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प्रौद्योगिकी

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अर्थात कंप्यूटर की 'मेमोरी'

-आशीष गर्ग

हममें से जो भी इस लेख को पढ़ सकते हैं निश्चित रूप से उनको कंप्यूटर का प्रयोग करना आता है। आप ये भी जानते हैं कि जब आप कंप्यूटर पर काम करते हैं, आप अपने लेखों, आकड़ों इत्यादि को कंप्यूटर पर रक्षित करके रख सकते हैं यानी कि सेव (save) कर सकते हैं।  

आपको शायद ये भी मालूम है कि सभी कंप्यूटरों में आजकल जानकारी को रक्षित करने के लिए कुछ चीज़ों का इस्तेमाल होता है जिनको कि कहते हैं 'मेमोरी'। इस लेख में मैं ये बताने का प्रयत्न करूँगा कि ये मेमोरी यानी कंप्यूटर की याददाश्त कैसे काम करती है।

हर कंप्यूटर में दो तरह की मेमोरी होती है :

एक होती है DRAM  या डी-रैम यानी Dynamic Random Access Memory  जिसमें कि जानकारी अस्थायी तौर से सुरक्षित रहती है और उसके लिए निरंतर बिजली की आवश्यकता होती है। अगर आपकी पॉवर सप्लाई या ऊर्जा का स्रोत बंद हो जाए तो ये उस जानकारी को सुरक्षित नहीं रखा पाएगी। इसलिए इसको तकनीकी भाषा में volatile memory या अस्थायी मेमोरी भी कहते हैं। इसकी विशेषताएँ हैं कि ये बहुत तेज़ चलती है और इसका बिट घनत्व यानी बिट डेन्सिटी भी बहुत होता है। बाज़ार में ये कई जमताओं में उपलब्ध है जैसे कि 128, 256 मेगाबाइटस या उससे ज़्यादा।

दूसरी होती हैं हार्ड डिस्क या hard disk जिसका कि मुख्य काम है जानकारी को हमेशा के लिए सुरक्षित रखना और वो जानकारी तभी हटाई जा सकेगी यदि आप उसे स्वयं हटाना चाहते हैं। इस मेमोरी की ख़ास बात ये है कि ये बिजली चले जाने के बावजूद जानकारी को सुरक्षित रखती है जैसे कि जब आप कंप्यूटर बंद कर देते हैं तो आपके आँकड़े इसी डिस्क में सुरक्षित रहते हैं। इस मेमोरी को तकनीकी भाषा में 'स्थायी मेमोरी' या 'non-volatile' मेमोरी भी कहते हैं। ये विभिन्न प्रकार की क्षमताओं में उपलब्ध है जैसे 10, 20, 40, 80 गीगाबाइटस या उससे भी ज़्यादा।

तो सवाल ये है कि हम अस्थायी मेमोरी का उपयोग क्यों करते हैं? उसका उत्तर ये है कि हार्ड डिस्क की आँकड़ों के संचालन की गति काफ़ी कम होती है इसलिए कंप्यूटर पर काम करते समय जानकारी को अस्थायी तौर पर डीरैम में रक्षित किया जाता है और फिर कुछ समय के अंतर पर उसको हार्ड डिस्क में बार-बार रक्षित करना पड़ता है। इसलिए डीरैम की क्षमता जितनी ज़्यादा होगी आप उतने ही ज़्यादा काम कंप्यूटर पर एक साथ कर सकते हैं।

डीरैम की इस तेज़ी का कारण है वो पदार्थ जो कि इस मेमोरी का मुख्य भाग (core element) होता है और वे पदार्थ होते हैं कुचालक (core element) पदार्थ यानी डाइ-इलेक्ट्रिक (Dielectric) पदार्थ जैसे कि सिलिकॉन ऑक्साइड (SiO2) टैंटेलम ऑक्साइड (Ta2O5) इत्यादि जिनका डाइ-इलेक्ट्रिक स्थिरांक इस बात का सूचक होता है कि वे कितनी ज़्यादा जानकारी रक्षित कर सकते हैं। इस पदार्थ की ये विशेषता है कि ये जानकारी को बहुत तेज़ी से संचालित करता है (no) 'नो' सेकंडों या 0.000000001 में) लेकिन बिजली के अभाव में काम नहीं कर सकता है।

हार्ड डिस्क का मेमोरी वाला हिस्सा जहाँ जानकारी स्थायी रूप से संचित की जाती है मुख्यत: लौहचुंबकीय (Ferromagentic) पदार्थों जैसे कि लोहा-कोबॉल्ट या Fe-Co  का बना होता है। असल में ये पदार्थ एक प्लेट पर एक परत के रूप में जमा किया जाता है (magnetically coated substrate) । इस पदार्थ में जानकारी का रक्षण इलेक्ट्रान (पदार्थों के परमाणुओं के अंदर उपस्थित एक अतिसूक्ष्म कण या तरंग) के स्पिन (spin) के घुमाव की एक दिशा में होने के कारण होता है। इस तरह के पदार्थों की विशेषता यह होती है कि ये बिजली की अनुपस्थिति में भी जानकारी को सुरक्षित रख सकते हैं। पर इनकी कमी ये है कि ये जानकारी का संचालन धीमी गति से करते हैं (मायक्रोसेकंडों या 0.000001 में)।

तो दोस्तों उम्मीद है आपकी अपने कंप्यूटर की मेमोरी के बारे में जानकारी और बढ़ी होगी। कंप्यूटर की मेमोरी का वैज्ञानिक भंडार विशाल है इसलिए ये लेख बहुत ही साधारण है जो कि आम जन को मेमोरी से अवगत कराने के लिए लिखा गया है।

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