भोलाराम बहुत जल्दी में था।
वह हाथ में डंडा और झंडा लिए भागा जा रहा था।
''कहाँ जा रहे हो भोलाराम?'' मैं ने पूछा।
''स्टेशन।''
''गाड़ी पकड़नी है?''
''नहीं रेलगाड़ी में आग लगाने जा रहा हूँ।''
''क्यों?'' मैं ने पूछा, ''बेचारी रेलगाड़ी ने तुम्हारा
क्या बिगाड़ा है? वैसे भी वह देश की संपत्ति है।''
''तो देश ने बिहार में हमारे दल की सरकार क्यों नहीं
बनाई?'' वह बिगड़ कर बोला, ''हमारी सरकार नहीं बनेगी तो हम
देश में आग लगा देंगे।''
''यह तो कोई जनतंत्र न हुआ।'' मैं ने कहा, ''जो विधायक
चुनाव में जीत कर आए हैं, वे सब विधानसभा में होंगे। वे
वहाँ यह निर्णय कर सकते हैं कि बहुमत किस का है, उसी दल की
सरकार बनें।''
''हम तो विधायक उन्हीं को मानते हैं, हमारे दल के हैं।''
वह बोला, ''हमारे दल के बाहर के लोग बेइमानी से आए हैं।''
''क्यों?'' मैं ने पूछा, ''ऐसा कहने का कारण?''
''हम ने सारे बूथों के चुनाव अधिकारियों को समझा दिया था
कि भोट कैसे छापना है। जहाँ नहीं समझा पाए, वहाँ अपने
लोगों को समझा दिया था कि बूथ लूटना कैसे है।'' वह बोला,
''ऐसे में किसी और दल का कोई आदमी जीत ही कैसे सकता है?''
मैं उस की ओर देखता ही रह
गया, बोला कुछ भी नहीं। शायद वह समझ नहीं रहा था कि वह
क्या कह रहा है।
''इसलिए हमारे दल के बाहर का जो आदमी जीत कर आया है, वह
बेइमानी से आया है।'' भोलाराम बोला, ''वह विधायक हैये
नहीं। उस न विधान सभा में बैठने को अधिकार है और न सरकार
बनाने का। सरकार तो हमरे ही दल की बनेगी।''
''यह तो कोई जनतंत्र न हुआ।'' मेरे मुँह से निकला।
''हम जनतंत्र को वहीं तक मानते हैं, जहाँ तक वह हमारे पक्ष
में हैं।'' उस ने कहा, ''जहाँ वह हमारे विरुद्ध जाता है,
वहाँ से हम जनतंत्र विरोधी हो जाते हैं।''
''इस का अर्थ हुआ कि तुम देश के संविधान को नहीं मानते।''
''मानते हैं, किंतु वहीं तक, जहाँ तक वह हमारे पक्ष में
जाता है।'' उस ने कहा, ''हमारा दल चुनाव जीते तो संविधान
हमारे सिर माथे पर, किंतु यदि हमारा दल चुनाव नहीं जीतता
तो हम किसी और को सरकार बनाने नहीं देंगे।''
''इस का क्या अर्थ हुआ?''
''अर्थ तुम्हारी समझ में नहीं आता तो हम क्या करें।'' वह
बोला, ''यहाँ भोटर लोग हमारे पक्ष में हैं। सारे भोटर
हमारे हैं। तो फिर दूसरा कोई दल सरकार बना कैसे सकता है।''
''जिन लोगों ने तुम्हारे दल के विरुद्ध मतदान किया है, वे
मतदाता नहीं हैं?''
''होंगे मतदाता, पर वे भोटर नहीं है।'' वह बोला, ''उ सब
बाहर से लाए गए हैं। हमारे प्रदेश का भोटर तो वहीं है, जो
हमारे दल को भोट दें।''
''जो तुम्हारे पक्ष में मत नहीं देता, उसे बिहार से निकाल
दोगे?''
''निकाल क्यों देंगे।'' वह प्रखर स्वर में बोला, ''अरे उसे
हम गंगा जी में डुबो देंगे।''
''तुम्हें मालूम है कि चीन में किसी ने रेलगाड़ी में आग
लगाई थी, तो उसे मृत्युदंड दिया गया था?''
''दिया होगा।'' वह लापरवाही से बोला, ''अपने देश में उ सब
नहीं होता। इहाँ तो केवल हम ही दूसरों को मृत्युदंड देते
रहते हैं।''
''क्यों?''
''क्यों कि इहाँ एकतरफ़ा यातायात है। वन वे टिरैफिक।''
''उन यात्रियों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, जो रेलगाड़ी
में यात्रा कर रहे हैं।''
''बिगाड़ा? अभी कुछ बिगाड़ा ही नहीं है?'' वह चिल्लाया,
''इहाँ हमारे विरोधी दल की सरकार बन गई है और वह रेल में
यात्रा कर रहा है। उसे इहाँ आ कर हमारे साथ मिल कर देश को
आगी लगाना चाहिए या नहीं?''
''तुम को राज्य करने का विशेषाधिकार प्राप्त है क्या?''
''विशेषाधिकार? अरे हमारा तो जन्मै हुआ है राज करने के
लिए।'' उस ने रुककर मेरी ओर देखा, ''हम राज करेंगे तो
प्रदेश का ही नहीं, सारे देश का रक्त पिएंगे। और राज करने
नहीं दोगे तो. . .'' उस ने आग्नेय नेत्रों से मेरी ओर
देखा, ''तो सारे देश में आग लगा देंगे। हमारा तो जनतंत्र
यही है। और किसी जनतंत्र को न हम जानते हैं, न जानना चाहते
हैं। उ सब फासीवाद है।''
२४ जनवरी २००७ |