वैसे तो
हम पूरे साल ही मूर्ख बनते रहते हैं, मगर पिछले कई सालों
से हमने अपने लिए एक दिवस ही निर्धारित कर लिया है। बल्कि
कहें तो फिरंगियों के कारण हमने मूर्ख बनने का एक दिवस
निर्धारित किया है। अंग्रेजों ने यह सब अपनी सुविधा के
अनुसार ही किया था। मार्च का वित्तीय साल खत्म होने पर नया
वित्तीय वर्ष शुरू होने का दिन एक अप्रैल को चुना गया। एक
अप्रैल को मूर्ख दिवस जिसे अप्रैल फूल भी कहते है,
कहा गया। अंग्रेज लोग भारतीयों को मूर्ख बनाने की
कला में माहिर थे। वे इंडियंस को मूर्ख बनाकर आपस में
लड़ाकर फूट डालकर हमेशा राज करते रहे। वे गरीब जनता को रोज
ही मूर्ख बनाते। मूर्ख बनाते बनाते उन्होंने साल में एक
दिन मूर्ख दिवस ही घोषित कर दिया।
हमारे देश मे मूर्ख बनाने की कला तो पुरातन काल से ही चली
आ रही है। नारद की जब विवाह करने की इच्छा हुई तो भगवान
विष्णु ने उनका बंदर का मुख बना कर उन्हें मूर्ख बना दिया।
ऐसे ही सागर मंथन के समय भी राक्षसों को देवगणों ने अच्छा
मूर्ख बनाया था। अमृतपान खुद ले लिया ओर दानव मूर्ख बने
उन्हें देखते रहे।
आजादी के बाद भी देशी इंडियन ने यह खेल जारी रखा और आज भी
यह खेल जारी है इनके छलावे में आकर ही जनता रोज मूर्ख बन
रही है, जनता को राम राज्य का सपना रोज रोज दिखाया जा रहा
है, लेकिन देश अराजकता और रावण राज की ओर ज्यादा बढ़ रहा
है। लगता तो यह है कि जनता के दिमाग के बौद्धिक कीटाणु मर
गये हैं। वह रोज मूर्ख बन रही है। और हँसते-हँसते बन रही
है। अब देखो न, चुनाव का मौसम है और चुनावी सर्वेक्षणों का
जोर है। जनता इन सर्वेक्षणों से अब तक मूर्ख बनती आई है।
अब भी बनेगी।
अब भी रोज सर्वेक्षण आ रहे हैं, जनता मूर्ख्र बन रही है।
इन सर्वेक्षणों को देखें और परिस्थितियाँ देखें तो भटका
हुआ, लटका हुआ, त्रिशंकु सदन बनने के आसार बनते दिखाई दे
रहे हैं। मौसम गठबंधनों का चल रहा है, और तो और देखें तो
नौबत लठबंधन तक की नजर आ रही है। रोज आयाराम गयाराम का
बोलबाला है। जैसे हर चुनाव के पहले होता है। आयाराम गयाराम
अपने कमाल दिखा रहे हैं। कई बेपेंदी के लोटे तो लुढ़क गये
हैं तो कई लुढ़कने को तैयार बैठे हैं, सोच रहें हैं, अच्छे
ऑफर मिलें तो जायें। इसी तलाश में रोज सौदेबाजी हो रही है।
कई अल्प संख्या बल वाले दल के नेता भी सफेद धवल वस्त्र पहन
कर पीएम बनने के सपने देख रहे हैं। इससे पीएम इन वेटिंग की
कतार बढती ही जा रही है। अब यह कतार कस्बे की राशन दुकान
पर लगने वाली केरोसिन की लाईन से भी लम्बी हो गई है।
हमारे यहॉ ताजा उदाहरण जनता को मूर्ख बनाने का है ओर यह
पर्व हमेशा पाँच साल बाद ही आता है। चुनाव में जनता से
लंबे चौडे वादे कर उनसे वोट लेना जीतने पर उन्हें भुला
देना आधुनिक मूर्खता की निशानियाँ हैं। तब तो महामहिम तक
को कहना पडा कि पार्टियाँ झूठे वादे जनता से ना करें उतने
ही करें जिनका पालन किया जा सके। इस तरह से प्रति पाँच
वर्ष में यह पर्व आता है। आज का नेताओं का फंडा भी यही है
कि जनता मूर्ख बनी रहे तो अच्छा है। होशियार हो गई्र तो
उन्हें कौन पूछेगा?
अब तो मीडिया भी मूर्ख्र बनाने की इस दौड़ में शामिल हो गया
है। एसएमएस से राय लेकर सरकार बनाई जा रही है, पीएम ढूँढे
जा रहे हैं। भोंडे टीवी एड के बीच में सीरियल और प्रायोजित
खबरें दिखाई जा रही है। हर जगह मूर्खों का ही बोलबाला है।
घर में पत्नी पति को मूर्ख्र बना रही है, पति पत्नी को
मूर्ख बना रहे हैं। पति अपनी ऊपरी कमाई छिपाकर तो पत्नी
हाथ की सफाई दिखाकर।
यदि आपको आफिस मे काम ना करना हो तो आप मजे से मूर्ख बने
रहें। बॉस की नजर में मूर्ख बने रहने पर आपसे कोई भी किसी
काम के लिए नहीं कहेगा। बॉस भी कोई्र काम का बोझ आप पर
नहीं लादेगा। जरा होशियार बने ओर फँसे। इन दिनों आईडिया
वाले छोटे बच्चन अपने विझापन में यह कहते नजर आ रहे हैं,
कि नो उल्लू बनाईंग। अब यह जनता पर है कि वह उल्लू बने या
ना बने। बहरहाल नेता उल्लू बनाईंग। पर जनता नो उल्लू
बनिंग। एक अप्रैल मूर्ख दिवस पर नो उल्लू बनाईंग। |