कमलेश्वर स्मृति अंक
समकालीन कहानियों के
अंतर्गत
कमलेश्वर की कहानी
क़सबे का
आदमी
सुबह पाँच बजे गाड़ी मिली। उसने
एक कंपार्टमेंट में अपना बिस्तर लगा दिया। समय पर गाड़ी ने
झाँसी छोड़ा और छह बजते-बजते डिब्बे में सुबह की रोशनी और ठंडक
भरने लगी। हवा ने उसे कुछ गुदगुदाया। बाहर के दृश्य साफ़ हो
रहे थे, जैसे कोई चित्रित कलाकृति पर से धीरे-धीरे ड्रेसिंग
पेपर हटाता जा रहा हो। उसे यह सब बहुत भला-सा लगा। उसने अपनी
चादर टाँगों पर डाल ली। पैर सिकोड़कर बैठा ही था कि आवाज़
सुनाई दी, "पढ़ो पटे सित्तारम सित्तारम. . . " उसने मुड़कर देखा, तो
प्रवचनकर्ता की पीठ दिखाई दी। कोई ख़ास जाड़ा तो नहीं था, पर
तोते के मालिक, रूई का कोट, जिस पर बर्फ़ीनुमा सिलाई पड़ी थी
और एक पतली मोहरी का पाजामा पहने नज़र आए।
*
दृष्टिकोण में
कमलेश्वर के पत्रकार स्वरूप
की एक झलक दैनिक भास्कर में उनके स्तंभ से
प्रतिभा पलायन की गंगा उलटी बहने लगी है।
यह
ठीक है कि फास्टफूड वाले मैकडोनाल्ड, केएफसी, पेप्सी और कोकाकोला ने
हमारा मध्यवर्गीय शहरी बाज़ार पकड़ा है, पर अमेरिका और कनाडा के पूरे फूड
बाज़ार को भारत का गुजराती व्यवसायी अपने क़ब्ज़े में ले चुका है। मेडिसिन
और डॉक्टरी विशेषज्ञता का आलम तो यह है कि मध्य एशिया और अरब देशों के
साथ ही दक्षिणी एशिया का मरीज़ ही नहीं, उनका युवा तबक़ा भी भारतीय मेडिकल
संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करने के लिए बड़ी संख्या में आने लगा है। यह
बात दूसरी है कि हमारे राजनेता अभी भी इलाज और मेडिकल परामर्श के लिए
अमेरिका की ओर भागते हैं और तो और दवा उद्योग क्षेत्र में भी भारत अपने
मज़बूत कदम आगे बढ़ा चुका है।
*
संस्मरण में
गंगा प्रसाद विमल
का आलेख
स्मृतिशेष कमलेश्वर
अपने
विद्यार्थी काल में कमलेश्वर को पढ़ना शुरू किया, तो जैसे आँखों के
आगे एक नई दुनिया खुलने लग गई थी। एक उन कथाकारों द्वारा रचित
दुनिया, जिसमें भावुकता, काल्पनिकता, सब कुछ था, किंतु वह भीतर तक
बाँध नहीं पाती थीं। 'राजा निरबंसिया' या 'जॉर्ज पंचम की नाक' जिस
तरह भीतर तक हलचल मचाती थी, उस ढंग से किसी ने लोक शैली या प्रतीकों
को आधार बनाकर प्रयोग नहीं किए थे। वर्ष 1960 के आरंभ में जब नई
कहानी आंदोलन अपने शीर्ष पर था, मुझे कहानियों पर कुछ समालोचनात्मक
लिखने की सूझी। हालाँकि तब तक मैं अपने प्रयोगधर्मी लेखन के लिए
कुख्यात हो चुका था। उन्हीं दिनों कमलेश्वर जी से मेरी मुलाक़ात हुई
थी और मैं उनसे बहस के मूड में था कि कमलेश्वर जी ने मुझे उत्साहित
किया कि जो मैं सोच रहा हूँ, उसे लिखना आरंभ कर दूँ।
*
श्रद्धांजलि में
भारत से महत्वपूर्ण व्यक्तियों
के
श्रद्धा-सुमन
कमलेश्वर के नाम
मैं
और कमलेश्वर फ़िल्मों के माध्यम से नहीं मिले थे। उनसे मेरी मुलाक़ात
उनके फ़िल्मों में आने से पहले हुई थी। हम दोनों साहित्य के माध्यम
से ही मिले थे। हम साहित्य पर ही बातें करते थे। उन दिनों कमलेश्वर,
मोहन राकेश और दुष्यंत कुमार- ये तीनों युवा रचनाकार की तरह मिले थे
और उनकी रचनाओं में अलग तरह का जोश था। उनकी कहानी ने नई पीढ़ी को नई
दिशा दी है। उनके साथ बिताए पल-पल की यादें ताज़ा हैं और वह कभी
मुरझाने वाली नहीं हैं। मैं उन यादों को अपने हिसाब से जी रहा हूँ।
मुंबई के बाद जब वह दिल्ली चले गए तब भी हम एक दूसरे से ही नहीं
बल्कि परिवार के साथ मिलते थे।
*
मूल्यांकन में
कमलेश्वर की लेखन यात्रा पर
दृष्टिपात कर रहे हैं मैनेजर पांडेय
लोकतांत्रिक चेतना से संपन्न कथाकार
उनकी लेखन यात्रा पर अगर नज़र
डालें तो स्पष्ट होता है कि उनकी रचनाओं में अत्यंत विविधता
थी और उनका विस्तार भी काफ़ी व्यापक था। कमलेश्वर नई कहानी
के दौरान चर्चा में आए। इस दौर के दो कहानीकारों राजेंद्र
यादव और मोहन राकेश के साथ उनकी तुलनात्मक चर्चा अकसर होती
रही है। लेकिन इन दोनों और इस दौर के दूसरे अन्य कहानीकारों
के मुकाबले कमलेश्वर में सामाजिक चेतना सबसे अधिक थी। उनके भीतर समाज
के उत्पीड़ित और पराधीन लोगों की यातना की अभिव्यक्ति की चिंता
सर्वाधिक थी।
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-पिछले अंकों से-
कहानियों में
दिल्ली दूर है-किरन
अग्रवाल
अपूर्णा
- अलका सिन्हा
अंतरमन के रास्ते
-
शरद आलोक
शिमला
क्लब. . . -राजकुमार
राकेश
पिंजरे
में बंद तोते-विपिन
जैन
सही पते पर- सूरज
प्रकाश
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हास्य व्यंग्य में
जनतंत्र-डॉ नरेंद्र कोहली
संभावनाएँ बहुत हैं...!-
गुरमीत बेदी
सेवा वंचित-डॉ नरेंद्र
कोहली
नया साल मुबारक-
अमृत राय
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विज्ञान वार्ता में
डॉ गुरुदयाल प्रदीप प्रस्तुत कर
रहे हैं
गरमा-गरम चाय की
प्याली: आप के स्वास्थ्य के नाम
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प्रौद्योगिकी में
रवि शंकर श्रीवास्तव ढूँढ लाए हैं
मरफ़ी के नियम
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साहित्य समाचार में
विश्व के हर कोने से साहित्य समाचार
उन्नीसवाँ अखिल भारतीय
लघुकथा सम्मेलन पटना में संपन्न*
'दारोश` तथा अन्य
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नॉर्वे में विश्व हिंदी दिवस मनाया गया*
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दृष्टिकोण
के अंतर्गत सिद्धेश्वर सिंह की उड़ान
गाँधीगिरी
के आश्चर्यलोक में
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साहित्यिक निबंध
में
दीप्ति गुप्ता द्वारा रेखाचित्र
गुलाब सिंह
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आज सिरहाने
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मूलचंदानी का कविता संग्रह
कुत्ते की पूँछ
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घर परिवार में
भावना कुँअर का आलेख
सर्दियों में सर्दी
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फुलवारी में
बच्चों के लिए मौसम की जानकारी
बादल कैसे बनते हैं
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