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बुश ने अपनी जेब में से निकाल कर, मुशर्रफ़ की फैली हुई हथेली पर डॉलरों का ढेर लगा दिया।
"बताओ! ओसामां कहाँ है? मेरा तात्पर्य है ओसामां बिन लादेन, जो अलकायदा संगठन का मुखिया है?"
"शायद वह अफ़गानिस्तान में ही कहीं छिप गया है।"
"इतना तो मैं भी जानता हूँ।" बुश रुष्ट हुआ, "तुमको इस सूचना के लिए इतने डॉलर नहीं दिए हैं।"
"बता रहा हूँ।" मुशर्रफ़ तनिक भी नहीं डरा, "तुम पूरी बात तो सुनते नहीं हो, बस बीच में ही बरस पड़ते हो।"
"बताओ।" बुश कुछ शांत होकर बोला।
"वह कंधार के पास होगा। कंधार में तालिबान का गढ़ है। वहाँ वह स्वयं को सुरक्षित समझता है। गढ़ समझते हो न?"
"गढ़ पहले किले को कहते थे।" बुश ने कहा, "अब तो जमावड़े को कहते हैं। और किला हो भी तो क्या, हमें कौन दरवाज़े में से होकर जाना है। ऊपर से बम ही तो बरसाने हैं।"
"ठीक समझे। कंधार में इस समय सब से अधिक संख्या में तालिबान सैनिक हैं।"
"तो कंधार पर बमबारी करूँ?" बुश ने पूछा, "वह मिल जाएगा।"
"बमबारी से कभी कोई मिला है। उससे तो लोग मर जाते हैं, पर अभी रुक जाओ।"
"क्यों?"
"रमज़ान का महीना है। मुसलमानों के लिए यह बहुत पवित्र महीना है। इस में अफ़गानिस्तान पर बम मारोगे तो सारे संसार के मुसलमान तुम्हारे विरुद्ध हो जाएँगे।" मुशर्रफ़ ने कहा, ''और मुसलमान जिस के विरुद्ध हो जाते हैं, अल्लाह भी उसके विरुद्ध हो जाता है।"
"देखो!" बुश ने अपनी तर्जनी से उसे धमकाया, "तुम उतनी ही चालाकी किया करो, जितनी मुझे बुरी न लगे। जहाँ दो शत्रु लड़ रहे होते हैं, वहाँ यह नहीं देखा जाता कि कब किसका पर्व है, कौन-सा दिन पवित्र है, कौन कब आराम कर रहा है, कौन कब खाना खा रहा है, और कौन कब टॉयलेट में बैठा है।"
"अरे भाई! तुम मुसलमानों के विरोध से नहीं डरते? तुम क्या मुसलमानों के विरुद्ध लड़ रहे हो?"
"नहीं! हम आतंकवाद के विरुद्ध लड़ रहे हैं। अब तो मैं उनकी इफ़्तार पार्टी में भी हो आया हूँ।"
"तो फिर मुसलमानों को रुष्ट मत करो, नहीं तो क़यामत आ जाएगी।"
"रमज़ान के दिनों में जब मुसलमान भगवान को याद करने के स्थान पर आपस में लड़ते रहते हैं तब?'' ''अफ़गानिस्तान में भी तालिबान ने जितना हिंदुओं को सताया और मारा है, उससे अधिक संख्या में तो उन्होंने मुसलमानों को ही सताया और मारा है।"
"असल में रमज़ान में जो मुसलमान मरता है, उसे शहीद माना जाता है। वह सीधा जन्नत में जाता है।" मुशर्रफ़ बोला।
"इस तर्क से तो तुम सारे मुसलमानों को रमज़ान में मार डालोगे। मैं यह नहीं होने दूँगा।" बुश ने कहा, "जो मुसलमान रमज़ान के महीने में मरता है, वह कब्र में नहीं जाता, जन्नत में जाता है?"
"हाँ! काफ़िरों के हाथ से मरे तो कब्र में जाता है, मोमिनों के हाथों मारा जाए तो जन्नत में जाता है।"
"उल्टी बात कर रहे हो।" बुश ने उसे डाँटा, "स्वर्ग में तुम्हारा राज्य नहीं है जनरल! कि जिसे चाहो उसे फ्री पास दे दो। आसमान पर ईसा मसीह की बादशाहत है। तुम्हारा शासन कब्रों तक ही है। अब तुम तालिबान के लिए कब्रें खोदो, जो अपने लिए ही खोदते रहे हो।"
"तुम समझते क्यों नहीं?" मुशर्रफ़ बोला, "तालिबान को अपनी तैयारी करने का कुछ समय दोगे या नहीं। इतना समय तो दो कि मैं उन्हें कुछ हथियार पहुँचा सकूँ। उनकी सहायता के लिए पाकिस्तानी जनरल भेज सकूँ। मुल्ला उमर को छिपा सकूँ। बाकी मुल्ला अपनी सुरक्षा के लिए, अपने परिवारों की सुरक्षा के लिए कुछ प्रबंध कर सकें। रमज़ान के महीने में भूखे रह कर वे कैसे लड़ेंगे। कब्रें खोदने के लिए भी कुछ खाया पिया होना चाहिए।"
"हम मुल्ला उमर को भी ढूंढ़ रहे हैं। वह कहाँ है?" बुश ने जैसे मुशर्रफ़ की बात सुनी ही नहीं थी।
"वह भी कंधार में ही छुपा होगा।"
"झूठ बोल रहे हो तुम।"
"मैंने कब कहा कि मैं सच बोल रहा हूँ।" मुशर्रफ़ हँसा, "हमारी तुम्हारी मित्रता का समान आधार ही यही है कि हम दोनों सच नहीं बोलते, हमारा कोई सिद्धांत नहीं है और हम दोनों ही अव्वल दर्जे के स्वार्थी हैं।"
"मैं कब झूठ बोला?" बुश तड़प कर बोला, "अमरीकी झूठ नहीं बोलते।"
"कुंदूज़ में जब तालिबान घिर गए थे, मैंने तुम से कहा था न कि मुझे वहाँ से अपने सैनिक निकाल लेने दो। तुम्हारी अनुमति और सहमति से ही तो मैंने रात को विमान भेज कर वहाँ से अपने सिपाही और अफ़सर निकाले थे।" मुशर्रफ़ ने कहा, "तब संसार भर ने तुमसे कहा था कि पाकिस्तान अपने सैनिक निकाल रहा है। तुम सफ़ेद झूठ बोले थे कि तुम्हें ऐसी कोई ख़बर नहीं है। जब ऐसा समय आता है तो कैसे बेख़बर हो जाते हो तुम।"
"कहा होगा। तुम्हारे ही भले के लिए कहा था। मित्र के हित में झूठ बोलना अनुचित नहीं माना जाता।" बुश लापरवाही से बोला, "हम पाकिस्तानी सेना को कमज़ोर नहीं करना चाहते। हम तो ओसामां को खोज रहे हैं। हमें सूचना मिली है कि ओसामां और उमर दोनों कराची में छिपे हैं।"
"किसने सूचना दी है। उसका नाम बताओ। अभी टाँगता हूँ उसे सूली पर।"
"तुम क्या सूली पर टाँगोगे। तुम तत्काल कह दोगे कि उस नामका कोई आदमी पाकिस्तान में है ही नहीं। चलो छोड़ो उसे।" बुश ने कहा, "हमें सूचना मिली है कि कराची के बाज़ार में एक बुर्केवाली को दूसरी बुर्केवाली ने कहा, 'ओसामां सुन।' पहली बुर्केवाली ने तड़प कर कहा, 'तूने मुझे कैसे पहचान लिया बदज़ात!' दूसरी बुर्के वाली ने कहा, 'घबरा मत। मैं मुल्ला उमर हूँ।"
"यह सूचना नहीं चुटकुला है।" मुशर्रफ़ चिढ़ कर बोला, "ये भारतीय लोग हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते तो हमारे विरुद्ध ऐसे चुटकुले बनाने लगते हैं। इसे शत्रु की ओर से उड़ाई हुई अफ़वाह माना जाना चाहिए।"
"हमने तो कुंदूज़ से पाकिस्तानी सिपाहियों को सुरक्षित निकालने की सूचना को भी अफ़वाह ही माना था। इसे भी मान लेंगे। पर पहले बताओ कि ओसामां और उमर कहाँ हैं।"
"हम तुम्हारे मित्र हैं। ओसामां के नहीं। हम कैसे जान सकते हैं कि वे कहाँ हैं। तुम्हें सूचना थी तो तुम ने कराची में दोनों बुर्केवालियों को पकड़ क्यों नहीं लिया?"
"अरे जब तक हम सावधान होते, वे दोनों बुर्केवालियाँ और सैंकड़ों बुर्केवालियों में मिल गईं, जैसे हिंदी फ़िल्मों में अपना बचाव करने के लिए नायक नायिका नाचते गाते बरातियों में मिल जाते हैं। बताओ वह कहाँ हैं?"
"नहीं जानता। पूछो कि बुश कहाँ है तो अभी बता दूँ।"
"बुश कहाँ है, मैं भी जानता हूँ। उसकी मुझे खोज भी नहीं है।" बुश ने कहा, "तुमको हमने मित्र ही इसीलिए बनाया है, क्योंकि तुम जानते हो कि ओसामां और उमर कहाँ हैं।" बुशने कहा, "जल्दी बताओ।"
"पहले वादा करो कि रमज़ान के महीने में बमबारी बंद रहेगी।"
"नहीं! यह नहीं हो सकता।" बुश ने कहा, "इससे तो मेरी सेनाएँ मुझे ही खा जाएँगी। चलो बमबारी कहीं ऐसे स्थान पर करेंगे, जहाँ कोई न रहता हो।"
"नहीं! ओसामां पहले ही कह रहा था कि तुम सैनिकों को कम मारते हो, निहत्थे नागरिकों को अधिक मारते हो।"
"तो ओसामां ने हमारे ट्रेड सेंटर में जिन हज़ारों लोगों को मारा, वे फ़ौजी वर्दी पहने लाम पर जा रहे थे क्या? उसने उन निहत्थे असैनिक नागरिकों को नहीं मारा?"
"वह कहता है कि वे निहत्थे चाहे रहे हों किंतु वे अमरीकी सिस्टम का अंग थे। अमरीकी फ़ौजी मशीन के ही पुर्ज़े थे। उन्हें मरना ही था। उन्हें मारा ही जाना था। यह सवाब का काम है। वह जेहाद कर रहा है न।"
"उसका क्या है, "बुश ने नाराज़ होकर कहा, "स्वयं तो गुफ़ाओं में सुरक्षित छुपा बैठा रहता है और जीवन की उमंगों और ऊर्जा से भरे पूरे नवयुवकों को पट्टी पढ़ाकर आत्मघाती हमलों में मरने के लिए भेजता है। किसे मरना है, और किसे नहीं मरना है, इसका निर्णय करने वाला वह कौन होता है। वह भगवान है क्या? सवाब और जेहाद - शब्दों के खेल से वह संसार भर को मूर्ख बना रहा है। अमरीका उसकी बातों में नहीं आ सकता।"
"हमारे लिए तो वह भगवान ही है, उसने हमें अफ़गानिस्तान की सल्तनत बख्श़ी है। तुम हमें भारत दे दो, हम तुम्हें अफ़गानिस्तान दे देंगे। वह दाता है। करोड़ों डॉलर लुटाता रहता है।"
"और हम क्या हैं ?" बुश का चेहरा क्रोध से तमतमा आया, "हमने रूस के विरोध के नाम पर वे सारे हथियार न दिए होते तो ओसामां तुम्हें क्या दे देता। खाते हमारा हो और गुणगान उसका करते हो। तुम्हारे जैसा कृतघ्न मैंने दूसरा नहीं देखा।"
"देखो! हम मित्र हैं और मित्रता में इस प्रकार नाराज़ नहीं होते। मित्रता में कुछ त्याग करना पड़ता है। वचन दो कि तुम रमज़ान के महीने में अफ़गानिस्तान पर बमबारी नहीं करोगे। मैंने उमर को वचन दिया था कि रमज़ान के महीने तक मैं अमरीका को रोके रखूँगा।"
"बमबारी तो नहीं रुक सकती।" बुश बोला, "अफ़गानिस्तान पर नहीं करेंगे तो पाकिस्तान पर करेंगे। बोलो क्या कहते हो। "
"क्यों?"
"अरे यह कह कर कि ओसामां वहाँ छिपा हो सकता है, हम कहीं भी बमबारी कर सकते हैं।"
"तो भारत पर बम बरसाओ।" मुशर्रफ़ ने कहा, "कहो कि ओसामां वहाँ छिपा हुआ है।"
"वह भी हो सकता है।" बुशने मन ही मन कोई योजना बनाते हुए कहा, "तुम ओसामा को भारत में धकेल दो। उसे कहो कि वह अजमेर शरीफ़ की यात्रा पर चला जाए। हम सारा भारत तहस नहस कर डालेंगे।"
"हो तो सकता है।" मुशर्रफ़ भी गंभीर हो गया, "पर भारत ओसामां को पकड़ कर किसी के हाथ भी ढाई करोड़ डालरों में बेच देगा। वह दोस्तम के हाथ लग गया तो दोस्तम उसे बीचों बीच से चीर कर पेड़ पर लटका देगा।"
"रमज़ान के महीने में एक मुसलमान दूसरे मुसलमान को मार देगा?"
"इन अफ़गानों का कोई भरोसा नहीं है।"
"भरोसा तो तुम्हारा भी कोई नहीं है।" बुश के होंठ वक्र हो उठे।
"छोड़ो न यार। तुम तो हर बात को हमारी ही ओर मोड़ देते हो।" मुशर्रफ़ ने कहा, "अच्छा! रमज़ान में बमबारी बंद करो, हम मुल्ला, जईफ़ को बाँध कर तुम्हारे हवाले कर देते हैं।"
"वह कौन है?"
"पाकिस्तान में तालिबानों का राजदूत।"
"जिनका राज्य ही नहीं है, उनका राजदूत।" बुश बोला, "उसे तुमने बचा रखा है और वह प्रेस कांफ्रेंस करता रहता है। उसके लिए वह तो पिटेगा ही, तुम भी दंड पाओगे। उसे जेल में डालो और बताओ कहाँ है ओसामां और कहाँ है मुल्ला उमर?"
"वहीं कहीं अफ़गानिस्तान में छिपे हैं। हमारा एक पत्रकार ओसामा से मिल कर आया है।"
"बताओ! कहाँ है? नहीं तो रमज़ान में बम बरसते रहेंगे।"
"बरसते रहें। तुम्हें अपने बम बरबाद करने का शौक है तो बरसाते रहो। आदमी तो एक नहीं मरने वाला। अपने बमों से रेत उछालते रहो और रेगिस्तान में गढ़्ढ़े बनाते रहो।"
"हम बमबारी बंद कैसे कर सकते हैं। हमें भी तो दुनिया को मुँह दिखाना है।"

2

"तुम कैसे मुसलमान हो, उन अमरीकियों के मित्रा बनकर हमें मरवा रहे हो?" ओसामां ने मुशर्रफ़ को डाँटा।
गुफ़ाओं में छिपे ओसामां को मुशर्रफ़ सूचना देने आया था कि अमरीका रमज़ान में बमबारी नहीं रोकेगा, इसलिए रमज़ान की प्रतीक्षा बेकार है, वह अभी ही कहीं और के लिए निकल ले। पर ओसामां ने उसे डाँट दिया था।
"देखो! " मुशर्रफ़ कुछ रुष्ट होकर बोला, "एक बार इशारा कर दूँ कि तुम कहाँ हो तो ढाई करोड़ डॉलर मेरी जेब में और अरबों डालरों के हथियार पाकिस्तान की सेना को मिल जाएँगे। मैं उनका लालच नहीं कर रहा। तुम्हारी मित्रता निभा रहा हूँ और तुम भी मुझे ही सुना रहे हो।"
ओसामां ने अपने साथी को संकेत किया। उसने संदूक खोल कर ढाई करोड़ डॉलर गिन दिए।
"यह लो, जो तुम्हें अमरीकी काफ़िरों से मिलना है, वह मैं ही दिए देता हूँ।" ओसामां ने कहा, "अब बताओ, क्या करना है।"
"तुम अपने साथियों समेत निकल लो।"
"पर जाऊँ कहाँ? सारे रास्ते तो बंद हैं।"
"कबाइली इलाके में से हो कर पाकिस्तान निकल जाओ। वहाँ से पाकिस्तानी फौज की गाड़ियों और जहाज़ों में बैठ कर दुनिया में जहाँ जाना चाहो, चले जाओ। कहो तो तुम्हें अमरीका या कनाडा ही भिजवा दूँ। वहाँ ठाट से बैठे रहना। दाढ़ी मुँडा देना और नाम बदल लेना। मैं बुश को तुम्हारे होने का ऐसे-ऐसे स्थानों का पता दूँगा कि दुनिया के सारे बम समाप्त हो जाएँगे और तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होगा।"

ओसामां ने उसे संदेह की दृष्टि से देखा - यह उसे मूर्ख तो नहीं बना रहा। कहीं उसे अपने जहाज़ में बैठा कर सीधा अमरीकी जेल में ही न उतार दे।
"पर पाकिस्तान से कहाँ जाऊँगा?"
"सऊदी अरब चले जाना। सोमालिया चले जाना। कहीं न जा सको तो वापस अफ़गानिस्तान आ जाना।" मुशर्रफ़ ने कहा, "पर इस वक्त यह गुफ़ा खाली कर दो।"
"यह तुम्हारा सरकारी बंगला है कि हुक्म दे रहे हो कि इसे खाली कर दूँ।" ओसामां ने कहा, "तुम बमबारी रुकवाओ और उनसे कहो कि हमसे ज़मीनी लड़ाई लड़ लें। अल्लह की कसम सारी अमरीकी फौज को तबाह कर दूँगा, जैसे रूसी फौज को खदेड़ बाहर किया था।"
"अब कहोगे कि मैं अमरीकियों से कहूँ कि वे तुमसे बंदूकों से नहीं, तलवारों से लड़ें।" मुशर्रफ़ बोला, "और ज़्यादा ऐंठो मत। रूसियों से हमारे सिपाही और अमरीकी हथियार लड़े थे। हमारे सिपाही और अमरीकी साज़ोसामान न होता तो तुम क्या कर लेते।"
"पर तुम हमें इन गुफ़ाओं से क्यों निकालना चाहते हो? यहाँ हमें कोई तकलीफ़ नहीं है।" ओसामां ने दीन होकर कहा।
"मेरे मन में एक योजना है। तुम अफ़गानिस्तान के बाहर कहीं भी एक मदरसा खोल कर बैठ जाओ। मैं अमरीकियों को तोड़ फोड़ में लगाए रखूँगा। उन्हें तुम्हारी हवा तक नहीं मिलेगी।"
"तुम्हारी दोस्ती मेरी समझ में नहीं आती। जहाँ अमरीकी बम पड़ते हैं, वहाँ पाकिस्तानी सिपाही होते ही नहीं और तालिबान भाग जाते हैं। बेचारे अरब ही मारे जाते हैं।"
"देखो पाकिस्तानी अपनी नौकरी कर रहे हैं। तालिबान सिर्फ़ निहत्थे स्त्री पुरुषों पर अत्याचार कर रहे हैं। वैसे वे अपने देश में बैठे हैं। शहीद होने का शौक तो तुम अरबों को ही चर्राया था। कायदा छोड़ कर अलकायदा हो गए, इसीलिए अरब शहीद हो रहे हैं। अब तुम यहाँ से खिसक लो। ऐसा न हो कि हमें यहीं तुम्हारा फातिहा पढ़ना पड़े।"

3

बुश ने मुशर्रफ़ से पूछा, "कुछ पता लगाया - कहाँ है ओसामां?"
"हाँ! कुछ ख़बर तो लगी है कि वह तोड़ा फोड़ा की पहाड़ी गुफ़ाओं में छिपा बैठा है।"
"यह तोड़ा फोड़ा कहाँ है?"
"अरे तुम तोरा बोरा की पहाड़ियाँ नहीं जानते। हमारे पाकिस्तान की सीमा से ही तो लगती हैं।"
"ओह! " बुश ने कहा, "वे गुफ़ाएँ संख्या में बहुत हैं। बहुत लंबी हैं। पहाड़ी पत्थरों के नीचे हैं। वहाँ ओसामां को खोजना बहुत मुश्किल है।"
"तो क्या हो गया?" मुशर्रफ़ ने कहा, "तुम्हारे इतने भारी भारी बम किस दिन काम आएँगे। उनको छाती पर रखकर साथ ले जाओगे? जमकर बरसाओ। इतनी बमबारी करो कि तोरा बोरा का नाम तोड़ा फोड़ा हो जाए।"
"पक्का है न! कि वह वहीं है?"
"हमारी सूचनाओं के अनुसार दोनों वहीं हैं - ओसामां भी और मुल्ला उमर भी।"
"ठीक है।"

अमरीका ने अपने साथियों के साथ मिल कर तोरा बोरा की पहाड़ियों को घेर लिया। दिन रात बम बरसाए और ज़मीन पर उत्तरी गठबंधन के सैनिक लड़ते रहे। पर ओसामां नहीं मिला।
"कहाँ गया?" बुश ने पूछा।
"यहाँ नहीं है।" उत्तरी गठबंधन ने कहा, "हो सकता है पाकिस्तान में हो या कबाइली क्षेत्र में छुपा हो, पर यहाँ नहीं है।"
अमरीका को संतोष नहीं हुआ तो बुश ने अपने सैनिक वहाँ लगा दिए, "एक-एक पत्थर उठा कर देखो और एक-एक गुफ़ा में झाँक कर नहीं, घुस कर देखो।"
बुश ने मुशर्रफ़ से पूछा, "ओसामां कहाँ है?"
"मेरा विचार है कि तुम्हारी बमबारी के कारण वह वहीं कहीं दब कर मर गया है।"
"इसका प्रमाण कहाँ है? उसका शव मिल गया क्या?"
"मैंने तो अपना अनुमान बताया है।" मुशर्रफ़ ने कहा।
"मैं प्रमाण माँग रहा हूँ। तुम्हारा अनुमान नहीं।" बुश नाराज़ हो गया, "तुम्हारे कहने पर मैंने अपना इतना सामान वहाँ बरबाद किया है।"
"अच्छा! मैं प्रमाण भी ला कर दूँगा।"

4

अगले दिन मुशर्रफ़ एक अरब के हाथ पैर बाँध कर ले आया।
"यह कौन है?" बुश ने पूछा।
"यह अलक़ायदा का सैनिक है। हमने इसे भागते हुए गिरफ़्तार किया है।"
"तो इसे मेरे पास क्यों लाए हो। डाल दो किसी कुएँ खाई में।"
"यह साधारण आदमी नहीं है।" मुशर्रफ़ ने उसकी उपाधियाँ गिनाईं, "यह ओसामां के अंगरक्षकों में से एक है। यह उस समय भी ओसामां के साथ था, जब उसकी मौत हुई।"
"झूठ बोल रहे हो तुम।" बुश का मुँह क्रोध से लाल हो गया, "अगर बमबारी में ओसामां दबकर मर गया तो यह यहाँ कैसे खड़ा है। इसे भी वहीं दफ़न हो जाना चाहिए था।"
अरब ने मुशर्रफ़ की ओर देखा।
"बात यह है कि ओसामां बमबारी में नहीं मरा है।" मुशर्रफ़ ने कहा, "वह अपने फेफड़ों के रोग से मरा है। बाहर इतनी बमबारी हो रही थी कि भारत से दवाएँ आ नहीं सकीं। न ओसामां को डॉक्टर के पास ले जाया जा सका, न डॉक्टर को भीतर लाया जा सका। वह दवा के न मिलने से अपने रोग से ही मर गया। तुम उसके कत्ल के गुनाहगार नहीं हो, तुम्हें अल्लाह को कोई जवाब नहीं देना पड़ेगा; पर अगर तुम यह बमबारी न करते तो हम उसे पकड़ सकते थे और तुम से ढाई करोड़ डॉलर ले सकते थे। हाय रे ढाई करोड़।"

बुश ने अरब की ओर देखा।
"हाँ हुज़ूर! जनरल साहब ठीक कह रहे हैं।" वह बोला, "शेख ओसामां बिन लादेन अपनी बीमारी से मर गए। मैं वहीं था। उन्हें चुपचाप वहीं दफ़ना दिया गया। मैं तो उनकी नमाज़े जनाज़ा में भी शरीक़ हुआ था। क्या करते, किसी को ख़बर कर नहीं सकते थे। बाहर बम बरस रहे थे।"
"अरे जब वह मर ही गया था तो उसे हमें सौंप कर ढाई करोड़ तो ले लेते।" बुश बोला, "एनी वे, तुम मुझे वह जगह दिखा सकते हो, जहाँ वह दफ़नाया गया है। मैं वहाँ खुदाई करवा कर उसकी लाश निकाल कर अपनी तसल्ली करना चाहता हूँ।"
"आपको मेरे चेहरे की मुर्दनी से विश्वास नहीं होता? कोई भी समझ सकता है कि मैं ग़मी में हूँ।"
"नहीं मुझे विश्वास नहीं होता। मैं किसी अरब का विश्वास नहीं करता। विश्वास तो मैं पाकिस्तान का भी नहीं करता, पर काम तो चलाना है न।"

अरब ने फिर मुशर्रफ़ की ओर देखा।
"बात यह है प्रेसिडेंट साहब! " मुशर्रफ़ ने कहा, "कि आपने बमबारी करके उन सारी गुफ़ाओं को इस प्रकार तहस नहस कर दिया है कि अब इसके लिए तो क्या मेरे लिए भी उन गुफ़ाओं को पहचानना मुश्किल है। और ओसामां खुद कब्र से उठकर आएगा नहीं।"
"भागो यहाँ से।" बुश ने अरब को घूँसा दिखाया, "तुम भी झूठे हो। यह तो है ही।"
अरब भाग गया। बुश ने मुशर्रफ़ की ओर देखा, "ओसामां कहाँ है?"
"देखो! तुमने तोरा बोरा की पहाड़ियों को चकनाचूर कर दिया है। उसकी एक-एक गुफ़ा को छान मारा है। वह अब भी तुमको नहीं मिला है। अब भी तुम मुझसे पूछोगे तो मैं तुम्हें कोई न कोई जगह तो बताता ही रहूँगा। कह दूँ कि वह चेचन्या में है, तो चलेगा?"
"तो मैं क्या करूँ?"
"अच्छा है कि उसे भूल जाओ। लोगों को अफ़गानिस्तान के निर्माण में उलझाओ, और इस बहाने वहाँ राज करो। अरे ऐश करो और खुश रहो।" मुशर्रफ़ ने कहा, "क्या रखा है उन दो मुल्लाओं के चेहरों में कि उन्हें देखे बिना तुम्हारा जीना हराम है। देखना ही है तो कोई हसीन चेहरा देखो।"
"मुझे बिल वाले शौक नहीं हैं।" बुश ने अपना सिर झुका लिया।

5

"यह तुम ने क्या किया?" ओसामां ने पूछा, "तोरा बोरा की सारी पहाड़ियों को तोड़ा फोड़ा कर दिया?"
"हाँ! अमरीकियों को कुछ काम तो देना था।"
"क्या मतलब?"
"तुमने सुना होगा कि एक आदमी ने एक जिन को अपने कब्ज़े में कर लिया। जिन ने कहा कि वैसे तो वह अपने आक़ा का हर हुक्म बजा लाएगा, पर जैसे ही वह खाली होगा, वह अपने आक़ा को खा जाएगा। इसलिए उसका आक़ा उसे लगातार कोई न कोई काम बताता रहे, ताकि जिन को फुर्सत न मिले।"
"मुझे जिन भूतों की कहानियाँ क्यों सुना रहे हो?"
"अरे यह बुश भी वैसा ही जिन है। हर समय तुम्हें खोजने के लिए जगह पूछता रहता है। उस जिन के आक़ा ने एक तरक़ीब सोची। उसने ज़मीन में एक खंभा गाड़ दिया और कहा कि जिन को जब कोई काम न हो, तब वह उस खंभे पर चढ़ता और उतरता रहे। मैंने बुश को तोरा बोरा की पहाड़ियों के रूप में एक खंभा दे दिया है।"
"पर उससे तो हमारी सारी गुफ़ाएँ बर्बाद हो गईं।" ओसामां ने सिर पकड़ लिया।
"जब इंर्टों पत्थरों की रोड़ी बनानी होती है तो मज़दूर लगाने पड़ते हैं, जो दिन भर बैठ कर उसे तोड़ते हैं।" मुशर्रफ़ ने कहा, "मैंने वही काम अमरीकियों से करवाया है। मकान बनाने के लिए अब वहाँ काफ़ी पत्थर हैं। उन्होंने सारे अफ़गानिस्तान में मकान बनाने के लिए हमारे लिए पत्थर तोड़ दिए हैं। और. . ."
"और क्या?"
"हम जब भी अफ़गानिस्तान पर कब्ज़ा करने की कोशिश करते थे, ये पठान उन गारों में छिप कर हमारे नाक में दम कर देते थे। अब न वे पहाड़ हैं, न वे गुफ़ाएँ।" मुशर्रफ़ मुस्कराया, "अमरीका कब तक उनकी रखवाली करेगा। कभी तो अपने देश लौटेगा। तब फिर हम होंगे और पष्तून। अब पष्तून किन गुफ़ाओं में छिपकर हमारे सिपाहियों से बचेंगे?"
मुशर्रफ़ बहुत प्रसन्न था और ओसामां के चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई थी।

1 अक्तूबर 2005

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