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 १५. २. २०१७

इस पखवारे-

अनुभूति-में-
शंभू शरण मंडल, रमा प्रवीर वर्मा, कमलजीत सिंह कमल, अखिलेश सोनी और अनुराग तिवारी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- इस पखवारे शिवरात्रि के व्रत के लिये हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं-  केले की फलाहारी टिक्की।

स्वास्थ्य में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के २४ उपाय- ४- ध्यान का अभ्यास करें

बागबानी- के अंतर्गत घर की सुख स्वास्थ्य और समृद्धि के लिये शुभ पौधों की शृंखला में इस पखवारे प्रस्तुत है- ४- बैंबू पाम

भारत के सर्वश्रेष्ठ गाँव- जो हम सबके लिये प्रेरणादायक हैं- ४- धरनई- भारत का पहला सौर-ऊर्जित गाँव

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (फरवरी में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ... विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- राजा अवस्थी की कलम से रणजीत पटेल के संग्रह- ''अक्षर अक्षर फूल बने जब'' का परिचय।

वर्ग पहेली- २८५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

वरिष्ठ रचनाकारों की चर्चित कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में प्रस्तुत है रमेश उपाध्याय-की-कहानी- गलत गलत

 इस बार फरवरी अट्ठाईस की है। स्टिक में आठ पाइंट के छोटे-छोटे टाइप रखते हुए सात तारीख को मिलने वाले साठ रुपयों के बारे में सोचकर खुश हो आता हूँ। कुछ तो फ़ायदा है ही। तीस-इकत्तीस दिन काम करने पर भी साठ और अट्ठाईस दिन करने पर भी। साल के अधिकांश महीनों में इकत्तीस दिन होने की बात बुरी लगती है, किंतु आज मैं गुस्से और दुःख से अलग हटकर कोई बात सोचना चाहता हूँ। मन ही मन अनुमान लगाता हूँ कि ओवरटाइम के लगभग तीस रुपए और हो जाएँगे। साठ और तीस-नब्बे। चालीस एडवांस के निकाल दो-पचास। बस? मन कसैला-सा हो आता है। रुपयों की बात सोचकर अच्छा नहीं किया। कोई और अच्छी बात सोचनी चाहिए। जैसे पुल पर खड़े होकर नीचे बहते हुए पानी को देखने के बारे में कोई बात। अगहन की अँकुराई खेती पर जमी हुई ओस-बूँदों की बात। चाँदनी रात में रातरानी की गँधाती कलियों और डेविड के वायलिन की बात। स्टिक में जमी हुई लाइनें उतारकर गेली में रखने और कापी पर दृष्टि जमाकर...आगे-
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प्रेरणा गुप्ता की लघुकथा
फूली न समाई
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कुमार रवीन्द्र का रचना प्रसंग
इक्कीसवीं सदी का नवगीत चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ
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प्राण चड्ढा का संस्मरण
बाघ गणना में गए और भटक गए

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पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के साथ
''बड़ी सड़क की तेज गली में'' का आठवाँ भाग

पिछले पखवारे-

अनूप शुक्ला का व्यंग्य
हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे
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धर्मवीर भारती का आलेख
वसंत के बिना
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श्रीराम परिहार का ललित निबंध
वसंती पत्र पर लिखा निसर्ग का काव्य

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पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी सड़क की तेज गली में'' का सातवाँ भाग

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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है यू.ए.ई. से
बेजी जयसन-की-कहानी- कभी लौटेगा वसंत

अचानक से नींद खुली थी। कोई सपना देखा था शायद। मिसिस आर्य के होंठ सूखे थे। चेहरा भी फीका पड़ा था। खिड़की पर पर्दे के साये झूल रहे थे। कमरे में अँधेरा था। पंखा हल्की टिडिकटिक चाल चल रहा था। हल्की रोशनी, लंगड़ी खेलते हुए एक पाँव कमरे में तो एक बरामदे में रख रही थी। मिसिस आर्य ने पानी का जग उठाया। क्या देख कर जगी थी यह तो याद नहीं था। पर मन विचलित था। गिलास में पानी ड़ालते समय सोच रही थी काश घर में और कोई भी होता। खिड़की के बाहर नज़र गई थी। रात बेसुध होकर सो रही थी। हाँ चाँद जरूर सेंध लगाकर बैठा था। शायद सोती आँखों में कोई सपना डालकर जाना चाहता था। तकिये पर सिर रखा। माथा भन्ना रहा था। नींद का कहीं अता पता नहीं था। करवट बदली पर सोच कहीं अटकी खड़ी थी। चार बच्चे और सब उसकी दुनिया से दूर थे। छोटी की याद सताने लगी थी। उसके साथ झगड़ते मनते और कुछ नहीं सूझता था। थक के चूर बिस्तर तक आते-आते ही नींद घेर लेती। उठ कर अलमारी से गोली निकाली थी।...आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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