कहते हैं कि रूबाई, 'रोला' का बदला हुआ रूप है।
आबेस्ताई(पारसी)भाषा में 'ल' तथा 'ब' ध्वनि में समीपवर्ती होने
के कारण 'रोला' बदल कर पहले 'रोबा' और अंततः रूबाई हो गया। ऐसा
उर्दू के जाने–माने साहित्यकार जनाब ताराचंद रस्तोगी(असम) का
कहना है। परंतु रोला में प्रति चरण २४ मात्राएँ होती हैं, जबकि
रूबाई में बीस–इक्कीस मात्राएँ होती हैं। रूबाई की तर्ज़ भी
रोला से नहीं मिलती। रूबाई के संबंध में एक कथा यह भी प्रचलित
है कि यह 'ग़लतां ग़लतां हमीं रवद ता लबे गो' पर आधारित है, जो
ईरानी बच्चों के मुंह से एक पद्यांश के रूप में, खेलते–खेलते
अनायास ही निकल पड़ा था तथा जिसे ईरान के छंदाचारियों ने
बहरे–हज़ज में होना बताया था। वस्तुतः रूबाई के जितने भी छंद
हैं, वे इसी बहर से, तख़नीक तथा मआक़बा द्वारा प्राप्त किए गए
हैं।
रूबाई अब्बुल हसन रौदकी की
ईजाद है, ऐसी मान्यता है। यह एक चतुष्पदी छंद है, जिसके पहले
दो मिसरे मतले के रूप में काफ़िये–युक्त होते हैं, तीसरे मिसरे
में साधारणतया क़ाफ़िया नहीं लाया जाता तथा चौथा मिसरा
काफ़िया–युक्त होता है। रूबाई के चारों मिसरे काफ़िये–युक्त भी
हो सकते हैं। रूबाई के औज़ान(मीटर)विशेष रूप से निर्धारित हैं।
रूबाई का सृजन उन्हीं मीटरों की परिधि में रहकर करना अनिवार्य
है, अन्यथा कोई भी चार पंक्तियों की रचना रूबाई नहीं हो सकती।
ऐसी रचना को अलबता कित'अ अथवा 'क़तआ' कहा जाता है।
रूबाई की रचना कुछ इस प्रकार रची जाती है कि उसकी पहली तीन
पंक्तियाँ सुनने के पश्चात् सुननेवाला चौथी पंक्ति को सुनने के
लिए अत्यधिक उत्सुक तथा चौथी पंक्ति सुनते ही, भावार्थ स्पष्ट
होने पर, मंत्रमुग्ध–सा होकर रह जाता है, उदाहरणार्थ, ज़हीर
ग़ाज़ीपुरी की निम्नलिखित रूबाई–
मिलते थे तो वो रब से मिला करते थे
जिस शक्ल में हो उसकी सना करते थे
तारीख़ है शाहिद कि हमारे अजदाद
ऋग्वेद के श्लोक पढ़ा करते थे।
शब्दार्थ – सना – स्तुति, तारीख़ – इतिहास, शाहिद – गवाह,
अजदाद – पुरखे।
रूबाई के औज़ान(मीटर)
निम्नानुसार हैं–
(क) मफ ऊ लु(ऽऽ।) से प्रारंभ होनेवाले
(१) ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।ऽऽ। ।ऽ(१) ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।ऽऽ। ।ऽ
(२) ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।ऽऽ। ।ऽ।
(३) ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।ऽऽऽ ऽ
(४) ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।ऽऽऽ ऽ।
(५) ऽऽ। ।ऽऽ। ।ऽऽ। ।ऽ
(६) ऽऽ। ।ऽऽ। ।ऽऽ। ।ऽ।
(७) ऽऽ। ।ऽऽऽ ऽऽ ।।ऽ
(८) ऽऽ। ।ऽऽऽ ऽऽ ।ऽ।
(९) ऽऽ। ।ऽऽ। ।ऽऽऽ ऽ
(१०)ऽऽ। ।ऽऽ। ।ऽऽऽ ऽ।
(११)ऽऽ। ।ऽऽऽ ऽऽऽ ऽ
(१२)ऽऽ। ।ऽऽऽ ऽऽऽ ऽ।
(१३)ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।ऽ।ऽ ऽ।.
(१४)ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।ऽ।ऽ ।ऽ।
(१५)ऽऽ। ।ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।ऽ
(१६)ऽऽ। ।ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।ऽ।
(१७)ऽऽ। ।ऽऽऽ ऽ।ऽ ।ऽ
(१८)ऽऽ। ।ऽऽऽ ऽ।ऽ ।ऽ
क्रमांक १ ल . १२ रौदकी की तथा १३ ल . १८ सिहर – इश्काबादी की
ईजाद हैं।
(ख) मफ ऊ लुन (ऽऽऽ) से
प्रारंभ होनेवाले
(१) ऽऽऽ ऽ।ऽ ।ऽऽ। ।ऽ
(२) ऽऽऽ ऽ।ऽ ।ऽऽ। ।ऽ।
(३) ऽऽऽ ऽ।ऽ ।ऽऽऽ ऽ
(४) ऽऽऽ ऽ।ऽ ।ऽऽऽ ऽ।.
(५) ऽऽऽ ऽऽ। ।ऽऽ। ।ऽ
(६) ऽऽऽ ऽऽ। ।ऽऽ। ।ऽ
(७) ऽऽऽ ऽऽऽ ऽऽ। ।ऽ
(८) ऽऽऽ ऽऽऽ ऽऽ। ।ऽ।
(९) ऽऽऽ ऽऽ। ।ऽऽऽ ऽ
(१०)ऽऽऽ ऽऽ। ।ऽऽऽ ऽ।
(११)ऽऽऽ ऽऽऽ ऽऽऽ ऽ
(१२)ऽऽऽ ऽऽऽ ऽऽऽ ऽ।
(१३)ऽऽऽ ऽ।ऽ ।ऽ।ऽ ।ऽ
(१४)ऽऽऽ ऽ।ऽ ।ऽ।ऽ ।ऽ।
(१५)ऽऽऽ ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।ऽ
(१६)ऽऽऽ ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।ऽ।
(१७)ऽऽऽ ऽऽऽ ऽ।ऽ ।ऽ
(१८)ऽऽऽ ऽऽऽ ऽ।ऽ ।ऽ।
ऽऽ। = मफ ऊ लु
।ऽऽ। = म फा ई लु
।ऽ।ऽ = म फा इ लुन
।ऽऽऽ = म फा ई लुन
ऽ।ऽ = फा इ लुन
ऽ = फा
।ऽ = फ–अल्
।ऽ। = फ ऊ ल्
ऽ। = फा–अ
मीटर क्रमांक (क)(ख) १ से १२ रौदकी की तथा १३ से १८ तक सिह्र
इश्काबादी की ईजाद हैं। इसके अतिरिक्त ऽऽ।(मफ ऊ लु) के स्थान
पर ऽ।ऽ(फा इ लुन) रखकर, उससे प्रारंभ होनेवाले क्रमांक (क) के
सभी अठ्ठारह औज़ान (मीटर) डा ओमप्रकाश अग्रवाल 'ज़ार' की ईजाद
हैं।
इन सभी औज़ान में से किसी भी एक वज़न(मीटर) को लेकर अथवा कोई
से भी चार मीटर लेकर, रूबाई रची जा सकती है।
कुछ उदाहरण
'फिराक' गोरखपुरी
करते नहीं कुछ तो काम करना क्या आए
मीटर क्रमांक (क)(४)
जीते जी जान से गुज़रना क्या आए
मीटर क्रमांक (ख)(४)
रो रो कर मौत मांगने वालों को
मीटर क्रमांक (ख)(३)
जीना नहीं आ सका तो मरना क्या आए
मीटर क्रमांक (क)(४)
'महरूम' तिलोकचंद
इन्कारे–गुनाह भी किये जाता हूं
मीटर क्रमांक (क)(३)
तकरारे–गुनाह भी किये जाता हूं
मीटर क्रमांक (क)(३)
हासिल हो सवाब मुफ्त, इस लालच में मीटर क्रमांक
(क)(३)
इक़रारे–गुनाह भी किये जाता हूं
मीटर क्रमांक (क)(३)
'ज़हीर' ग़ाज़ापुरी
मिलते थे तो वो रब से मिला करते थे मीटर क्रमांक
(क)(९)
जिस शक्ल में हो उसकी सना करते थे मीटर क्रमांक
(क)(९)
तारीख़ है शहिद कि हमारे आजदाद मीटर क्रमांक
(क)(१०)
ऋग्वेद के श्लोक पढ़ा करते थे
मीटर क्रमांक (क)(९)
टिप्पणी : 'श्लोक' को 'इशलोक'
करके छंदोबद्ध किया गया है।
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