इस सप्ताह- |
1अनुभूति
में-1
रमेश गौतम, शंभुनाथ तिवारी, अनिल पुरोहित,
कृष्णनंदन मौर्य और शुभम की
रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक
शुचि लेकर आई हैं पेय की विशेष शृंखला में- दूध और फलों से बनी -
मूँगिया मलाई। |
बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को सुंदर, उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
१०-
बाग बैठकी |
जीवन शैली में-
कुछ आसान सुझाव जो व्यस्त जीवन में, जल्दी वजन घटाने के लिये सहायक हो सकते हैं-
१३- पाँच मिनट व्यायाम की चुटकी |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
९-
सौंदर्य, सुविधा और सजावट |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं--आज-के-दिन-(६-अप्रैल-को)-अभिनेत्री सुचित्रा-सेन, क्रिकेटर दिलीप-वेंगसरकर और अभिनेता निर्देशक संजय-सूरी का जन्म हुआ था...
विस्तार से |
नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह
प्रस्तुत है- डॉ. जगदीश व्योम की कलम से पूर्णिमा वर्मन के नवगीत संग्रह-
चोंच मे आकाश का परिचय। |
वर्ग पहेली- २३१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
प्रतिभा की कहानी-
अपदस्थ पति
वह
अपने को भोंदू, नालायक, शरीफ या नामर्द समझे कि उसके ही घर में
रहकर उसकी बीवी दूसरे से प्रेम करती रही और उसे आज मालूम हुआ
जब उसने खुलकर इकरार करते हुए साफ-साफ बता दिया,"मैं तुम्हें
छोड़कर जा रही हूँ सुमित के पास।" आमिष यों चौंका था जैसे एक
झटके में उसके सबसे बड़े विश्वास पात्र द्वारा उसके भीतर का जमा
सारा भरोसा छीन लिया गया हो। भूमिका से सगा कोई न था उसके लिए।
जो सबसे बढ़कर सगा, उसी के द्वारा इतना बड़ा छल मानो खुद पैर के
नीचे की जमीन कह रही हो कि मैं अब तुम्हारा आधार नहीं। मुँह के
बल धक्का खाकर मानो लहूलुहान हो गया वह। उसने अपने मर्मांतक
कष्ट और अधैर्य को सँभालने की कोशिश करते हुए पूछा,"सुमित के
पास जा रही हो...तुम मेरी कौन हो और किस उम्र में हो यह तो याद
है तुम्हें?" "सब कुछ याद है मुझे।
शादी के पहले से हम दोनों एक-दूसरे को प्रेम कर रहे हैं।
अपने-अपने माँ-बाप की मर्जी पर शादी करते समय हमने तय किया था
कि एक-दूसरे को भुला देंगे और...
आगे-
*
राजेन्द्र वर्मा की
लघुकथा-
बेटा
*
लीना मेंहदले का आलेख-
करोड़ों के मधुमेह का आयात
*
जियालाल आर्य की कलम से
शिगनापुर के
शनिदेव
*
पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का दूसरा भाग |
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दीपक दुबे के साथ मनोरंजन
नो उल्लू बनाईंग
*
प्रमोद कोव्वप्रत का विवेचनात्मक
अध्ययन
परिंदे:नियति का अँधेरा और उजाले की तलाश
*
डॉ. अनिल से पर्यटन में
जानें
समृद्ध परंपराओं
का प्रदेश हरियाणा
*
पुनर्पाठ में राजेन्द्र तिवारी का
संस्मरण-
शिमला में
घुला निर्मल
*
गौरवगाधा में प्रस्तुत
है भारत से
निर्मल वर्मा की कहानी-
परिंदे
अँधेरे
गलियारे में चलते हुए लतिका ठिठक गयी। दीवार का सहारा लेकर
उसने लैम्प की बत्ती बढ़ा दी। सीढ़ियों पर उसकी छाया एक बैडौल
कटी-फटी आकृति खींचने लगी। सात नम्बर कमरे में लड़कियों की
बातचीत और हँसी-ठहाकों का स्वर अभी तक आ रहा था। लतिका ने
दरवाजा खटखटाया। शोर अचानक बंद हो गया। “कौन है?" लतिका चुप
खड़ी रही। कमरे में कुछ देर तक घुसर-पुसर होती रही, फिर दरवाजे
की चिटखनी के खुलने का स्वर आया। लतिका कमरे की देहरी से कुछ
आगे बढ़ी, लैम्प की झपकती लौ में लड़कियों के चेहरे सिनेमा के
परदे पर ठहरे हुए क्लोजअप की भाँति उभरने लगे। “कमरे में
अँधेरा क्यों कर रखा है?" लतिका के स्वर में हल्की-सी झिड़की
का आभास था। “लैम्प में तेल ही खत्म हो गया, मैडम!" यह सुधा का
कमरा था, इसलिए उसे ही उत्तर देना पड़ा। होस्टल में शायद वह
सबसे अधिक लोकप्रिय थी, क्योंकि सदा छुट्टी के समय या रात को
डिनर के बाद आस-पास के कमरों में रहनेवाली...
आगे-
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