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कहानियाँ  

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
यू. एस. ए. से इला प्रसाद की कहानी— रोड टेस्ट


"तो मैम रोड टेस्ट पास कर लिया आपने?" कार्ला पूछ रही थी।
अचानक सुनीता उसे पहचान नहीं पाई।
उसे रोड टेस्ट पास किए हुए लगभग छह महीने बीत चुके थे। बहुत झिझक-झिझक कर, डरते हुए वह अकेले घर से कार लेकर निकलती। पहली बार तो डॉलर स्टोर तक जाकर ही लौट आई। डॉलर स्टोर उसके घर से बस इतनी ही दूरी पर था कि एक सिगनल पार करना पड़े। फिर धीरे-धीरे पोस्ट आफ़िस, वॉलमार्ट दरियाँ बढ़ती गईं। अब तो वह फीडर रोड़ पर भी आराम से ड्राइव करती है। बस अकेले हाइवे पर जाने का साहस नहीं बटोर पाती। वहाँ पर राजीव का साथ चाहिए, भले ही स्टीयरिंग व्हील उसके हाथ में हो। साठ सत्तर मील की रफ़्तार अभी भी उसके दिल की धड़कनें बढ़ा देती हैं।
"तुम क्या सोचती हो? सुनीता ने भी उसी व्यंग्यात्मक लहजे में जवाब दिया। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि यहाँ, इस तरह, पोस्ट ऑफ़िस में, उसे कार्ला मिल जाएगी।
"कितनी बार में पास हुई तुम, दूसरे ऑफ़िस से?" कार्ला ढीठ थी।
"तुम्हें इससे मतलब!" सुनीता ने रुखाई से जवाब दिया और आगे काउंटर की ओर बढ़ गई।
"हिम्मत देखो इसकी।" मन ही मन सोचा उसने।

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