदी साहित्य और भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है। क्योंकि वे अपने साथ विविध पृष्ठभूमि और अनुभव हिंदी में लाए हैं। बीज वक्तव्य देते हुए जर्मनी से आए डा. इन्दुप्रकाश पाण्डेय ने विश्व में हिंदी विषय पर प्रकाश डाला‚ डा. पांडेय  के वक्तव्य में भावुकता एवं चिंता का सम्मिश्रण था। इस अवसर पर वर्षों तक विदेशों में हिंदी के प्राध्यापक रहे डा. प्रेम जनमेजय ने प्रवासी के दर्द की व्याख्या करते हुए इसे सोने की लंका में रहने वाले विभीषण के दर्द की तरह बताया। 

अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रख्यात साहित्यकार डा. रामदरश मिश्र ने कहा कि "प्रवासी साहित्य ने हिंदी को नयी ज़मीन दी है और हमारे साहित्य का दायरा दलित विमर्श और स्त्री विमर्श की तरह विस्तृत किया है।" उन्होंने कहा‚ "इस उत्सव का लाभ तात्कालिक हो न हो‚ कालांतर में इसका प्रतिफल गहरा होगा। "प्रेस सूचना ब्यूरो के निदेशक डा. अक्षय कुमार ने प्रवासी श्रेणी के सरकारी पारिभाषिक अर्थ को स्पष्ट किया। संचालन करते हुए साहित्य अकादमी के उपसचिव बृजेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि साहित्य और संस्कृति के माध्यम से प्रवासी भारतीय के दिलों को जोड़ा जा सकता है। इस आपसी संवाद की प्रक्रिया को और गति देनी होगी। उन्होंने कहा कि प्रवासी हिंदी लेखन को हिंदी साहित्य के वृहतर साहित्य के इतिहास में समाहित किए जाने की ज़रूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि भारतीय पत्र–पत्रिकाओं में प्रवासी साहित्य का एक कॉलम निर्धारित होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्रवासी हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा जाए और इसका एक परिचय कोश हो।
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साहित्य अकादमी और अक्षरम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अकादमिक सत्रों के उद्घाटन कार्यक्रम का संचालन करते साहित्य अकादमी के उपसचिव डा बृजेन्द्र त्रिपाठी। मंच पर बाएं से दाएं डॉ प्रेम जनमेजय, डॉ रामदरस मिश्र, डॉ इंदु प्रकाश पांडेय (जर्मनी), डॉ सीतेश आलोक और डॉ अक्षय कुमार 

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प्रवासी रचनाकारों पर परिचर्चा
अकादमिक सत्रों की शृंखला में पहला सत्र प्रवासी रचनाकारों पर परिचर्चा का रहा। डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव‚ पूर्व प्राध्यापक कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय यू.के. और कोलंबिया विश्वविद्यालय (यू.एस.ए) में प्राध्यापक डा. सुषम बेदी के साहित्यिक अवदान पर चर्चा हुई। डा. राहुल‚ उषा महाजन‚ मीरा सीकरी और रोहिणी अग्रवाल ने इन दोनों प्रख्यात प्रवासी रचनाकारों के साहित्य के विविध पहलुओं को चिन्हित किया। अध्यक्षता करते हुए डा. महीप सिंह ने प्रवासियों में भारतीय साहित्य को पढ़े जाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि नॉस्टैल्जिया कोई बुरी चीज़ नहीं है। इस सत्र में संवादी के रूप में ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग में हिंदी एवं संस्कृति अधिकारी रहे अनिल जोशी ने दोनों रचनाकारों के साहित्य की संवेदनशीलता को मुखरित किया। संचालन कवयित्री–कथाकार अलका सिन्हा ने किया।

प्रवासी हिंदी साहित्य की प्रवृतियां
'प्रवासी हिंदी साहित्य की प्रवृतियां' विषयक सत्र में लंदन से आई उषा राजे सक्सेना ने यूरोप और अमेरिका के हिंदी साहित्य की प्रवृतियों पर प्रकाश डाला। डा. सुषम बेदी ने प्रवासी साहित्य के पर्याप्त समालोचन की आवश्यकता पर बल दिया। अमेरिका से आए वेद प्रकाश बटुक ने कहा‚ "यदि विश्व को बचाना है तो साहित्यकारों को छोटे–छोटे दायरों से बाहर निकलना होगा।" गीतांजलि बहुभाषी समुदाय यू.के. के अध्यक्ष डा. कृष्ण कुमार ने प्रवासी साहित्य को मुख्यधारा में लाने का आग्रह किया। मॉरीशस के रामदेव धुरंधर ने वहां के साहित्य का विविधायामी वर्णन किया। आस्ट्रेलिया की शैल चतुर्वेदी ने प्रवासी हिंदी साहित्य के ठोस स्वरूप के आगमन का आह्वान किया। साहित्यकार कमल किशोर गोयनका ने प्रवासी साहित्य के ऐतिहासिक‚ शोधपरक परिप्रेक्ष्य को उजागर किया। अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध रचनाकार हिमांशु जोशी ने कहा‚ "हिंदी जगत का सूर्य अब नहीं डूबता‚ हिंदी वैश्विक हो गई है।" इस सत्र के संचालक डा. हरीश नवल थे।

प्रवासी रचनाकारों की रचनाओं का नाट्यपाठ
इसी दिन सांध्यबेला में प्रवासी रचनाकारों की रचनाओं का नाट्यपाठ हुआ। आकाशवाणी के उपनिदेशक लक्ष्मीशंकर वाजपेयी के संयोजन में हुए नाट्यपाठ सत्र की संचालिका कवयित्री ऋतु गोयल रहीं। इस सत्र में मुख्य अतिथि भारत में सूरीनाम के राजदूत महामहिम कृष्णदत बैजनाथ एवं विशिष्ठ अतिथि श्री नारायण कुमार थे। अध्यक्षता गगनांचल पत्रिका के कार्यकारी संपादक अजय कुमार गुप्ता ने की। इस सत्र में प्रवासी रचनाकारों डा. सुषम बेदी‚ उषा राजे सक्सेना‚ शैल अग्रवाल‚ डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव‚ डा. इन्दुप्रकाश पांडेय‚ डा. कृष्ण कुमार‚ वेद प्रकाश बटुक और सुधा ढींगरा की रचनाओं का दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के कलाकारों अलका सिन्हा‚ लक्ष्मीशंकर वाजपेयी‚ नमिता राकेश‚ राजश्री त्रिवेदी एवं आशा त्रिवेदी ने नाट्य पाठ किया।

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