भोलाराम ने मुझे देखा तो चहक कर बोला, "यार यह लंदन का कोट तुम पर फब तो खूब रहा है
किंतु. . . "
मेरी आत्मा काँप कर रह गई। यह प्रशंसा का एक छोटा-सा वाक्य और उसके पश्चात का किंतु
यह तो अंधड़ से पहले की शांति है। इससे तो अच्छा था कि वह मेरे कोट की प्रशंसा ही
न करता।
पर तब मेरा ध्यान दूसरी ओर चला गया। वह उसे लंदन का कोट कह रहा था।
"पर यह कोट तो लंदन का नहीं है।" मैंने कह ही दिया।
"अच्छा!" वह कुछ इस ढंग से मुस्कराया कि मैं लज्जा से भूमि में गड़ गया। भूमिगत हो
जाता तो सुखकर होता। पर भूमिगत होने और भूमि में गड़ने में बहुत अंतर है। उसकी
आँखें स्पष्ट रूप से और इतने विश्वास से मुझे झूठा और मक्कार घोषित कर रही थी कि
स्वयं मुझे भी अपने चरित्र पर संदेह होने लगा।
"वह सब रहने दो।" वह बोला, "कोट भी अच्छा है और तुम पर फब भी रहा है, किंतु
भारतीयता का इतना पक्ष लेते हो तो अपना पहनावा भी कुछ भारतीय ही रखो।"
"वह सब ठीक है, किंतु यह कोट सचमुच लंदन का नहीं है।" मैंने उसे विश्वास दिलाने का
प्रयास किया।
वह हँसा, "अब तुम कहोगे कि भारतीय साहित्य परिषद के सम्मेलन में जो महिला तुम्हारे
साथ थी, वह हमारी भाभी जी नहीं थीं।"
मुझे स्मरण करने में कुछ समय लगा। उस सम्मेलन में कौन था मेरे साथ? स्मरण हो आया
दिल्ली से हम कुछ साहित्यकार इकठ्ठे गए थे। साथ ही बैठे थे और साथ ही खाना भी खाया
था। उस दल में कुछ महिलाएँ भी थीं, किंतु मेरी पत्नी तो मेरे साथ नहीं थी। जाने इस
भोलाराम ने किसको मेरी पत्नी मान लिया था।
मैं प्रबल रूप से प्रतिवाद करना चाहता था, किंतु कुछ नहीं बोला। यदि मैं कहता कि
उनमें मेरी पत्नी नहीं थी तो वह पूछता कि यदि पत्नी नहीं थी तो उसके साथ एक ही मेज़
पर बैठ कर खाना क्यों खाया? उसकी ओर सलाद की प्लेट क्यों बढ़ाई? उसे पानी का गिलास
क्यों दिया? इन सब बातों का क्या उत्तर देता मैं? अपने यहाँ पत्नी को पानी का गिलास
थमाओ तो जोरू के गुलाम घोषित हो जाते हैं। किसी और महिला को शिष्टाचारवश सलाद की
प्लेट थमा दो तो चरित्रहीन प्रचारित हो सकते हैं। भोलाराम कि इन गुणों को मैं जानता
था। अत: पत्नी को भुला कर कोट पर ही लौट आया।
"वह कोट लंदन का नहीं है भले आदमी।" मैंने तोते के समान दुहरा दिया।
"क्यों जब तुम लंदन गए थे, तो इसे वहाँ नहीं ख़रीदा था?"
मैं उसे बताना चाहता था कि यह कोट मुझे डॉ. राजेशकुमार ने रूस से ला कर भेंट किया
है। किंतु तब संकट यह था कि वह पूछता कौन राजेशकुमार? मैं उसे बताता कि राजेश मेरा
छात्र रहा है तो वह कहता कि मैं अपने विद्यार्थियों का शोषण करता हूँ। उनसे महँगे
उपहार वसूलता हूँ। मैं उसके अनुमानों की प्राचीर में कुछ ऐसा घिर गया था कि निकलना
कठिन हो रहा था।
"पर मैं लंदन गया ही कब?" मैंने कुछ ऊँचे स्वर में कहा।
मैं भयभीत था कि कहीं उसका झूठ मुझ पर हावी ही न हो जाए।
"क्यों विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग लेने तुम लंदन नहीं गए?"
"नहीं!" मैंने कहा, "कोई भेजता तो जाता। मुझे किसीने भेजा ही नहीं।"
"झूठ मत बोलो।" उसने मुझे डाँट दिया, "तुम लंदन नहीं गए तो और कौन गया।"
"काला चोर गया हो, पर मैं नहीं गया।"
"तुम तो प्रधान मंत्री के मित्र हो और तुम ही नहीं गए? कौन मानेगा इस बात को।"
मुझ पर सुख का वज्रपात हुआ। यह व्यक्ति मुझे देश के प्रधान मंत्री का मित्र कह रहा
था। यह तो ऐसी धारणा थी कि न उगलते बन रही थी और न निगलते। पर मैं इसका विरोध कैसे
करता।
"मैं तो उनका मित्र हूँ।"
"तो क्या वे तुम्हारे मित्र नहीं है - शत्रु है तुम्हारे?" उसने मेरी बात काट दी।
"नहीं शत्रु तो नहीं है, किंतु मित्रता तो समानता में होती है। मैं अपने श्रद्धेय
जनों को अपना मित्र कैसे कह सकता हूँ।"
"अब बातें मत बनाओ।" उसने मुझे बाकायदा डाँटा, "वे तो तुम्हारे मित्र हैं। तुम्हीं
जाने किस दुष्ट के प्रभाव से उनके शत्रु बनते जा रहे हो। मैंने देखा था उस दिन जब
प्रधान मंत्री के घर पर एक समारोह था। तुम सुरक्षाकर्मियों पर रौब झाड़ रहे थे।
बार-बार कह रहे थे कि वे नहीं जानते कि तुम कौन हो। तुम चाहते हो कि प्रधान मंत्री
के सुरक्षाकर्मी भी तुमको नमस्ते करें और बिना सुरक्षा जाँच के तुमको जाने दें।"
मैं चकित दृष्टि से भोलाराम की ओर देख रहा था, आज
वह मुझसे इतना रुष्ट क्यों था?
"उस दिन नचिकेता सम्मान के अवसर पर तुम देर से आए तो तुम्हें अति विशिष्ट लोगों के
साथ बैठने का स्थान नहीं मिला। पीछे बैठना पड़ा तुमको और तुमने हिंदी भाषा की आड़
में लिखित रूप में प्रधान मंत्री का विरोध किया। शत्रु नहीं हो तुम उनके?"
मैं कुछ नहीं बोला। उसने मुझे कुछ कहने की स्थिति में ही नहीं छोड़ा था।
"सुनो।" उसने मेरा कंधा पकड़ कर मुझे झकझोरा, "रहे होंगे वे तुम्हारे मित्र। किंतु
अब वे देश की थाती है। उनके विरुद्ध लिखोगे तो अच्छा नहीं होगा।"
मैं अवाक खड़ा भोलाराम को देखता रह गया - यह व्यक्ति मित्रता और शत्रुता का अंतर
पहचानता भी है? पक्ष विपक्ष जानता भी है?
1 फरवरी 2006
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