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पिछले सप्ताह

हास्य व्यंग्य में
डा नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य
मानवाधिकार

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का सातवां भाग
छंद विचार–4

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विज्ञान वार्ता में
आशीष गर्ग का लेखः कैसे काम करता है
स्मोक डिटेक्टर

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फुलवारी में
आविष्कारों की नयी कहानियां
और शिल्पकोना में पानी पीने के लिए
काग़ज़ का गिलास
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कहानियों में
भारत से संजय विद्रोही की कहानी
बस कब चलेगी

अस्सी बरस के खिल्लन मियां को जब से ये पता चला है कि श्रीनगर­मुज़्ज़फ़राबाद के बीच सरहद के आर­पार बसें चलने वाली हैं‚ तब से मानो उनके पांव ज़मीन पर पड़ ही नहीं रहे थे। आंखें ऐसे चमकने लगीं थीं‚ मानो बुझते चराग़ों मेें किसी ने तेल डाल दिया हो। दिल में अपने खानदान के लोगों से मिलने की हूक फिर से उठने लगी थी। मुर्दा हो चली ख्वाहिशें फिर से सांस लेने लगी थी। चेहरे की झुर्रियों में उम्मीदों की लकीरें साफ़ पढी जा सकती थी, चाल की नज़ाकत और बेंत ज़मीन पर टिकाते वक्त गहरा आत्मविश्वास देखते ही बनता था। आठों पहर बस यही खयाल दिल में चलता रहता था कि 'बस कब चलेगी?'

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इस सप्ताह

कहानियों में
डेनमार्क से अर्चना पेन्यूली की कहानी
बदल जाती है ज़िन्दग़ी

मंजूषा त्रिवेदी ने जब लेटरबॉक्स खोला तो 
उसमें दो पत्र पड़े थे। लिफ़ाफ़ों के रंग, आकार व उनके डाक टिकटों से साफ़ पता चल रहा था कि दोनो पत्र भारत से आए हैं। मंजूषा का दिल धड़क गया। कांपते हाथों से पत्रों को उठाया। एक मुंबई से ईशा का था, दूसरा बड़ौदा से मंयक का। उसके हृदय की धड़कन और बढ़ गई, "यह क्या दोनों बच्चों के जवाब एक साथ आ गए।" दूसरे ही पल सोचने लगी, ऐसा भी हो सकता है कि दोनों चिठ्ठियां तीन–चार दिनों के अंतर में आई हो। वह तो आज पूरे एक हफ्ते बाद लेटरबॉक्स खोल रही है, इसलिए एक साथ मिलीं। दोनों पत्रों को थाम वह लिफ्ट की ओर बढ़ गई।
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मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में 
पटाख–तखल्लुस यानि
उपनामोपनाम

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक
'ग़ज़ल लिखते समय' का आठवां भाग
ग़ज़ल के लिए हिंदी छंद–1

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बड़ी सड़क की तेज़ गली में
अतुल अरोरा के साथ
पश्चिम की दीवानी दुनियाः डलास के किस्से

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रसोईघर में
पुलावों की सूची में नया व्यंजन
गाजर का पुलाव

सप्ताह का विचार
लो
हा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो ठंडा रह कर ही काम कर सकता है।  !—सरदार पटेल

 

अनुभूति में

हरस्वरूप भंवर,
तरूण भटनागर, 
डा किशोर काबरा और
 दिव्यांशु पांडे व ललित कुमार
की नयी कविताएं

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में

लॉटरी–राकेश त्यागी
संदर्भहीन–सुदर्शन प्रियदर्शिनी
रोशनी का टुकड़ा–अभिनव शुक्ल
ओ रे चिरूंगन मेरे–मीना काकोडकर 
खाल–विनीता अग्रवाल
बहुरि अकेला –मालती जोशी

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हास्य व्यंग्य में

सांस्कृतिक विरासत–अगस्त्य कोहली
मुक्त मुक्त का दौर–डा नवीन चंद्र लोहनी
फंदा–डा नरेन्द्र कोहली
कौन किसका बाप–महेशचंद्र द्विवेदी

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सामयिकी में
डा जगदीश व्योम का संस्मरण
स्मृतिशेष डा उर्मिलेश

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का छठा भाग
छंद विचार–3

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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव का स्नेहपूर्ण निमंत्रण
चलो चिट्टा लिखें

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साहित्यिक निबंध में
भारतेन्दु मिश्र का आलेख
दोहे की वापसी

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आज सिरहाने
कुसुम अंसल का उपन्यास
तापसी

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

 

 

 
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