इस पखवारे- |
अनुभूति-में-
कृष्ण भारतीय, अभिषेक कुमार अंबर, विनोद दवे, हरीष सम्यक और अनूप अशेष की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- वसंत पंचमी के पावन अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि
प्रस्तुत कर रही हैं-
केसरिया मीठे चावल। |
स्वास्थ्य
में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के २४
उपाय- ३- संगीत
सीखें। |
बागबानी-
के अंतर्गत घर की सुख स्वास्थ्य और समृद्धि के लिये शुभ पौधों की शृंखला में इस
पखवारे प्रस्तुत है-
३-
लेडी पाम |
भारत के
सर्वश्रेष्ठ गाँव-
जो हम सबके लिये प्रेरणादायक हैं-
हिवरे
बाजार-
लखपति
परिवारों का गाँव। |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- इस माह (फरवरी में)
कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...
विस्तार से
|
संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है-
हरे राम समीप की कलम से मधुकर गौड़ के संग्रह-
''गीताम्बरी'' का परिचय। |
वर्ग पहेली- २८४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
|
हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है यू.ए.ई. से
बेजी जयसन-की-कहानी-
कभी लौटेगा
वसंत
अचानक से
नींद खुली थी। कोई सपना देखा था शायद। मिसिस आर्य के होंठ सूखे
थे। चेहरा भी फीका पड़ा था। खिड़की पर पर्दे के साये झूल रहे
थे। कमरे में अँधेरा था। पंखा हल्की टिडिकटिक चाल चल रहा था।
हल्की रोशनी, लंगड़ी खेलते हुए एक पाँव कमरे में तो एक बरामदे
में रख रही थी। मिसिस आर्य ने पानी
का जग उठाया। क्या देख कर जगी थी यह तो याद नहीं था। पर मन
विचलित था। गिलास में पानी ड़ालते समय सोच रही थी काश घर में
और कोई भी होता। खिड़की के बाहर नज़र गई थी। रात बेसुध होकर सो
रही थी। हाँ चाँद जरूर सेंध लगाकर बैठा था। शायद सोती आँखों
में कोई सपना डालकर जाना चाहता था।
तकिये पर सिर रखा। माथा भन्ना रहा था। नींद का कहीं अता पता नहीं
था। करवट बदली पर सोच कहीं अटकी खड़ी थी। चार बच्चे और सब उसकी
दुनिया से दूर थे। छोटी की याद सताने लगी थी। उसके साथ झगड़ते
मनते और कुछ नहीं सूझता था। थक के चूर बिस्तर तक आते-आते ही
नींद घेर लेती। उठ कर अलमारी से गोली
निकाली थी। सरदर्द आसानी से कम नहीं होने वाला।...आगे-
*
अनूप शुक्ला का व्यंग्य
हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे
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धर्मवीर भारती का आलेख
वसंत के बिना
*
श्रीराम परिहार का ललित निबंध
वसंती पत्र
पर लिखा निसर्ग का काव्य
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पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी
सड़क की तेज गली में'' का सातवाँ भाग |
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रमेश राज का व्यंग्य
पुलिस बनाम लोकतंत्र
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शशि पाधा का संस्मरण
मेजर सुधीर वालिया
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अनुज हनुमत सत्यार्थी का आलेख
क्या आज भी
प्रासंगिक है संविधान
*
पुनर्पाठ में गणतंत्र दिवस से संबंधित
विविध विधाओं में अनेक
रचनाएँ
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
अश्विन गांधी-की-कहानी-
लापता
२६ जनवरी। गणतंत्र दिवस।
स्पाइसजेट फ्लाइट ४४४। मुंबई से अमृतसर। सुबह १० बजे शुरू हो
कर, सीधी कहीं रुके बिना, १२ बजे अमृतसर पहुँचा देगी। अशोक,
आशा, और केतकी, तीन उल्लास भरे दिल प्लेन में बैठ गए। तीन
सहयात्री, तीन दोस्त, हिमाचल की यात्रा पे निकले थे। एक दिन
अमृतसर रुककर आगे गाड़ी से हिमाचल जाने का प्लान था। तीन महीने
पहले आशा ने कंप्यूटर से फ्लाइट की बुकिंग की थी। थोड़ी देर में
कैप्टन की आवाज़ सुनाई दी,'स्पाइसजेट फ्लाइट ४४४ में आप सब का
स्वागत है। मुझे अफसोस है कि हमारी फ्लाइट में थोड़ा सा
परिवर्तन हुआ है, हमें दिल्ली रुककर जाना होगा। आप सब आराम से
बैठे रहिये, बस थोड़ी देर में हमारी उड़ान शुरू होगी!' अशोक खुश
हो गया ,'आशा, तुमने क्या प्लान बनाया है! दिल्ली में गणतंत्र
दिवस की प्रख्यात परेड भी हम ऊपर से आकाश में बैठे बैठे देख
लेंगे! जबरदस्त!' 'इतना जल्दी बहुत खुश हो जाना अच्छी बात नहीं
है, अशोक!' आशा ने अशोक को जमीन पर ला पटका। कैप्टन की फिर से
आवाज़ आई...आगे- |
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