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पिछले सप्ताह

हास्य व्यंग्य में
नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य
आज्ञा न मानने वाले

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संस्मरण में
कृष्णा सोबती की कलम से धारावाहिक
फ़ोन बजता रहा

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दृष्टिकोण में
अनूप शुक्ला का आलेख
हैरी बनाम हामिद

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फुलवारी में
आविष्कारों की नयी कहानियां
और शिल्पकोना में बनाएं
काग़ज़ का याक

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कहानियों में
यू के से तेजेन्द्र शर्मा की कहानी
अपराधबोध का प्रेत



सुरभि बच्चों को मिलना चाहती है। अंतरा की दसवीं की परीक्षा चल रही है। अपूर्व तो छोटा है – अभी पांचवीं में ही है। सुरभि की बेचैन निगाहें दीवार पर जैसे कुछ ढूंढ रही हैं। नरेन के माथे पर पसीना छलकने लगा है। कहीं सुरभि के जाने से पहले उसका ही दम ना निकल जाए। नर्स को बुलाता है नरेन, सुरभि का दर्द बढ़ता जा रहा है। नरेन का प्रेत और बड़ा होता जा रहा है। अरूण को फ़ोन करना है। बच्चों को हस्पताल ले आए। मां से मिल लेंगे। अरूण के स्वर में झल्लाहट है‚ "भाभी को अकेला क्यों छोड़ा? जल्दी वापिस उनके पास जा . . .सारी उमर साहित्यिक गोष्ठियों के चक्कर में रहा और भाभी को कभी वक्त नहीं दिया और अब उनके आख़री वक्त में भी उनके पास नहीं बैठ रहा।"
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इस सप्ताह

साहित्य संगम में
मोतीलाल जोतवाणी की सिंधी कहानी
का हिंदी रूपांतर
लालटेन, ट्यूबलाइट और
शैंडेलियर

फाटक से पोर्टिको तक जाते–जाते मनोहर के मन के आइने में कुछ यादें प्रतिबिंबित हो उठीं। उन बिंबों में लालटेन, टयूबलाइट और शेंडेलियर के तीन बिंब आपस में टकराकर एक अदभुत माहौल पैदा कर रहे थे। सन 1953 में दिल्ली के पुराने किले के शरणार्थी कैंप में रहते हुए दो दोस्त– गोपाल और मनोहर लोधी रोड के सिंधी स्कूल में साथ पढ़ते थे। रात को एक ही बैरक में लालटेन की रोशनी में वे दोनों मास्टर साहबों द्वारा दिया गया 'होमवर्क' करते थे। दोनों दोस्तों के पिता लोग भी पीछे सिंध के एक ही गांव में साथ–साथ बिताई ज़िंदगी के दिनों से आपस में दोस्त थे, और उनके बूढ़े चेहरों पर लालटेन की मंद–मंद रोशनी फैली थी।
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मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में 
बच्चन जी ने क्या खूब रचा

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बड़ी सड़क की तेज़ गली में
अतुल अरोरा के साथ
ज़ीरो मतलब शून्य

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फ़ोन बजता रहा
कृष्णा सोबती के धारावाहिक संस्मरण का
दूसरा भाग

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रसोईघर में
तैयार करते हैं माइक्रोवेव पर
आलू मेथी का सूप

सप्ताह का विचार
ज़ार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर विजय पाता है वही सच्चा विजयी है।
गौतम बुद्ध

 

अनुभूति में

वर्षा महोत्सव
का अंतिम सप्ताह संकलन में
100 तक पहुंचतीं
वर्षा कविताएं 

–° पिछले अंकों से °–
कहानियों में

चिठ्ठी आई है–कमलेश भट्ट कमल
शौर्यगाथा–राम गुप्ता
प्रश्न–नीलम जैन
सुहागन–विजय शर्मा
चीजू का पाताल–प्रमोद कुमार तिवारी
गुनहगार–सुषम बेदी
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हास्य व्यंग्य में
जिसे मुर्दा पीटे  . . .महेशचंद्र द्विवेदी
देश का विकास जारी है–गोपाल चतुर्वेदी
कुतुबमीनार–डा नरेन्द्र कोहली
कुता–अरूण राजर्षि
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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का अंतिम भाग
मराठी ग़ज़लों में छंद–2
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प्रकृति और पर्यावरण में
आशीष गर्ग बता रहे हैं
अब बनेंगी जूट की सड़कें
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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव की सलाह
ब्लागिंग छोड़ें पॉडकास्टिंग करें
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साहित्यिक निबंध में
मिथिलेश श्रीवास्तव का आलेख 
कला में आज़ादी के सपने
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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का सत्रहवां भाग
मराठी ग़ज़लों में छंद–1
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उपहार में
जन्मदिन की शुभकामनाएं
जन्मदिवस मंगलमय होवे

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
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