| 
                    जै 
					सा कि पिछली ग़ज़ल–लेखमाला–१४ में बताया जा चुका है, समायोजन 
					विधि (तख़नीक़) दो घटकों (अरकान) के मध्य में अपनाई जाती है। 
					वैसी ही विधि अगर एक ही घटक(रूक्त) पर अपनाई जाए तो उसे 
					'तस्कीन' कहते हैं। यह इन दोनों विधियों के अंतर को रेखांकित 
					करता है। एक अंतर और भी है। समायोजन (तख़नीक) संबंध बहरे 
					मुतकारिब (अभिसार छंद) से है, जब कि 'तस्कीन' का बहरे–मुतदारिक 
					(मिलनयामिनी छंद) से। याद रहे कि तस्कीन विधि केवल 
					अपूर्णाक्षरी(मुज़ाहिफ़) घटक (रूक्त) पर ही अपनाई जा सकती है, 
					सालिम(पूर्णाक्षरी) घटक पर नहीं।  
                    इस विधि द्वारा एक अपूर्णाक्षरी घटक में अगर दो लघु वर्ण 
					साथ–साथ(लगातार) उपस्थित हों, तो उन्हें मिला कर, गुरू वर्ण 
					बना दें, जैसे– ।।ऽ तस्कीन द्वारा ऽऽ बन जाता है। इस नई विधि 
					को यहाँ डिजिटल विधि के नाम से इण्ट्रोडयूस किया गया है। परंतु 
					इसकी मूल उर्दू विधि इस प्रकार है–                     
                    अगर एक ही मुज़ाहिफ रूक्न(सालिम रूक्न नहीं) में ज़बर, ज़ेर 
					अथवा पेश वाले तीन मुतहरिंक अक्षर एक साथ (लगातार) आएं तो बीच 
					वाले अक्षर को साकिन करने के अमल को 'तस्कीन' कहते हैं। 
					उदाहरणार्थ, – फ–इलुन (।।ऽ) को अगर उर्दू लिपि में लिखें, तो 
					उसके पहले तीन अक्षर(फ़े, ऐन, लाम) मुतहर्रिक होंगे। उसमें से 
					'एन' को साकिन कर देने से, वह फे–लुन (अथवा फा–लुन) बन जाएगा, 
					जो दो गुरू (ऽऽ) के समान होगा।
                    
                     
                    फ–इलुन (।।ऽ) बहरे–मुतदारिक (मिलनयामिनी छंद) का एक 
					अपूर्णाक्षरी घटक है, जिस पर तस्कीन द्वारा फै–लुन(ऽऽ) प्राप्त 
					किया गया है। इन दोनों का बहरे–मुतदारिक(मिलनयामिनी) में बहुत 
					महत्व है। अगर यह कहा जाए कि इन दोनों का इस बहर में बोलबाला 
					है, तो यह अतिशयोक्ति न होगी। इन दोनों के मेल से बहुत ही 
					सुरीले वर्ण–वृत(औज़ान) अस्तित्व में आते हैं। जैसे –'ग़ैरों पे करम, अपनों पे सितम,
 ऐ जाने–वफ़ा ये जुल्म न कर''
 
                      
                        
                          | ग़ै | रों | प |  क |  रम | अप |  नों  |   प |  सि | 
                    		तम |  
                          | 
                    		ऐ |  जा | न | व | फा | ये | 
                    		जुल् |  म | न |  कर |  
                          | ऽ | ऽ | । | । | ऽ | ऽ | ऽ | । | । | ऽ |  
                    इन दोनों को इसी रचना में तथा अन्य रचनाओं में, आवश्यकतानुसार, 
					एक–दूसरे के स्थान पर अदल–बदल कर भी लाया जा सकता है, जैसे– 
					नातिक गुलाठी के इस शे'र में, – ये मुद्दत हस्ती की आख़िर, यूं 
					भी तो गुज़र ही जाएगी
                     दो दिन के लिए मैं किस से 
					कहूं, आसान मिली मुश्किल कर देपहली पंक्ति :
 
                      
                        
                          | य | मुद् | दत | हस्  |  ती |  की |  आ   | खिर |  
                          | ऽ | ऽ | \ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ |  
                          | यूं   | भी   | त | गु | ज़र | जा | ए | गी |  
                          | ऽ | ऽ | । | । | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ |  दूसरी पंक्ति : 
                      
                        
                          | दो | दिन | क | लि | ए | मैं | किस | स | क | हूं |  
                          | ऽ | ऽ | \। | । | ऽ | ऽ | ऽ | । | । | ऽ |  
                          | आ | सा | न | मि | री | मुश | किल | कर | दे |  |  
                          | ऽ | ऽ | । | । | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ |  |  
                    
                   	टिप्पणी : यहाँ स्थानाभाव के कारण दोनों पंक्तियों को दो–दो 
					टुकड़ों में लिखा गया है। अगर प्रत्येक पंक्ति को एक ही लाइन 
					में लिखकर उसकी तक्ती (विभाजन) किया जाए, तो ज्ञात होगा कि ऽऽ 
					तथा ।।ऽ किस प्रकार और कहाँ–कहाँ, आवश्यकतानुसार, एक–दूसरे के 
					स्थान पर अदल–बदल कर आए हैं। यहाँ दिए गए अन्य उदाहरणों में 
					भी, इसी टिप्पणी के अनुसार तक्ती करके देखें।
                     
                    
                    इसके अतिरिक्त, इन दोनों घटकों (।।ऽ तथा ऽऽ) में से केवल किसी 
					एक घटक को, आवश्यकतानुसार, सम्पूर्ण ग़ज़ल में(मतले से लेकर 
					अंतिम शे'र तक) लाया जा सकता है। उदाहरणार्थ, – चांद शेरी, 
					कोटा(राजस्थान) के ग़ज़ल–संग्रह– 'ज़र्द पते हरे हो गए' में 
					संग्रहीत निम्नलिखित ग़ज़ल की हर पंक्ति में केवल 'ऽऽ' (दो 
					गुरू) को चार बार दोहराया गया है। उनकी यह ग़ज़ल 
					बहरे–मुतदारिक(मिलनयामिनी छंद) में है –
                    
                     पाकर चंदन तन की खुशबू – ऽऽ, 
					ऽऽ, ऽऽ, ऽऽमहक़ी घर–आंगन की खुशबू – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 लेकर आई रूत मतवाली – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 अधरों से चुम्बन की खुशबू – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 मीरों के गीतों–छंदों से – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 आती है मोहन की खुशबू – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 मां के उस पावन आंचल से – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 है मेरे बचपन की खुशबू – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 सूखे बरगद से भी इक दिन – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 आए गी सावन की खुशबू – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 बाक़ी है टूटे रिश्तों में – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 बरसों के बंधन की खुशबू – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 मेरी आंखों में है 'शेरी', – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ|
 मेरे निर्मल मन की खुशबू – ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ, ऽऽ
 
                   	बहरे–मुतदारिक(मिलनयामिनी) का एक अन्य उदाहरण, जिसमें ऽऽ तथा 
					।।ऽ किस प्रकार लाए गए हैं। देखें –मेरी ही बदौलत बज्म सजी,
 मुझ को ही कोई साग़र न मिला
 छलकी थी गुलाबी मेरे लिए,
 और प्यास बुझाई लोगों ने – ख़ामोश गाज़ीपुरी
 पहली पंक्ति
                     
                      
                        
                          | मे | री | हि | ब | दौ | लत | बज् | म | स | जी |  
                          | मुझ | को | हि | कु | ई | सा | गर | न | मि | ला |  
                          | ऽ | ऽ | । | । | ऽ | ऽ | ऽ | । | । | ऽ |  दूसरी पंक्ति
 
                      
                        
                          | छल | की | थि | गु | ला | बी | मे | र | लि | ए |  
                          | ऽ | ऽ | । | । | ऽ | ऽ | ऽ | । | । | ऽ |  
                          | औ' | प्या | स | बु | झा | ई | लो | गों | ने |  |  
                          | ऽ | ऽ | । | । | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ |  |  टिप्पणी : पहली पंक्ति में 
					दोनों जगह 'ही' कोई का 'को' तथा दूसरी पंक्ति में 'थी' तथा 
					मेरे का 'रे', लयात्मक स्वरापात नियम के अंतर्गत, लघु वर्ण बन 
					गए। 
                     |