जीरो मतलब शून्य
(दसवाँ भाग)
चलो भाग चलें पूरब की ओर
भारत से वापसी हुई तो डलास से भी रुख़सत होने का समय आ
चुका था। अगला कार्यक्षेत्र मिला फ़िलाडेल्फ़िया। अभी तक
कुल मिलाकर अमेरिका के दक्षिणी प्रांतो में ही रहना
बसना हुआ था। उत्तर पूर्व के प्रांतों को लेकर एक
अज्ञात सा डर बैठा रहता था। दरअसल यह सारा डर बर्फ़ को
लेकर महेश भाई और सत्यनारायण स्वामी सरीखे मित्रों ने
पैदा किया था। वैसे यह डर बेबुनियाद भी नहीं था।
सत्यनारायण अपने बर्फ़ पर कार फिसलने से हुई दुर्घटना
और बर्फ़ीले मौसम की मुश्किलों के हाल बता चुके थे। इस
बार लेकिन कोई विकल्प नहीं था। दिसंबर का मौसम था और
डलास से फ़िलाडेल्फ़िया, सौलह सौ मील लंबा ड्राइव करना
संभव नहीं था। इसलिए हवाई यात्रा करते हुए
फ़िलाडेल्फ़िया का रुख़ किया। फ़िलाडेल्फ़िया में एक छोटे
से उपशहर, जिसे हम यहाँ सबर्ब कहते हैं, में काम करना
और रहना था। जगह का नाम सुन कर विचित्र लगा 'किंग आफ
प्रशिया'। हवाई अड्डे पर किसी कर्मचारी से पूछा भी कि
यह किंग आफ प्रशिया का नाम किस किंग पर पड़ा पर सभी
निरुत्तर थे। इतिहास खँगालने पर भी यही पता चला कि
१८५१ में किसी सर्वेक्षणकर्ता ने किसी होटल पर किंग आफ
प्रशिया लिखा देख कर पूरे कस्बे का नाम यही समझ लिया,
अब वह होटल वाला खुद किंग था या प्रशिया से आया था,
खुदा जाने।
बाँके बिहारी
किंग आफ प्रशिया में आने पर पता चला कि हमारे परिवार
का अंतर्राष्ट्रीयकरण होने जा रहा है। इसमें एक
अमेरिकी शामिल हो जाएगा। इस नए मेहमान के आने की
तैयारियाँ शुरू हो गईं। एक ऐसे ही शनिवार को नए
अमेरिकी के संभावित नाम पर विचार विमर्श चल रहा था।
आजकल बच्चों के इतने क्लिष्ट नाम रखे जा रहे हैं जिनको
अंग्रेज़ी में 'टाँग ट्विस्टर्स' की संज्ञा दी जा सकती
है। उस पर तुर्रा यह कि कभी–कभी खुद माँ बाप को पता
नहीं होता कि नाम का मतलब क्या है। फिर कई बार एक देश
में रखा नाम दूसरे देश में मुसीबत बन जाता है। कुछ
अक्षरों का तो अमेरिकन अंग्रेज़ी में वजूद ही नहीं। खुद
मेरे नाम में आने वाला 'त' कभी ड कभी ट बना डालते हैं
यहाँ लोग। हालाँकि मेरे एक मित्र वाजिद की तो शामत ही
आ गई थी। बेचारे ने बड़े अरमान से अपने जिगर के टुकड़े
का नाम फख्र रख दिया। पर हर मेहमान, हर रिश्तेदार उनकी
बुद्धि पर तरस खाते हुए उन्हें बच्चे का नाम बदलने की
सलाह देने लगा। वाजिद भाई भी अपनी पसंद पर अड़े रहे। पर
बच्चे ने स्कूल जाना शुरू करने और समझदार हो जाने पर
गदर काट दी कि या तो हमारा नाम बदलो या हमारा स्कूल।
देर से ही सही वाजिद भाई को बात समझ में आ गई और तमाम
अदालती सरकारी खर्चों के बाद फख्र मियाँ सलीम बन गए।
कुछ ऐसे ही संस्कृति के कीड़े ने हमें काटा और हमें
सूझा कि अगर हमें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो हम
उसका नाम बाँके बिहारी रखेंगे। न जाने क्यों श्रीमती
जी को यह नागवार गुज़रा। उनको केशव–ए–माधव वगैरह नाम
पुरातन पंथी लग रहे थे जबकि बाँके नाम से गुंडेपन का
अहसास हो रहा था। इस मुद्दे पर गंभीर मतभेद हो गए।
बच्चों की बरसात
नए मेहमान के लिए हम सपरिवार 'टवायस आर अस' गए। यहाँ
नवजात शिशुओं के लिए एक सेक्शन ही अलग बना होता है।
वहाँ हमारे सरीखे कई परिवार ख़रीदारी में लगे थे।
ऐसी–ऐसी चीज़ें जो कभी न देखी न सुनी। हमें
किंकर्तव्यविमूढ़ देख एक सहायिका ने पूछा कि क्या हम
बेबीशावर की योजना बना रहे हैं। इस सवाल पर हम से
ज़्यादा हमारी बेटी चकित थी कि भला बच्चों की बरसात
कैसे हो सकती है और अगर बच्चे बरसने लगे तो कैसा नज़ारा
होगा। इस नए शब्द का मतलब भी जल्द समझ में आ गया,
'बेबी शावर' बहुत कुछ उत्तर भारत में होने वाली गोद
भराई की रस्म जैसा उत्सव होता है। पर यहाँ आपके घर
अनचाहे या एक सरीखे दो तीन उपहार न आ जाएँ इसके लिए आप
अपनी पसंद के किसी स्टोर में अपनी मरज़ी की उपहार सूची
चुन कर उसे अपने मित्रों या रिश्तेदारों में ईमेल से
वितरित कर देते हैं। लोग उसमें से अपनी पसंद या
सामथ्र्य के हिसाब से चुनाव करके भुगतान कर देते हैं
और उत्सव वाले दिन सारे सामान आपके घर एकसाथ पहुँच
जाते हैं। कुछ ऐसा ही शादी विवाह में भी होता है। अगर
ऐसा भारत में भी होता तो हर नवविवाहित को छः घड़ियाँ,
तीन आइसक्रीम सेट, बारह लंचबाक्स और बत्तीस थर्मसों का
संग्रहालय न बनाना पड़े।
बताओ डाक्टर ने क्या बताया?
कुछ सप्ताह बाद श्रीमती जी का स्वास्थ्य परीक्षण के
दौरान अल्ट्रासाउंड हो रहा था। अमेरिका में बेटे या
बेटियों को लेकर मुझे कोई पूर्वाग्रह नहीं दिखा।
हालाँकि अल्ट्रासाउंड में नर्स होने वाले बच्चे का
लिंग बता सकती है पर बहुत से दंपत्ति इसे अंत तक नहीं
जानना चाहते। बच्चे के मामले में कई विशेषाधिकार माँ
को प्रदत्त हैं। यही अल्ट्रासाउंड में हुआ, नर्स ने
श्रीमती जी से पूछा कि क्या वे जानना चाहेंगी कि होने
वाले बच्चे का लिंग क्या है। मारे रोमांच के श्रीमती
जी ने नहीं में गर्दन हिला दी। नर्स ने यह जानना चाहा
कि क्या वे इस सूचना के अधिकार से मुझे भी वंचित रखना
चाहेंगी। पता नहीं क्यों उन्होने नहीं कर दी। फिर क्या
था, नर्स ने श्रीमती जी की आँखें ढँक कर मुझे इशारे से
बता दिया. अस्पताल से बाहर आते ही श्रीमती जी का
प्रश्न था, "बताओ डाक्टर ने क्या बताया?" मैंने
चुहलबाजी में बहाना टिका दिया कि आप तो रोमांच को
रोमांच ही रखना चाहती हैं अतः इसे रहस्य ही रहने दें।
पर उनके पास ब्रह्मास्त्र मौजूद था। उन्होंने दाँव
फेंका कि चूँकि अमेरिका में हमारे रिश्तेदार वगैरह न
होने कि वजह से सारी ख़रीदारी हमें ही करनी होगी और वह
भी शिशुआगमन से पहले इसलिए मुझे या तो उन्हें सच बता
देना चाहिए या फिर दोहरी ख़रीदारी के लिए तैयार रहना
चाहिए।
प्रेटी वीमेन
अमेरिका में प्रसव की तैयारी बहुत ही विधिवत ढंग से
होती है। बकायदा अस्तपताल में निशुल्क कक्षाएँ लगती
हैं, शिशुपालन की भी और प्रसव कैसे होता है उसकी भी।
कुछ दिन पहले अस्पताल में एक टूर भी कराया जाता है
जिसमें यह बता दिया जाता है कि प्रसव वाले दिन किस
रास्ते से आना है, मैटरनिटी वार्ड के लिए अलग लिफ्ट और
अलग रास्ते की व्यवस्था होती है। यहाँ प्रसव में पति
को उपस्थित रहने का विकल्प भी होता है और अगर शल्य
चिकित्सा हो रही हो तो वह देखने का भी। मेरा विचार यह
बना कि यह नियम भारत में बजाए विकल्प के आवश्यक कर
देना चाहिए, किसी धर्म के कठमुल्ले विचारों की परवाह
किए बगैर। मुझे लगता है कि संस्कृति और धर्म के नाम पर
स्त्रियों को प्रसवगृह में जूझते छोड़ अस्पताल के बाहर
चाय आमलेट उड़ाते हिंदुस्तानी पतियों को जब तक सृजन में
होने वाली वेदना का साक्षात दर्शन नहीं होगा, उन्हें
सृजन की पीड़ा का पता नहीं चलेगा। अगर एक बार यह हो जाए
तो अंधाधुंध बढ़ती आबादी पर रोक लगाने की अक्ल भी आ
जाएगी और दुर्गा, सीता का नाम ले लेकर कन्या भ्रूण के
खून से हाथ रंगने से पहले हाथ भी काँपेंगे।
ख़ैर निश्चित दिन पर हम अस्पताल पहुँचे और कमरा देख कर
दंग रह गए। अच्छा ख़ासा होटल का कमरा दिख रहा था।
आक्सीजन सिलेंडर, ग्लूकोज़ चढ़ाने की नली और बाकी संयत्र
वस्तुतः कमरे की दीवारों में लकड़ी की दीवारों के पीछे
छिपे थे, ताकि किसी को उन्हें देख कर अनावश्यक मानसिक
तनाव न हो। श्रीमती जी के लिए टीवी सेट भी लगा था और
उसपर प्रेटीवीमेन चल रही थी। कुछ देर में डाक्टर आए तो
श्रीमती जी ने निर्देश थमा दिया कि उन्हें पुत्र या
पुत्री का क्या नाम रखना है। श्रीमती जी को दो–दो
शंकाएँ थीं, पहली कि शायद हमने उन्हें पुत्र वाली
सूचना मन बहलाने के लिए बता रखी है और दूसरी कि प्रसव
के बाद उनकी बेहोशी का फ़ायदा उठाकर कहीं हम बर्थ
सर्टिफ़िकेट पर बाँकेबिहारी नाम न चढ़वा दें। डाक्टर
उन्हें आश्वस्त करके शल्यकक्ष ले गए मुझे बाहर खिड़की
के पास इंतज़ार करने की सलाह देकर।
भयो प्रगट कृपाला
करीब पंद्रह मिनट बाद ही एक नर्स हाथ में गुलाबी सा
खिलौना लिए आ रही थी हमारी ओर। श्री–श्री एक हज़ार आठ
बाँके बिहारी जी महाराज का पदार्पण हो चुका था हमारे
परिवार में। माननीय बाँके जी की भरपूर फ़ोटो खींची गईं।
श्रीमती जी को बहुत कोफ़्त हो रही थी अस्पताल में।
शाकाहारी भोजन के नाम पर उबली गोभी, गाजर खानी पड़ रही
थी और बाहर से खाना लाने पर पाबंदी थी। एक नरमदिल नर्स
उन्हें जूस और फल वगैरह देकर दिलासा दे जाती थी। तीन
दिन बाद हमें छुट्टी मिल जानी थी। छुट्टी वाले दिन दो
अनुभव हुए। यह बताया गया कि बच्चे की कार सीट लाए बिना
आपको बच्चा घर नहीं ले जाने दिया जाएगा। मेरे पास
कारसीट थी पर नवजात शिशु के लिए 'हेडरेस्ट' एक विशेष
किस्म का तकिया लाना रह गया था। 'टवायस आर अस' गया तो
एक सेल्सगर्ल ने पूछा कि बेटे के लिए लेना है या बेटी
के लिए। जवाब सुनने पर वह कुछ परेशान होकर बोली अभी
मेरे पास कोई नीला 'हेडरेस्ट' नहीं है सिर्फ़ गुलाबी
है। उसने गुलाबी 'हेडरेस्ट' देते हुए कहा कि दो दिन
बाद आकर नीले रंग वाले से बदल लेना। मैं सोच रहा था कि
माना गुलाबी रंग लड़कियों पर फबता है पर 'चलता है' वाली
प्रवृति के चलते उसकी सलाह नज़रअंदाज़ कर दी।
गुलाबी या नीला
अस्पताल में डाक्टरों ने भली–भांति कारसीट की जाँच की,
गुलाबी हेडरेस्ट देखकर नाक सिकोड़ी और पूरे दो घंटे तक
निर्देश दिए कि बच्चे की देखभाल कैसे करनी है। कुछ
बातें जहाँ काम की थीं वहीं कुछ सलाह अजीबोग़रीब लग रही
थीं। जैसे कि बच्चा अगर रात में रोए तो या तो भूखा
होगा या उसका बिस्तर गीला होगा। कुछ ऐसा लग रहा था कि
हम नए माडल की कार घर ले जा रहे हों और सेल्समैन उसके
फीचर्स के बारे में विस्तार से बता रहा हो। बाँके
बिहारी हमें टुकुर–टुकुर देख रहे थे, मानो कह रहो हों
'पिताश्री, ठीक से निर्देश समझ लो। बाद में न कहना कि
हमने रात में गदर क्यों काटी है या आप सबको हर दो–दो
घंटे में क्यों उठा रहा हूँ। यह सब तो पैकेज्ड डील
है।' अस्पताल से घर आने के पंद्रह दिन में ही पिंक या
ब्लू का अमेरिकी कांसेप्ट अच्छी तरह से दिमाग़ में घुस
गया। हर मिलने वाला छूटते ही कहता था कि बड़ी सुंदर
बेटी है हमारी। हम हैरान कि अच्छा ख़ासा लड़का सबको लड़की
क्यों दिख रहा है। किसी अनुभवी दोस्त ने बताया कि यह
समस्या लेबलिंग की है। अगर आटे की बोरी पर चावल का भी
लेबल लगा दो तो एक औसत अमेरिकी उसे आटे के दाम पर ख़रीद
लेगा। यहाँ मैंने बाँके की कारसीट में गुलाबी
'हेडरेस्ट' लगाकर लड़की होने का लेबल लगा दिया था।
९
अक्तूब २००५ |