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समृद्ध
परंपराओं का प्रदेश हरियाणा
- डॉ. अनिल
हरियाणा भारत का वह भू-भाग है, जहाँ भारतीय
सभ्यता फली-फूली। यहाँ के गौरवमय इतिहास का वर्णन मनुस्मृति,
महाभाष्य, महाभारत तथा पुराणों में भी हुआ है। मनुस्मृति में
उल्लेख है कि सरस्वती एवं दृषद्वती नदियों के बीच जो प्रदेश
स्थित है, वह ‘ब्रह्मावर्त’ अर्थात् हरियाणा है। मनु के अनुसार
इस प्रदेश का अस्तित्व देवताओं से हुआ, इसलिए इसे
‘ब्रह्मावर्त’ कहा गया है। हरियाणा ऋषियों-मुनियों की धरा है
जहाँ महर्षि विश्वामित्र, च्यवन, वशिष्ठ, भृगु, दुर्वासा,
जमदग्नि आदि ने तपस्या की। महाभारत मनुस्मृति, भागवत, वायु,
वासन व मार्कंडेय आदि अनेक पुराणों की रचना भी इसी प्रदेश में
हुई। हरियाणा वीर-बाँकुरों की धरती है, जहाँ समय-समय पर शक,
हूण, कुषाण, मुगल आदि विदेशी आक्रांताओं ने आक्रमण किया, लेकिन
प्रदेश के रणबाँकुरों ने भी उनका मुँहतोड़ जवाब दिया। यही वह
प्रदेश है जहाँ द्रविड़ व आर्य सभ्यताओं का संगम हुआ। जैन, नाथ
और सूफी संप्रदाय भी यहाँ फले-फूले। हरियाणा अनेक सूफी-फकीरों
की भी साधना स्थली है। यहाँ अनेक विद्वानों ने उच्चकोटि के
साहित्य की रचना की। ‘कादंबरी’, ‘हर्षचरितम्’ ग्रंथ भी इसी
प्रदेश में लिखे गये। राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार में
यहाँ के कवियों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
स्वर्ग के समान हरियाणा
हरियाणा प्रदेश के नामकरण के विषय में भी जिज्ञासा होना
स्वाभाविक है, हरियाणा का नामकरण कैसे हुआ? इस बारे में
भिन्न-भिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न मत व्यक्त किये, जिनका
कोई-न-कोई आधार रहा है। कुछ विद्वान हरियाणा का नामकरण ‘हर’
एवं ‘यान’ के मेल से हुआ मानते हैं। हरियाणा के निवासियों में
भगवान शिव के प्रति अगाध श्रद्धा रही है, इसलिए शिव के ही
प्रसिद्ध नाम ‘हर’ के कारण इस प्रदेश का नाम ‘हरयाण’ पड़ा, जबकि
कुछ विद्वानों के अनुसार हरियाण के ‘हरि’ शब्द का अर्थ
श्रीकृष्ण से संबंधित है तथा ‘यान’ को कृष्ण के रथ का सूचक
बताया गया है। चूँकि महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण का रथ
अर्थात् ‘यान’ इसी क्षेत्र से गुजरा था, इसलिए उनके आगमन के
उपलक्ष्य में ही इस प्रदेश का नाम हरियाणा रखा गया। लेकिन यह
धारणा इस प्रदेश के नामकरण के संबंध में उचित प्रतीत नहीं
होती। आज प्रदेश के अधिकांश विद्वानों, इतिहासकारों को इस घटना
में ही वज़न नजर आता है कि हरियाणा का संबंध हरियाली से होने के
कारण ही इस प्रदेश का नाम हरियाणा पड़ा। पहले यह प्रदेश घने
जंगलों से आच्छादित था। यहाँ का चप्पा-चप्पा हरी-भरी
वनस्पतियों से श्रृंगारित नजर आता था। कुल मिलाकर पूरा प्रदेश
ही हरियाली का आँचल ओढ़े था। इसलिए हरियाला से बिगड़कर ही इस
प्रदेश का नाम हरियाली पड़ा।
जहाँ तक हरियाणा की प्राचीनता का सवाल है तो इसका वर्णन सबसे
पहले संवत् ११८९ में रचित ‘पार्श्वनाथ चरित्र’ नामक एक जैन
ग्रंथ में हुआ है। लगभग सात सौ वर्ष पूर्व सुलतान मुहम्मद बिन
तुगलक के समय के एक शिलालेख में भी ‘हरियाणा’ शब्द का प्रयोग
हुआ है। बलबन के शासनकाल के एक शिलालेख में भी ‘हरियानक’ शब्द
प्रयुक्त हुआ है, जो हरियाणा का ही स्थानापन्न है। यह शिलालेख
पालम की एक बावड़ी से प्राप्त हुआ था। सुलतान मुहम्मद बिन तुगलक
के समय के एक शिलालेख में हरियाणा को स्वर्ग के समान बताया गया
है।
देशास्ति हरियाणाख्यः प्रथिण्याँ स्वर्गसत्रिमः।
ढिल्लिकाख्यापुरी तत्र तोमरैरस्तिमिननर्मिता।।
तोमरानंन्तरं तस्यां राज्यां निहतकंटकमृ।
वाहमानाः नुपाश्रचक्रु प्रजापालन तत्पराः।।
तीर्थ और मेले-
हरियाणा ही एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ सैकड़ों की संख्या में तीर्थ
हैं। कुरुक्षेत्र की ४८ कोस की पवित्र भूमि में ही ३६० के करीब
तीर्थ बताये जाते हैं, जिनका संबंध महाभारत काल से है। प्रदेश
के हर गाँव, कस्बे व नगर में गूँगे पीर की मढ़ी, शिवालय व
पीरों-फकीरों के मकबरे नजर आएँगे। हरियाणा के विभिन्न स्थानों
पर लगने वाले मेलों का भी अपना अलग ही महत्व है। हरियाणा में
नारनौल के निकट ढोसी पहाड़ी पर लगने वाला सोमवती अमावस्या का
मेला काफी प्रसिद्ध है।
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जनजीवन की छटा-
हरियाणा में लोकनृत्यों की परंपरा भी प्राचीन काल से चली आ रही
है जो पुरुषों और महिलाओं द्वारा फसल कटाई के बाद तथा विभिन्न
मांगलिक अवसरों पर किये जाते हैं। फागुन लोकनृत्य फाल्गुन के
महीने में किया जाता है। लोकगीतों का भी हरियाणा के जनजीवन से
सीधा संबंध है। हरियाणा के फाल्गुनी लोकगीत श्रृंगार रस से
ओत-प्रोत है। हरियाणा के लोकजीवन में बारहमासिया लोकगीत भी
विशेष महत्व रखते हैं।
गौरवशाली महापुरुषों की भूमि-
हरियाणा ने कई गौरवशाली महापुरुष भी दिये हैं, जिनमें लाला
लाजपतराय, पं. दीनदयाल शर्मा, सर छोटूराम, सर शादीलाल, पं.
नेकीराम शर्मा, लाला दुनीचंद, बाबू लाल मुकुंद गुप्त, राय
बहादुर लाल मुरलीधर आदि प्रमुख हैं। उर्दू के महान शायर ख्वाजा
अल्ताफ हुसैल हाली पर भी हरियाणा को गर्व है, जिनका जन्म
पानीपत में हुआ था। हरियाणा वीरांगनाओं की भी धरती है। इतिहास
साक्षी है यहाँ की बहादुर महिलाओं ने युद्ध क्षेत्र में जाकर
शत्रुओं से दो-दो हाथ किये और कई मौकों पर उन्हें युद्ध
क्षेत्र से भी खदेड़ा। मेवात की वीरांगनाओं ने तो समय आने पर
अपने पुत्रों को भी शत्रुओं को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए
प्रेरित किया। हरियाणा की सर्वखाप पंचायत सेना का जब तैमूरलंग
से युद्ध हुआ, तब हरियाणा की वीर महिलाएँ भी शत्रु सेना पर
खाँडे लेकर टूट पड़ी थीं। युद्ध के समय हरियाणा की महिलाएँ
सैन्य बल के लिए रसद जुटाने काम भी करती थीं।
सूफी, सिद्ध, नाथ, जैन, सतनाम आदि विभिन्न धर्मावलंबी संत,
कवियों ने प्रदेश के हिंदी साहित्य को अपनी काव्य प्रतिभा से
समृद्ध किया है। हरियाणा के प्रमुख संत कवियों में बू अलीशाह
कलंदर, गरीबदास, निश्छलदास, संत जैतराम, संत हरदेवदास के नाम
लिये जा सकते हैं। भले ही ये आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन
इनका अस्तित्व तो इनकी रचनाओं में युगों-युगों तक रहेगा।
अनेक ऐतिहासिक युद्धों का साक्षी-
हरियाणा को भारत की ऐतिहासिक युद्ध भूमि के रूप में जाना जाता
है। कुरुक्षेत्र जहाँ कौरवों और पांडवों के मध्य महाभारत का
युद्ध लड़ा गया हरियाणा का ही एक भाग है। पश्चिमोत्तर और मध्य
एशियाई क्षेत्रों से हुई घुसपैठों के रास्तें में पड़ने वाले
हरियाणा को सिकंदर (३२६ ई.पू.) के समय से अनेक सेनाओं के हमलों
का सामना करना पड़ा। यह भारतीय इतिहास की अनेक निर्णायक
लड़ाईयों का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। इनमें प्रमुख हैं- पानीपत
का पहला युद्ध - १५२६ में जब मुगल बादशाह बाबर ने इब्राहीम
लोदी को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली। पानीपत
का दूसरा युद्ध- १५५६ में जब अकबर ने अफगान सेना को पराजित
किया १७३९ का युद्ध जिसमें करनाल में फारस के नादिरशाह ने
ध्वस्त होते मुगल साम्राज्य को जोरदार शिकस्त दी। और पानीपत का
तीसरा युद्ध १७६१ में जब अहमदशाह अब्दाली ने मराठा सेना को
निर्णायक शिकस्त देकर भारत में ब्रिटिश हुकूमत का रास्ता साफ
कर दिया।
हरियाणा के पानीपत, करनाल, अंबाला, नारनौल, कुरुक्षेत्र,
रिवाड़ी आदि नगर ऐतिहासिक युद्धों के साक्षी हैं।
पुरातत्व का खजाना-
पुरातत्व की
दृष्टि से भी हरियाणा एक समृद्ध प्रदेश रहा है। यहाँ पाषाण युग
के अस्त्र-शस्त्र सुकेतड़ी, सूरजपुर, पिंजौर आदि स्थानों से मिल
चुके हैं। सिंधु सभ्यताकालीन दुर्ग भी खुदाई के दौरान इस
प्रदेश में पाया गया। हरियाणा में थानेसर के निकट गाँव दौलतपुर
में भी खुदाई के दौरान सिंधु घाटी सभ्यता के कई अवशेष पाये
गये। इसके अलावा प्रदेश के विभिन्न भागों में की गयी खुदाई के
दौरान सिंधु घाटी सभ्यता के कई अवशेष पाये गये।
इसके विभिन्न भागों में की गयी खुदाई से सिंधु घाटी
सभ्यता की कई विशिष्ट वस्तुएं भी काफी संख्या में मिली हैं।
हरियाणा में मीताथल, सीसवाल, बणावली, दौलतपुर, भगवानपुर आदि
गाँवों में पुरातन काल के कई अवशेष मिलते रहे हैं।
इन प्राच्य अवशेषों में छैनी, कंगन, खिलौने, बैलगाड़ी के पहिए,
बर्तन आदि हरियाणा में हिंदी साहित्य के सृजन की भी गौरवशाली
परंपरा चली आ रही है। |