पिछले
सप्ताह
गांधी
जयंती के अवसर पर
राजेश कुमार सिंह का विशेष
लेख
डाक
टिकटों में गांधी
साथ में
अनूप शुक्ला के कुछ प्रश्न 'पहला गिरमिटिया' के लेखक गिरिराज
किशोर से
और उनकी डायरी के चुने हुए अंश
गांधी
की तलाश
के अंतर्गत
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हास्य
व्यंग्य में
डा नरेन्द्र कोहली का
व्यंग्य
वह
कहां है
°
फुलवारी
में
ललित
कुमार के सहयोग से
भारत,
श्री लंका और ईरान
विषयक
जानकारी
देशदेशांतर के अंतर्गत
°
उपन्यास
अंश में
यू एस ए से सुषम बेदी के
धारावाहिक उपन्यास अंश
लौटना
का भाग1
"तुम्हारा अभिनय तो
बहुत श्रेष्ठ है, मीरा! और तुम शब्दों पर नहीं,
उनके अर्थों और व्यंजना की सारी संभावनाओं को
अपनी मुद्राओं में आकार देकर अभिनय करती हो, इसके
लिए बहुत उर्वर मस्तिष्क चाहिए होता है जो विरली ही
नर्तकियों के पास होता है। जिस्म की लयात्मकता और
मस्तिष्क की
उर्वरता का ऐसा संगम कहां होता है, मीरा!
तुम्हें तो सब छोड़छाड़ कर नृत्य में ही लगे रहना
चाहिए।" फिर जब कृष्णन ने पूछा था कि उसकी
अगली परफ़ॉरमेंस कहां हो रही है तो मीरा कोई झूठ
का परदा दोनों के बीच रख नहीं पाई थी। जिस नर्तकी
के ऊंचे आसन पर कृष्णन ने उसे बिठा दिया था,
उससे नीचे
उतरकर बोली,
"तुम्हें क्या लगता है बहुत व्यस्त नर्तकी हूं मैं?"
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इस
सप्ताह
कहानियों में
भारत
से नवनीत मिश्र की कहानी
विश्वास
किसी गिरहर इमारत जैसी
वे
मेरे ठीक पीछे खड़ी थीं। सब तरफ़ से झूल गया बुढ़ापे
का शरीर। सामने के दांत टूटने लगे थे जिसके कारण
होंठ अपने टिके होने का आधार खो रहे थे और पूरा
चेहरा डोनाल्ड डक जैसा लगने लगा था। खिचड़ी बाल
कहींकहीं पर काफ़ी कम हो गए थे और गंजापन झलकने
लगा था। मदद की गुहार करतीसी आंखें जिनकी उपेक्षा
करके आगे बढ़ जाना संभव नहीं होता। दाहिने गाल पर
एक काला मस्सा था जो उनके गोरे रंग पर आज भी
दिठौनेसा दमकता लग सकता था लेकिन मस्से पर उगे
सफ़ेद बालों के गुच्छे ने उनके चेहरे को विरूपित कर
रखा था। उनके माथे पर गहरी सिलवटें थीं जिनमें
पसीने की महीन लकीरें चमक रही थीं।
°
उपन्यास
अंश में
यू एस ए से सुषम बेदी के
धारावाहिक
उपन्यास अंश
लौटना
का भाग2
°
बड़ी
सड़क की तेज़ गली में
अतुल अरोरा के साथ
भाग
चलें पूरब की ओर ° मंच
मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में
भवानी
दादा
बोले
मज़ा
आ
गया
°
कला
दीर्घा में
नवरात्र के अवसर पर विशेष दीर्घा
दुर्गा
°ं
सप्ताह का विचार
दूसरों
पर किए गए व्यंग्य पर हम हंसते हैं पर अपने ऊपर किए
गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं।रामचंद्र शुक्ल
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अनुभूति
में
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खबरदार कविता
गीत, ग़ज़ल
कविताएं और
नयी हवा में
ढेर सी नवीन रचनाएं
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° पिछले अंकों
से °
कहानियों में
रोड
टेस्टइला प्रसाद
अठतल्ले
से गिर गए रेवत बाबूजयनंदन
लालटेन,
ट्यूबलाइटमोतीलाल जोतवाणी
अपराधबोध
का प्रेततेजेन्द्र शर्मा
चिठ्ठी
आई हैकमलेश भट्ट कमल
शौर्यगाथाराम गुप्ता
°
हास्य
व्यंग्य में
कैसे
कैसे शब्दजालरविशंकर श्रीवास्तव
आज्ञा
न मानने वालेनरेन्द्र कोहली
जिसे
मुर्दा पीटे . . .महेशचंद्र
द्विवेदी
देश
का विकास जारी हैगोपाल चतुर्वेदी
°
संस्कृति
में
डा रमेशकुमार भूत्या की
रचना
पंचकर्म
और उसका औचित्य
°
प्रौद्योगिकी
में
आशीष गर्ग द्वारा जानकारी
कंप्यूटर
की मेमोरी
°
पर्यटन
में
गुरमीत बेदी की दृष्टि से देखें
भंगाहल
का तिलिस्मी संसार
°ं
हिंदी
दिवस के अवसर पर
तीन
विशेष रचनाएं
महेशचंद्र द्विवेदी का चुटीला व्यंग्य
न रहेगा बांस
न बजेगी बांसुरी
°
इंद्र
अवस्थी का
करारा हिंगलिश चिट्ठा
आइए
नेशनल लैंगुएज को रिच बनाएं
°
और
जितेन्द्र चौधरी की संवेदनात्मक स्वीकृति
मेरा
हिंदी प्रेम
°
फ़ोन
बजता रहा
कृष्णा सोबती के धारावाहिक संस्मरण का
तीसरा
और अंतिम भाग
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