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रचना प्रसंग- ग़ज़ल लिखते समय–५

छंद-विचार भाग २
रामप्रसाद शर्मा महर्षि

 
लघु–गुरू वर्ण–नियमावली

पिंगल में हृस्व के लिए 'लघु' और दीर्घ के लिए 'गुरू' का प्रयोग किया गया है। लघु वर्ग की एक मात्रा तथा गुरू वर्ण की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं। लघु वर्ण को विराम चिह्न '।' से तथा गुरू वर्ण को अंग्रेज़ी के 'ऽ' से चिह्नित किया जाता है। उर्दू के लघु–गुरू वर्ण क्रमशः एक–अक्षरीय (एक हर्फ़ी) तथा दो–अक्षरीय (दो हर्फ़ी) होते हैं। उर्दू के दो हर्फ़ी गुरू वर्णों तथा हिंदी के गुरू वर्णों में समानताओं के साथ असमानताएँ भी हैं। उर्दू के गुरू वर्णों को 'सबबे–ख्रफ़ीफ' कहा जाता है, जो दो–अक्षरीय शब्द अथवा शब्दांश होते हैं, जिनका पहला अक्षर स्वरयुक्त तथा दूसरा हलंत होता है। उर्दू की बहरों में स्वरयुक्त तथा हलंत, दोनों अक्षरों का एक सुनिश्चित क्रम होता है। वस्तुतः उर्दू वर्ण–वृतों के निर्माण में स्वरयुक्त तथा हलंत अक्षरों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। उर्दू में 'कुछ' तथा कमल के 'मल' को गुरू वर्ण माना जाता है जबकि हिंदी में इसके सभी अक्षर लघु माने जाते हैं। यही वह अंतर है जो हिंदी के गुरू वर्ण को उर्दू के दो–अक्षरीय गुरू वर्णों से अलग करता है। शेष गुरू वर्ण दोनों में समान हैं।

गुरू वर्ण : नियम (१) संयुक्त, रेफ–युक्त, दोहरे अक्षरों से पूर्ववर्ती लघु वर्णों को गुरू वर्ण माना जाता है।

जैसे–
शिष्य = शि(ऽ), ष्य(।)
कर्म = क(ऽ), र्म(।)
उच्च = उ(ऽ), च्च(।)
उर्दू में इन्हें इस प्रकार लिखा जाता है, –
शिष्य = शिष्(ऽ), य(।)´
कर्म = कर्(ऽ), म(।)
उच्च = उच्(ऽ), च(।)
टिप्पणी : "तुम्हारा"= तु(।), म्हा(ऽ), रा(ऽ) – दोनों ही भाषाओं में।

नियम (२): अनुस्वार–युक्त अक्षर गुरू वर्ण माने जाते हैं।
जैसे– संत = सं(ऽ),त(।)
उर्दू में– संत = सन्(ऽ), त(।)

नियम (३) : विसर्गवाले अक्षर भी गुरू वर्ण माने जाते हैं। जैसे – अतः अ(।), तः(ऽ)।

नियम (४) : सभी दीर्घ मात्रा–युक्त अक्षर गुरू वर्ण माने जाते हैं। ए तथा ऐ भी गुरू वर्ण हैं।

नियम (५) : क्ष, त्र, ज्ञ भी संयुक्त अक्षर हैं। इनसे पूर्व आनेवाले लघु वर्णों को भी गुरू वर्ण माना जाता है। जैसे–
दक्ष = द(ऽ), क्ष(।)
पत्र = प(ऽ), त्र(।)
विज्ञ = वि(ऽ), ज्ञ(।)

उर्दू में –
दक्ष = दक्(ऽ), श(।)
पत्र = पत्(ऽ), त्र(।)
विज्ञ = विग्(ऽ), य(।)

टिप्पणी : उपर्युक्त नियमों में शब्दों को जिस प्रकार उर्दू के कायदे से गुरू–लघु वर्णों में विभक्त किया गया है, उसे उर्दू में 'तक़्ती' करना कहते हैं। उर्दू में शब्द 'तक़्ती' टुकड़े करने के अर्थ में आता है।

(ख) लघु वर्ण :
(१) लघु वर्णों को उपयुक्त उदाहरणों में भी देखा एवं समझा जा सकते हैं।
(२) मूल रूप से (हिंदी में) सभी अक्षर, जैसे – क, ख, ग आदि तथा कि, कु, खि, खु आदि लघु वर्ण माने जाते हैं।
(३) अ, इ, उ, ऋ भी लघु वर्ण हैं।
(४) अगर लयानुसार पढ़े जाने पर, कोई गुरू वर्ण, मौखिक रूप से, लघु होने का आभास देता है, तो उसे भी लघु वर्ण माना जाता है। इस नियम को यहाँ 'लयात्मक स्वरापात' कहा गया है।
(५) भंवर, अंधेरा में 'भं', 'अं' जैसे अक्षर भी लघु माने जाते हैं।
(६) उर्दू में आधे अक्षर को भी पूरा अक्षर (लघु वर्ण) माना जाता है। जैसे– आत्मा = आ–त–मा(ऽ।ऽ), रास्ता = रा–स–ता(ऽ।ऽ)। संस्कृत में हलंत अक्षर को नहीं गिना जाता। हिंदी में भी ऐसे उदाहरण नहीं मिलते। परंतु जहाँ तक ग़ज़लों का संबंध हैं, दीर्घ–मात्रा के बाद आनेवाले आधे अक्षर को, जैसे आत्मा, रास्ता में आए हैं, लघु वर्ण मानना सही मात्रा–गणना के लिए आवश्यक है।

लयात्मक संधि : जहाँ लयानुसार, दो शब्दों की संधि का संयोग बनता है, उसे उर्दू में 'अलिफ वस्ल' कहते हैं, जैसे–
'इक मुसाफ़िर था, रस्ते में नींद आ गई'
नींद†आ = नीं दा (ऽऽ)

आवश्यक नहीं कि संधि का ऐसा संयोग बने ही, परंतु जहाँ भी ऐसा संयोग बनता है, वहाँ उसका ध्यान रखना, सही मात्रा–गणना के लिए आवश्यक है। इस नियम को 'लयात्मक संधि' कहा गया है।

हिंदी के गुरू वर्णों तथा उर्दू के दो–अक्षरीय गुरू वर्णों में जो अंतर है, वह निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है।

शब्द       हिंदी लघु–गुरू     उर्दू लघु–गुरू
जनता       ज–न–ता       जन्–ता
तन मन धन    त–न–म–न–ध–न   तन–मन–धन
                । । । । । ।   ऽ    ऽ    ऽ
कुछ           कु–छ         कुछ
            । ।          (ऽ)
ग़ज़ल         ग़–ज़–ल a        ग़–ज़ल
               । । ।         । ऽ

इस अंतर को निम्न–लिखित उदाहरण से भी भली भांति समझा जा सकता है।
'गीत गुम–सुम है', ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी' – गोपाल दास 'नीरज'
पंक्ति में हिंदी लघु–गुरू वर्णों की संख्या
ऽ।।।।।।, ।।।।।।, ।ऽऽ।, ।ऽ = गुरू वर्ण ४, लघु वर्ण १५

पंक्ति में उर्दू लघु–गुरू वर्णों की संख्या
ऽ।ऽऽ।, ।ऽऽ।, ।ऽऽ।, ।ऽ = गुरू वर्ण ८, लघु वर्ण ७

उपर्युक्त पंक्ति में लयात्मक स्वरापात के कारण क्रमशः हैं, है, है को लघुवर्ण माना जाता है।

इन उदाहरणों में स्पष्ट है कि हिंदी गुरू वर्णों की तुलना में, उर्दू गुरू वर्णों की संख्या अधिक है, कारण कि उर्दू में गुम, सुम, जल, चुप को दो–अक्षरीय गुरूवर्ण माना गया है, जबकि हिंदी में हर अक्षर को लघु वर्ण माना गया है। उर्दू में उपर्युक्त पंक्ति की तक़्ती भी इस अंतर को स्पष्ट करती है–
ऽ  ।  ऽ   ऽ¸ ।।  ऽ   ऽ¸ ।। ऽ  ऽ । ।ऽ
गी त गुम सुम है ग़ ज़ल चुप है रू बा ई है  दु खी

१६ मई २००५

अगले अंक में वर्ण–वृत तथा मात्रिक छंदों के बारे में बताया जाएगा।
पृष्ठ : .........१०.११.१२.१३.१४.१५.१६.१७.१८

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