उर्दू बहरें
लेखमाला– ६ में वर्णित जिन दस
सालिम अरकान (पूर्णाक्षरी–घटकों) से उन्नीस (१९) बहरें
निर्मित हुई हैं, वो दो प्रकार की हैं–
१) मुफ़रद बहरें अर्थात एक ही घटक(रूक्न) की पुनरावृति से
निर्मित सात सालिम(पूर्णाक्षरी)बहरें, जिन्हें यहाँ
'विशुद्ध' कहा गया है।
इन सभी बहरों में, प्रति पंक्ति(मिसरा), संबंधित घटक को दो,
तीन, चार, पाँच, छः, सात, आठ बार तक दोहराया जा सकता है
तथा शेर की दो पंक्तियों के लिहाज़ से बहर को क्रमशः
चार–घटकीय, छः–घटकीय, आठ–घटकीय, दस–घटकीय, बारह–घटकीय,
चौदह–घटकीय, सोलह–घटकीय कहा जा सकता है। (उर्दू में, घटकीय
अर्थात 'रूक्नी')। इसके अतिरिक्त, उर्दू में, आठ घटकीय बहर
को 'मुसम्मन', छः घटकीय बहर को 'मुसद्दस' तथा चार–घटकीय
बहर को 'मुरब्बा' कहते हैं।
२) मुरक्कब बहरें अर्थात दो
भिन्न घटकों (अरकान) की पुनरावृति से निर्मित बारह
सालिम(पूर्णाक्षरी) बहरें, जिन्हें यहाँ 'मिश्रित' कहा गया
है।
ये बहरें केवल आठ–घटकीय, छः
घटकीय तथा चार–घटकीय ही होती हैं।
(क)मुफ़रद(विशुद्ध) आठ–घटकीय, छः घटकीय तथा चार–घटकीय
पूर्णाक्षरी(सालिम) बहरें
बहर
घटक संख्या
घटक प्रति पंक्ति
(गुरू–लघु क्रम सहित)
१ .हजज
आठ–घटकीय
म फा ई लुन (।ऽऽऽ) – चार बार
छः–घटकीय
म फा ई लुन (।ऽऽऽ) – तीन बार
चार–घटकीय
म फा ई लुन (।ऽऽऽ) – दो बार
२ रजज़
आठ–घटकीय
मुस तफ इ लुन (ऽऽ।ऽ) – चार बार
छः–घटकीय
मुस तफ इ लुन (ऽऽ।ऽ) – तीन बार
चार–घटकीय
मुस तफ इ लुन (ऽऽ।ऽ) – दो बार
३ रमल
आठ–घटकीय
फा इ ला तुन (ऽ।ऽऽ) – चार बार
छः–घटकीय
फा इ ला तुन (ऽ।ऽऽ) – तीन बार
चार–घटकीय
फा इ ला तुन (ऽ।ऽऽ) – दो बार
४ वाफ़िर
आठ–घटकीय
म फा इ ल तुन (।ऽ।।ऽ) – चार बार
छः–घटकीय
म फा इ ल तुन (।ऽ।।ऽ) – तीन बार
चार–घटकीय
म फा इ ल तुन (।ऽ।।ऽ) – दो बार
५ कामिल
आठ–घटकीय
मु त फा इ लुन (।।ऽ।ऽ) – चार बार
छः–घटकीय
मु त फा इ लुन (।।ऽ।ऽ) – तीन बार
चार–घटकीय
मु त फा इ लुन (।।ऽ।ऽ) – दो बार
६ मुतकारिब आठ–घटकीय
फ ऊ लुन (।ऽऽ) – चार बार
छः–घटकीय
फ ऊ लुन (।ऽऽ) – तीन बार
चार–घटकीय
फ ऊ लुन (।ऽऽ) – दो बार
७ मुतदारिक
आठ–घटकीय
फा इ लुन (ऽ।ऽ) – चार बार
छः–घटकीय
फा इ लुन (ऽ।ऽ) – तीन बार
चार–घटकीय
फा इ लुन (ऽ।ऽ) – दो बार
इन में से हज़ज, रजज़, रमल, कामिल, मुतकारिब तथा मुतदारिक और
उनके अनेकानेक अपूर्णाक्षरी रूप बहुप्रचलित हैं। हज़ज से
रूबई के छंद प्राप्त किए गए हैं, जिनकी संख्या मूल रूप से
चौबीस है। इस संख्या में बढ़ोतरी भी हुई हैं। ध्यान रहे कि
उर्दू में रूबाइयाँ इन्हीं विशिष्ट छंदों में मान्य हैं।
अन्य छंदों में रची गई चार पंक्तियाँ 'किता' के अंतर्गत
आती हैं, रूबाई के अंतर्गत नहीं।
(ख) मुरक्कब (मिश्रित) पूर्णाक्षरी (सालिम) बहरें
ये बहरें संख्या में बारह हैं – १)तवील, २)मदीद, ३)मुनसरेह,
४)मुक्तज़ब, ५)मज़ारे, ६)मुजतस, ७)ख़फीफ, ८)बसीत, ९)
सरी–अ, १०)जदीद, ११)क़रीब, १२)मुशाकिल।
इनमें से केवल मुक्तज़ब, मज़ारे, मुजतस तथा ख़फ़ीफ़ के कुछ
अपूर्णाक्षरी रूप ही प्रचलन में हैं, जिनका विवरण
निम्न–लिखित हैं –
१)मुक्तज़ब (अपूर्णाक्षरी आठ घटकीय)´
फ ऊ लु फै लुन फ
ऊ लु फै लुन
। ऽ । । ऽ
। ऽ । ऽ ऽ
देखने में यह एक अन्य बहर– मुतक़ारिब– का कोई भेद जैसा
प्रतीत होता है, परंतु वस्तुतः यह 'मुक्तज़ब' बहर का एक
अपूर्णाक्षरी रूप है।
२) मज़ारे (अपूर्णाक्षरी आठ घटकीय)
मफ ऊ लु फा इ ला तु
म फा ई लु फा इ लुन / फा इ ला न
ऽ ऽ । ऽ । ऽ ।
। ऽ ऽ । ऽ । ऽ / ऽ । ऽ ।
३) मुजतस (अपूर्णाक्षरी आठ–घटकीय)
म फा इ लुन फ इ ला तुन
म फा इ लुन फै लुन
। ऽ । ऽ । । ऽ ऽ
। ऽ । ऽ ऽ ऽ
४) ख़फीफ़ (अपूर्णाक्षरी छः घटकीय)
फा इ ला तुन म फा इ लुन फै लुन / फ इ लुन
ऽ । ऽ ऽ । ऽ । ऽ
ऽ ऽ । । ऽ
उर्दू की सभी बहरें तथा उनकी शाखाएँ, उनमें प्रयुक्त (अरकान)
के नामों से जानी जाती हैं।
उन्हें ।–ऽ से चिह्नित नहीं किया जाता, प्रत्येक उर्दू घटक
(रूक्न) की अपनी एक लय होती है। उसके अंतर्गत वही शब्द
लाना होता है जिसका उनकी लय से साम्य हो, उदाहरणार्थ –
'गुलशन' (ऽऽ) की लय अलग है और 'चमन' (।ऽ) की लय अलग। लय
शब्दों के गुरू–लघु क्रम से पहचानी जा सकती है। अगर
निम्नलिखित ग़ज़लांश की पहली पंक्ति में 'चमन' के स्थान पर
'गुलशन' लाया जाता है, तो लय का प्रभावित होना अवश्यंभावी
है –
चमन में शगूफ़े झुलसते रहे
बयाबां में बरसात होती रही
ये पंक्तियाँ हिंदी वर्ण–वृत 'भुजंगी' तथा उसके समकक्ष
बहरे–मुतका़रिब के एक वर्ण–वृत–प्रति चरण ।ऽऽ, ।ऽऽ, ।ऽऽ†।ऽ
के अंतर्गत रची गई हैं। इस छंद की पहली, छटी, ग्यारहवीं
तथा सोलहवीं मात्राओं का लघु होना अनिवार्य है। इन स्थानों
पर अगर लघु की जगह गुरू वर्ण लाया जाता है, तो वहाँ
'स्वरापात' की स्थिति बनती हैं। अतः वहाँ गुरू वर्ण भी लघु
वर्ण माना जाता है। हिंदी में भी यह नियम विद्यमान है।
वस्तुतः व्यावहारिक रूप से, हिंदी में लिखी जानेवाली अधिकांश
ग़ज़लों में 'स्वरापात' होता हुआ देखा जा सकता है, जो लय
को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए आवश्यक भी है। लय के महत्व
को दर्शानेवाली डा .रामरतन भटनागर की ये पंक्तियाँ
दृष्टव्य हैं– "नाद और लय में विलक्षण सामर्थ्य है और
इसीलिए छंद मन को अधिक भावनाग्र्राही और संवेदनामूलक बना
लेता है।" (हिंदी साहित्य कोश, भाग १)
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