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एस. आर.
हरनोट को उन के बहुचर्चित कहानी संग्रह 'दारोश तथा
अन्य कहानियाँ' के लिए वर्ष 2003-04 का राज्य अकादमी
पुरस्कार प्रदान किया गया है। यह पुरस्कार उन्हें
हिंदी कहानी-उपन्यास-नाटक वर्ग में दिया गया है। इस
कहानी संग्रह को वर्ष 2003 में अंतर्राष्ट्रीय इंदु
शर्मा कथा सम्मान (लंदन) भी मिल चुका है।
'दारोश' उन का
सर्वाधिक लोकप्रिय व चर्चित कथा संग्रह है जिसे पाठकों
ने खूब सराहा है, आलोचकों ने चर्चा की है और राष्ट्रीय
स्तर की लगभग सभी श्रेष्ठ पत्रिकाओं और समाचार पत्रों
में इस की समीक्षाएँ प्रकाशित हो चुकी है। 'दारोश' की
कई कहानियाँ अंग्रेज़ी, मराठी, मलयालम, पंजाबी तथा
उर्दू सहित कई अन्य भाषाओं में अनुदित हुई हैं। लंदन
के अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान समारोह में
इस संग्रह की कहानी 'बिल्लियाँ बतियाती हैं' का मंचन
भी हो चुका है। हिंदी के प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर
सिंह ने सब से पहले इस कथा संग्रह पर ध्यान देते हुए
इस की चर्चा दूरदर्शन के साहित्यिक कार्यक्रम में की
थी।
श्री हरनोट को इस से
पूर्व भी कई सम्मान मिल चुके हैं जिन में भारतेंदु
हरिश्चंद्र पुरस्कार, विशिष्ट साहित्य सम्मान, हिमाचल
केसरी और हिमाचल गौरव पुरस्कार शामिल हैं। आप के अब तक
चार कहानी संग्रह-पंजा, आकाशबेल, पीठ पर पहाड़, दारोश
तथा अन्य कहानियाँ, श्रीमती सरोज वशिष्ठ द्वारा
अंग्रेज़ी में अनुदित हरनोट की 14 कहानियों का संग्रह
माफ़िया, 'हिडिंब' उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं।
हिमाचल प्रदेश पर्यटन और लोक साहित्य पर भी आप ने बहुत
काम किया है और इससे संबंधित चार पुस्तकें भी प्रकाशित
हो चुकी हैं। जिसमें से दो पुस्तकें - 'यात्रा' और
'हिमाचल के मंदिर' तथा उन से जुड़ी लोक कथाएँ भी
बहुचर्चित पुस्तकों में शुमार है। उन का नया उपन्यास
'हिडिंब' भी इन दिनों खूब चर्चित हो रहा है जिस की
विभिन्न पत्रिकाओं में समीक्षाओं के अतिरिक्त
राष्ट्रीय स्तर की गोष्ठियों में भी चर्चा हुई है। गत
वर्ष प्रकाशित उनकी कुछ कहानियाँ भी ख़ासी चर्चित हुई
है जिन में कथादेश में प्रकाशित जीनकाठी और सड़ान, पल
प्रति पल में 'सवर्ण देवता दलित देवता' और 'मोबाइल',
हंस में 'माँ पढ़ती है', कथन में 'एम डाट काम' , पहल
में 'देवताओं के बहाने' और अकार में प्रकाशित 'रोबो'
शामिल है।
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10 जनवरी को वाइतवेत
युवा केंद्र, ओस्लो में भारतीय-नार्वेजीय सूचना और
सांस्कृतिक फ़ोरम की ओर से दूसरा विश्व हिंदी दिवस
धूमधाम से मनाया गया। इस ऐतिहासिक हिंदी दिवस के मुख्य
अतिथि थे नार्वे और आइसलैंड में भारतीय राजदूत महेश
सचदेव, विशेष अतिथि थे ओस्लो विश्वविद्यालय के
प्रोफ़ेसर क्नुत शेलस्तादली और अध्यक्षता कर रहे थे
ओस्लो पार्लियामेंट के सदस्य और नार्वे से प्रकाशित स्पाइल-दर्पण
पत्रिका के संपादक सुरेश चंद्र शुक्ल ''शरद आलोक''।
हिंदी को विदेशों में
मान्यता दिलाने के लिए हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
ने पिछले वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के रूप
में मनाने की घोषणा की थी। कार्यक्रम में महेश सचदेव
जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का संदेश पढ़ा और
बताया कि ओस्लो विश्वविद्यालय में आज से
हिंदी की कक्षाएँ शुरू की गई हैं जिस में जर्मन मूल
के प्रोफ़ेसर क्लाउस पेतेर जोलर हिंदी पढ़ा रहे हैं।
जोलर कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सके पर उन्होंने
अपनी शुभकामनाएँ भेजीं।
सचदेव जी ने नार्वे
में सुरेशचंद्र शुक्ल ''शरद आलोक'' को हिंदी पुस्तकें
भेंट की और कहा कि भारतीय प्रवासियों को शुक्लजी की
तरह अपनी संस्कृति और राष्ट्रभाषा की सेवा करनी चाहिए।
उन्होंने हर उपस्थित व्यक्ति को गुलाब का फूल और
हिंदी में नार्वेजीय लोककथाओं की पुस्तिका भेंट की।
प्रोफ़ेसर क्नुत
शेलस्तादली ने विश्व हिंदी दिवस पर बधाई दी और शुक्ल
को ध्वज भेंट किया और कहा कि सौ करोड़ आबादी वाले देश
भारत का विश्व के इतिहास और संस्कृति में बहुत
महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने अपनी मुंबई यात्रा के
संस्मरण सुनाते हुए कहा कि भारत में सड़कों, बाज़ारों
और अन्य स्थानों पर मेला रहता है। चहल-पहल भरे एक
बाज़ार में विवाह के आमंत्रण पत्रों की 20 दुकानें एक
कतार में देखकर लगा कि भारतीय सपने देखते हैं और
खुशहाल रहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि जब वह ओस्लो
एयरपोर्ट से टैक्सी से घर वापस आ रहे थे तो सड़कों के
दोनों ओर सन्नाटा था।
अपने अध्यक्षीय भाषण
में सुरेशचंद्र शुक्ल ''शरद आलोक'' ने कहा कि हिंदी
हमारी अस्मिता की पहचान है। सौ करोड़ भारतवासियों की
राष्ट्रभाषा और विदेशों में भारतीय प्रवासियों की
संपर्क भाषा है। हिंदी को संयुक्त राष्ट्रसंघ में
स्थान दिलाने के लिए आवश्यक है कि विश्व हिंदी दिवस
जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ और हम विदेशों में
राजनीति में भी सक्रिय हिस्सा लें। फोरम की मंत्री
अलका भरत ने आगंतुकों का स्वागत किया। विश्व हिंदी
दिवस पर जिन लोगों ने अपने विचार प्रगट किए, कविताएँ
पढ़ीं उन में प्रमुख थे अनुराग सैम, इंदरजीत पाल, इंदर
खोसला, इंगेर मारिये लिल्लेएंगेन, राज नरूला, वासुदेव
भरत, कंवलजीत सिंह, माया भारती, सुरेशचंद्र शुक्ल
''शरद आलोक'' और इला अनुपम।
24 जनवरी 2007 |