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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
राजेन्द्र वर्मा की लघुकथा- बेटा


तीन सालों बाद प्रभात जब अमेरिका से लौटा, तो उसके साथ नवविवाहिता पत्नी थी। सबसे पहले दोनों माँ से मिलने वृद्धाश्रम गये। जब वह अमेरिका जाने लगा था, तो माँ को वृद्धाश्रम में डालना पड़ा था। पिताजी पहले ही दुनिया से विदा ले चुके थे। घर में कोई और था नहीं।

उस समय माँ की तबीयत बहुत ख़राब थी। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। आश्रम ने प्रभात से सम्पर्क करने का कई बार प्रयास किया था, पर सफलता न मिली थी। यह तो अच्छा हुआ कि वह स्वयं ही आ गया था।
माँ को नामी डॉक्टर को दिखाया गया। प्रारम्भिक दवाइयों के बाद उसने कई जाँचें लिखी थीं। कुछ जाँचें हो गयी थीं, कुछ बाक़ी थीं। दवाइयाँ शुरू हुईं। कुछ आराम लग रहा था।

अगले दिन उसने फ्लैट खरीदा। फ़्लैट का कब्जा मिलने में कोई एक हफ्ता लगना था। बिजली का काम और पुताई चल रही थी। तब तक उसने होटल में रहने का निर्णय किया। कल फ़्लैट का कब्ज़ा मिलने वाला था। दिन भर आज वह उसी में लगा रहा। होटल लौटते-लौटते रात के दस बज गये। खाते-पीते सोते-सोते बारह बज गये।

रात के दो बजे होंगे कि प्रभात के मोबाइल पर काल आयी। वह सोया पड़ा था। पत्नी ने कॉल अटेंड की- आश्रम से फोन था; माँ की तबीयत बिगड़ गयी थी। उसने प्रभात को जगाया, लेकिन नींद में उसने अपेक्षित ध्यान न दिया। ‘‘सवेरे चलेंगे’’ कहकर वह फिर निद्रा की गोद में चला गया। पत्नी के मन में था कि अभी चला जाए। प्रभात को जगाने की उसने एक बार कोषिष की, पर वह नहीं जगा। थोड़ी देर तक जगने के बाद वह भी सो गयी।

सवेरे के सात भी न बजे थे कि मोबाइल बज उठा। आश्रम से ही काल थी। दुखद सूचना थी। पति-पत्नी तुरन्त आश्रम पहुँचे।

पत्नी की माँ बचपन में ही नहीं रही थी। सोचती थी- प्रभात की माँ में अपनी माँ तलाष लेगी, पर यहाँ तो आते ही मामला उलट गया- जैसे ही उसके पैर आश्रम में पड़े, प्रभात की माँ न रही। स्वयं को वह अपराधबोध से ग्रसित पाती। दाह के अगले दिन प्रभात ने आश्रम के मैनेजर से बात की। अगले दिन वह वहाँ से एक वृद्धा को अपने साथ लाने पहुँचा जो उसकी माँ की अन्तरंग थी। उसके पति संन्यासी हो चुके था और उनका कोई अता-पता न था। बच्चे हुए न थे।

आश्रम से निकलते समय वह अन्य वृद्धाओं से गले मिलती और रोती जाती थी। अपना भाग्य सराहते हुए प्रभात पर आशीष उड़ेलती जातीं। आश्रम के लोगों ने ऐसा दृष्य पहली बार देखा था। पिछले बीस सालों में अब तक केवल चार माँए अपने बेटे-बेटियों के पास वापस लौट पायी थीं। यह अकेली ऐसी स्त्री थी जो बिना माँ बने ‘बेटे’ के साथ घर जा रही थी।
पत्नी को माँ मिल गयी थी और पति को नयी माँ! दोनों के मुखमंडल मानवीयता की आभा से दमक रहे थे।

६ अप्रैल २०१५

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