1
बाघ गणना में गए और भटक गए
-
प्राण चड्ढा
बाघ की गणना
जान का जोखिम है, ये नहीं कि जंगल में बाघ हमला कर देगा, अपितु
घने जंगल में राह भटक सकते हैं। पाँच साल पहले बाघों की गणना
उसके दरी पगचिन्ह देख कर की जाती थी तब न तो जीपीएस का उपयोग
होता था और न ही कैमरे से बाघ की फोटो की तकनीक की वैज्ञानिक
पद्धति ही विकसित हुई थी (यह लेख वर्ष २०१३ में लिखा गया था)।
हाँ, वनविभाग बाघों की गणना में ‘नेचर’ से जुड़ी संस्थाओं की
मदद ज़रूर लेता रहा।
वो मई के शुरुवाती दिन थे इसलिए मैं सुबह अचानकमार सेंचुरी के
सरहदी इलाके में सिहावल सागर सुबह-सुबह इस गणना में पहुँच गया
था, इस जलाशय से मनियारी नदी निकलती है। मेरे साथ पत्रकार
दिनेश ठक्कर और शरद पाण्डेय थे। इस जलाशय में मगर हैं। घने
साल-वन के बीच इस सुंदर जलाशय में संध्या होने के पहले आज भी
बायसन का झुण्ड पानी पीने पहुँच जाता है। मेरा अनुमान था कि,
जलाशय के किनारे कीचड़ में बाघ के पदचिह्न जरूर मिलेंगे। अभी
ये सोच ही रहे थे की मेरा जांबाज दोस्त अर्जुन भोजवानी पहुँचा।
वो कुछ उत्तेजित लग रहा रहा था। मैंने पूछा तब उसने बताया कि
बाघ के पदचिह्न खोजते हुए ऐसी जगह पहुँच गया जहाँ अवैध लकड़ी
कटाई हो रही थी, मना करने पर लकड़ी काटने वालों ने हमला कर
दिया, जान बचाने पिस्टल से तीन गोली चलानी पड़ी है।
हम सबने तय किया चलो कटाई करने वालों को सबक सिखाया जाए। इस
इलाके में पिछले साल बाघों की गणना के लिए मैं पीसीसीएफ
(वन्यप्राणी के) था जिप्सी से आया था तभी राह में एक दर्जन
ग्रामीणों ने सड़क पार की, सबके कंधे पर कुल्हाड़ा था। मैंने
साथ सफर कर रहे वनकर्मियों से उनको रोकने के लिए कहा और पूछा-
ये कुल्हाड़ी क्यों...? जवाब मिला जंगल में रक्षा के लिए।
मैंने फिर पूछा- और सबके पास लकड़ी कटाने वाली आरी ही क्यों?
अब वो भागने लगे। पीछे की गाड़ी से दो-वन कर्मी उनको खदेड़ने
थोड़ी दूर गए फिर वापस आ गए। शायद वे जानते थे आगे जान खतरे
में पड़ जाएगी। मुझे बीते साल की ये घटना याद आ गई। बहरहाल दो
जीपों में हम लोग रवाना हुए।
जीपें करीब दो किलो मीटर बाद रुक गईं। आगे की राह दुर्गम थी और
चढ़ाई पैदल तय करनी थी। कुछ दूर जाने के बाद दिनेश ठक्कर और
डा. मोटवानी ने कहा हम जीप को लिए वापस जा रहे है वहाँ इंतजार
करेंगे। बीटगार्ड साहू, अर्जुन भोजवानी, शरद पाण्डेय और मैं
आगे बढ़ गये। तीन किलोमीटर के बाद भी कोई न दिखा और न पेड़ कटे
मिले, न कटाई की आवाज, पर अर्जुन के कहने से आगे बढ़े जा रहे
थे। आखिर मैंने कहा- अर्जुन हम जंगल में जितनी दूर आ गए हैं
वहाँ से तो वापस जाना ही मुमकिन नहीं लगता। सबको बात सही लगी
और फिर जारी हुआ वापसी के लिए जद्दोजहद का सिलसिला...। कभी
सूरज को आधार मान के आगे बढ़ते तो कभी नाले-नाले चले जाते तो
कभी किसी पगडण्डी पर चलने लगते। पानी की एक बोतल थी। वो भी
धीरे-धीरे ख़त्म हो गई। भूख लगने लगी तो तेंदू के कुछ फल गिरे
मिले कुछ तोड़े पर ये ऊँट के मुँह में जीरा सा था।
कभी खाई फिर पहाड़ दर पहाड़ पग-पग तय करते गए। साथ गया बीट
गार्ड नया था, जब राह न मिलती तो हम अपनी हताशा उस पर उतारते
तो वो बोलता "भाई मारना है तो मार लो मैं भी ये जगह नहीं
जानता"। तय हुआ ऊँचे पहाड़ से किसी गाँव को देखें। दोपहर ढलने
लगी पर सूरज तप रहा था। किसी तरह पहाड़ पर चढ़ गए, पर कोई गाँव
दूर-दूर तक नजर नहीं आया। लेकिन मोबाइल पर हल्का सा कवरेज
दिखा। जंगल में मदद के लिए किसी को मोबाईल पर बात करना संभव न
था लिहाजा बिलासपुर में अपने भटक जाने की खबर वन विभाग को दी
और संभावित जगह बताई जहाँ हम लोग होंगे।
वन विभाग ने वायरलेस मेसेज अचानकमार में मौजूद अधिकारियों को
दिया और दो- तीन गाड़ियाँ हमें खोजने निकलीं। हम भी प्यासे चले
जा रहे थे, राह में एक नाले में जगह-जगह रुका थोड़ा पानी दिखा,
पत्तों का दोना बना पानी पिया, खाली बोतल भी इसी पानी से भर
ली। फिर मैं पानी पीने झुका और शर्ट की जेब में रखा मोबाइल
पानी में गिर गया। गंदले पानी से खोज कर निकला पर वो बंद हो
चुका था। इसी नाले पर आगे बढ़ते रहे, बाघ के पदचिन्ह खोजना भूल
चुके थे। मेरे जूते का सोल उखड़ गया था। कुछ देर ठंडी छाँव में
बैठ ताकत बटोर चलते रहे।
शाम
हो चली चली थी, तभी किस्मत से कालेज का एक छात्र नाले में
वनकर्मी के साथ दिखा जो बाघ के पदचिन्ह खोजने आया था। वन कर्मी
अनुभवी था। उसे जंगल की राहों का पता था। वो हमें सड़क की ओर
ले आया। वो न मिलता तो न जाने क्या होता। कुछ देर बाद हमें
खोजने निकला दल भी इस राह से गुजरा, उसने पस्त हो गये हमें
पानी और कुछ खाने का सामान दिया। जान बची और लाखों पाए...! हम
सिहावल सागर से मीलों दूर निकल चुके थे। बाद छपरवा पहुँचे जहाँ
हमारी प्रतीक्षा हो रही थी।
एक बात और, जंगल में कोई वन्य जीव तो न दिखा पर, ये भटकाव
यादगार बन गया। रेस्ट हॉउस में मैं एक वन अधिकारी वनकर्मी को
डांट रहा था। "तुम लोग पहले गाँवों में जा कर क्यों नहीं
बताते कि बाघों की गणना होगी लकड़ी काटने जंगल मत आना!” |