| मौक्तिकदाम 
						एक संस्कृत वर्णवृत हैं— प्रतिचरण जगण (।ऽ।) चार बार। इस 
						वर्णवृत के समकक्ष, बहरे मुकारिब (अभिसार छंद) का एक वर्ण 
						वृत है। जिसके प्रत्येक चरण में ।ऽ।, ।ऽ।, ।ऽ।, ।ऽ (प्रथम 
						तीन ।ऽ।=फऊलु तथा चरणांत में चौथा ।ऽ। फऊल् – 'ल' हलंत) 
						आते हैं।  समायोजन विधिः इस विधि द्वारा दो संस्कृत गणों अथवा दो उर्दू 
						अरकान के बीच में, जहाँ भी दो लघु वर्ण आमने सामने एक साथ 
						उपस्थित होते हैं, वहाँ उन्हें एक विशेष क्रम में गुरू 
						वर्ण बनाते हुए चलना होता है, जैसा कि निम्नलिखित आठ वर्ण 
						वृतों के उदाहरण में किया गया है—
 
						
						संस्कृत वर्ण वृत : 
                       
                        
                          
                            | १ | ।ऽ। | ।ऽ। | ।ऽ। | ।ऽ। | मौक्तिक 
							दाम |  
                              | २ | ।ऽ। | ऽ।। | ऽ।। | † ऽ। | समायोजन द्वारा क्रमांक १ से प्राप्त वर्ण वृत |  
                              | ३ | ।ऽऽ | ऽऽऽ | ।।ऽ | † १ | " |  
                              | ४ | ।ऽ। | ।ऽऽ | ऽ।। | † ऽ। | " |  
                              | ५ | ।ऽ। | ।ऽ। | ।ऽऽ | † ऽ। | " |  
                              | ६ | ।ऽऽ | ऽ।। | ऽऽऽ | † १ | " |  
                              | ७ | ।ऽऽ | ऽऽऽ | ऽऽ। |  | " |  
                              | ८ | ।ऽ। | ।ऽऽ | ऽऽऽ | † १ | " |  बहरे मुतकारिब (अभिसार छंद) 
						के वर्ण वृत 
                        
                          
                            | १ | ।ऽ। | ।ऽ। | ।ऽ। | ।ऽ। | मुख्य 
							वर्ण वृत (अस्ल वज़न) |  
                              | २ | ।ऽऽ | ऽ। | ।ऽ। | ।ऽ। | तख़नीक(समायोजन) द्वारा प्राप्त वर्ण वृत(रिआयती 
								वज़न) |  
                              | ३ | ।ऽऽ | ऽऽ | ऽ। | ।ऽ। | " |  
                              | ४ | ।ऽ। | ।ऽऽ | ऽ। | ।ऽ। | " |  
                              | ५ | ।ऽ। | ।ऽ। | ।ऽऽ | ऽ। | " |  
                              | ६ | ।ऽऽ | ऽ। | ।ऽऽ | ऽ। | " |  
                              | ७ | ।ऽऽ | ऽऽ | ऽऽ | ऽ। | " |  
                              | ८ | ।ऽ। | ।ऽऽ | ऽऽ | ऽ। | " |  उर्दू अरकान : ।ऽऽ= फऊलुन, 
						ऽ।=फैलु, (चरणांत में फ † अ), ऽऽ=फ़ैलुनटिप्पणी :
 मुतकारिब (अभिसार छंद) के ये आठ वर्ण वृत मौक्तिक दाम के 
						वर्ण वृतों से कुछ भिन्न होते हुए भी, गुरू लघु क्रम में 
						समान हैं।
 
                     	समायोजन की इस नयी विधि को यहाँ डिजिटल विधि के नाम से 
						परिचित करवाया जा रहा है, जबकि उर्दू की यह विधि मूलतः इस 
						प्रकार है—"जहाँ जहाँ दो अरकान के बीच ओं तीण मुतहर्रिक 
						(ज़बर, ज़ैर, पेश) वाले अक्षर एक साथ सिलसिलेवार आते हैं, 
						वहाँ वहाँ दाएं से दूसरे मुतहर्रिक अक्षर को साकिन कर दिया 
						जाता है। जैसे फैलु फऊलुन=फैलुफ ऊलुन=फैलुन फैलुन" इस 
						उदाहरण को उर्दू लिपि में लिख कर आसानी से समझा जा सकता 
						है। किंतु फिर भी यह नयी डिजिटल प्रक्रिया इसके मुकाबले 
						अधिक सरल है। 
                       संयोजन विधि से संबंधित 
						अन्य वर्णवृत समूह इस प्रकार हैं— 
                        
                          
                            | १ | ।ऽ। | ।ऽ। | ।ऽ। | ।ऽ/।ऽ। | मुख्य 
							वर्ण वृत (अस्ल वज़न) |  
                              | २ | ।ऽऽ | ऽ। | ।ऽ। | ।ऽ
                                /।ऽ। | तख़नीक(समायोजन) द्वारा प्राप्त वर्ण वृत(रिआयती 
								वज़न) |  
                              | ३ | ।ऽऽ | ऽऽ | ऽ। | ।ऽ/।ऽ। | " |  
                              | ४ | ।ऽ। | ।ऽऽ | ऽ। | ।ऽ
                                /।ऽ। | " |  
                              | ५ | ।ऽ। | ।ऽ। | ।ऽऽ | ऽ 
								/
                                ऽ। | " |  
                              | ६ | ।ऽऽ | ऽ। | ।ऽऽ | ऽ 
								/
                                ऽ। | " |  
                              | ७ | ।ऽऽ | ऽऽ | ऽऽ | ऽ 
								/
                                ऽ। | " |  
                              | ८ | ।ऽ। | ।ऽऽ | ऽऽ | ऽ 
								/
                                ऽ। | " |  (।ऽ=फऊल्, ऽ=फा, ऽ।=फा–अ) उपर्युक्त आठ उर्दू वर्ण 
						वृतों की परिधि में मौक्तिक दाम वर्ण वृत तथा मात्रिक समृ 
						छंद 'शृंगार' तथा 'गोपी' की कुछ पंक्तियाँ भी आ जाती 
						हैं, जैसे— 
                        
                          
                            | मौक्तिकदाम : |  
                            | १ | छल्यो बलि को नहिं भूतल ताप |  
                              | २ | सदा जय पूरब बिस्व महेन्द्र |  
                              | १ | । | ऽ | । | ऽ | । | । | ऽ | ऽ | ऽ | । |  |  
                              |  | छ | ल्यो | बल | को | न | हिं | भू | तल | ता | प |  |  
                              | २ | । | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | । | । | ऽ | । |  |  
                              |  | स | दा | जय | पू | रन | बिस् | व | म | हे | न्द्र |  |  
                              |  |  
                              | शृंगार : |  
                              | १ | पड़ी थी बिजली सी विकराल |  
                              | २ | गयी दासी पर उसकी बात |  
                              | ३ | भरत से सुत पर भी संदेह |  
                              | ४ | बुलाया तक न उसे जो गेह। —साकेत |  
                              |  | । | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | । |  | वर्ण वृत ७ |  
                              |  | प | ड़ी | थी | बिज | ली | सी | विक | रा | ल |  |  |  
                              |  | ग | ई | दा | सी | पर | उस | की | बा | त |  |  |  
                              |  | भ | रत | से | सुत | पर | भी | सं | दे | ह |  |  |  
                              | 
 |  
                              |  | । | ऽ | ऽ | ऽ | . | । | ऽ | ऽ | ऽ | । | वर्ण वृत ६ |  
                              |  | बु | ला | या | तक | न | उ | से | जो | गे | ह |  |  
                              |  |  
                              | गोपी : |  
                              | १ | गिरा हो जाती है सनयन |  
                              | २ | नयन करते नीरव भाषण |  
                              | ३ | श्रवण तक आ जाता है मन |  
                              | ४ | स्वयं मन करता बात श्रवण |  
                              |  | । | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | । | । | ऽ | 
								सहायक वर्ण वृत ३ |  
                              |  | गि | रा | हो | जा | ती | है | स | न | यन |  |  |  
                              |  | स्व | यं | मन | कर | ता | बा | त | श्र | वण |  |  |  
                              | 
 |  
                              |  | । | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ |  |  |  |  
                              |  | न | यन | कर | ते | नी | रव | भा | षण |  |  |  |  
                              |  | श्र | वण | तक | आ | जा | ता | है | मन |  |  |  |  उपर्युक्त तीनों छंदों का 
						विवरण इस प्रकार है— 
                        
						
                        मौक्तिकदाम वर्ण वृत का मात्रिक रूप                           
                          : प्रति चरण १६ मात्राएँ, पहली, चौथी, पाँचवीं, आठवीं 
						नवीं बारहवीं तेरहवीं तथा सोलहवीं मात्राएँ मूलतः लघु जिन 
						पर यदि गुरू वर्ण आता है तो वह भी लयात्मक स्वरापात के 
						अंतर्गत लघु माना जाता है। छंद के चरणांत में जगण (।ऽ।)आता 
						है।  उदाहरण— छल्यो बलि  को नहिं  भूतल   
						ताप
 ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ।। ऽ। = १६ मात्राएँ
                           शृंगार 
                      	: लय में मौक्तिकदाम के समान प्रति चरण १६ मात्राएँ, 
						चरणांत में गुरू लघु (ऽ।) ´ उदाहरण— गयी दासी पर उसकी बात
 ।ऽ ऽऽ ।। ।।ऽ ऽ। = १६ मात्राएँ
गोपी : प्रति चरण 
						१५ मात्राएँ। चरणांत में दो लघु(।।)उदाहरण— गिरा हो जाती है सनयन
 ।ऽ ऽ ऽऽ ऽ ।।।। = १५ मात्राएँ
 जैसा कि उपर्युक्त उदाहरणों 
						में देखा गया, ये तीनों ही छंद उर्दू वर्ण वृतों के समूह 
						एक की परिधि में आ जाते हैं। अतः हिंदी छंदानुशासन के 
						अंतर्गत भी इन्हें एक ही रचना में संयुक्त रूप से प्रयुक्त 
						किया जा सकता है, जिसे समग्र रूप से 'उपजाति छंद' कहा 
						जाएगा। गज़लों के लिए ये तीनों ही छंद, समग्र रूप से बहुत 
						ही उपयुक्त हैं। जो कि, जैसा ऊपर भी देखा गया समायोजन विधि 
						(तख़नीक) पर भी खरे उतरते हैं। ऐसे वर्ण वृत समूह अभी और 
						भी हैं, जिनकी परिधि में रह कर संगीतात्मक ग़ज़लें कही जा 
						सकती हैं और कही भी जा रही हैं। अगले अंक में हम इन्हीं 
						वृत समूहों की बात करेंगे। |