ग़रीब की मजबूरियों, मुल्क
की समस्याओं और लीडर के बहानों की तरह मेरे बेटे के सवालों
का भी कोई अंत नहीं है। उसका ताज़ा सवाल नव वर्ष के
ग्रीटिंग कार्ड में अंकित इन शब्दों को लेकर है कि नया
साल, नई संभावनाएँ लेकर आए। बेटा पूछ रहा है कि ऐसी कौन सी
संभावनाएँ हैं जो बीते साल अपना जलवा दिखाने से रह गई थी
और इस साल धूम मचाएँगी? लगे हाथ वह यह भी पूछ रहा है कि
'पापा, नई संभावनाएँ लेकर कौन आएगा? किस कंपनी को सरकार ने
नई संभावनाएँ लेकर आने का परमिट दिया है और उक्त कंपनी किस
लीडर के रिश्तेदार की है? वह जो संभावनाएँ लेकर आएगी, उनकी
क्वालिटी किस तरह की होगी? संभावनाएँ स्वदेशी होंगी या
विदेशी...?' बेटे को सवाल की खाल उतारते देख मुझे गुस्सा आ
जाता है। मैं उसे सवालों के बाकी तीर अपने तरकश में रखने
की हिदायत देता हूँ और खुद संभावनाओं की पिटारी खोलकर बैठ
जाता हूँ।
'बेटा,
जिस चीज़ के साथ भावनाएँ जुड़ी हों और इन भावनाओं की ख़ातिर
आदमी कुछ भी करने को तैयार हो जाए तो उसे 'संभावना' कहते
हैं। संभावनाएँ कई किस्म की होती हैं और इनकी दुनिया अनंत
है। संभावनाएँ कभी ख़त्म नहीं होती। चंबल के बीहड़ों में
अगर डकैती, फिरौती का धंधा मंदा हो रहा हो तो फिर किसी
सत्ताधारी लीडर के सामने आत्मसमर्पण करके राजनीति में घुस
जाओ। डकैतियों में जितना नाम कमाया होगा, राजनीति में
चमकने की उतनी ही संभावनाएँ हैं। इसी तरह फ़िल्मों और
सीरियलों में करतब दिखाने के बाद राजनीति में करतब दिखाने
की संभावनाएँ चोखी होती हैं। वहाँ भी अभिनय करना पड़ता है
और यहाँ भी अभिनय करना पड़ता है। जो आदमी अभिनय में माहिर
है, उसके लिए संभावनाएँ ही संभावनाएँ हैं। इसी तरह किसी को
सफ़ेद झूठ बोलने, लारे-लप्पे लगाने, सब्ज़बाग़ दिखाने,
दूसरों को धमकाकर अपना उल्लू सीधा करने और बात कहकर मुकर
जाने में महारत हासिल है, तो उसमें भी राजनीतिज्ञ बनने की
अपार संभावनाएँ छिपी होती हैं।
एक लीडर से किसी पत्रकार
ने पूछा कि आप अपना मंत्रालय क्यों बदलना चाहते हैं? क्या
ब्यूरोक्रेसी घास नहीं डाल रही या फिर कोई समस्या है? इस
पर उक्त लीडर मुस्कराते हुए बोले - 'नहीं', ऑफ़ दी रिकार्ड
कहूँ तो ब्यूरोक्रेसी तो मेरे साथ ही मिली है। सच्ची बात
यह है कि इस मंत्रालय में जितनी संभावनाएँ थीं, उन सभी
संभावनाओं का मैं दोहन कर चुका हूँ। अब यह मंत्रालय
रस विहीन आम की गुठली बन कर रह गया है। इसलिए नई संभावनाओं
की तलाश के लिए नया मंत्रालय चाहता हूँ और नए मंत्रालय की
कामना करने के लिए मैं दिन-रात हाई कमान को मक्खन लगाता
रहता हूँ...।'
संभावनाएँ आदमी को कुछ
नया करने की प्रेरणा देती हैं और इन्हीं प्रेरणाओं से
वशीभूत होकर लीडर लोग द्विपक्षीय संबंध मज़बूत करने का
एजेंडा लेकर विदेशों में जाते हैं और तेल सौदों से लेकर
दूसरे कई किस्म के सौदों में अपना टाँका फिट कर आते हैं।
इससे द्विपक्षीय संबंध भी मज़बूत हो जाते हैं और संभावनाओं
का दोहन भी हो जाता है। स्विस बैंकों में खाता खुलवाना भी
नई संभावनाओं को सलाम बजाने की तरह होता है। नई संभावनाओं
का मतलब यह भी होता है कि स्टिंग आप्रेशनों और विरोधियों
की आँख से बचते हुए रिश्वत के नए तौर-तरीके ईजाद किए जाएँ।
जनता को पटाने के लिए नए मुद्दे हवा में उछाले जाएँ और
विरोधियों का पायजामा गीला करने के लिए नए षडयंत्र बुने
जाएँ। नई संभावनाओं का स्कोप कहाँ नहीं है? पारिवारिक और
सामाजिक ज़िंदगी में भी संभावनाओं की तितलियाँ पंख फड़फड़ाती
रहती हैं। कई शादीशुदा मर्द अपनी बीवी से प्यार का नाटक
करते हुए इधर-उधर भी मुँह मारने की संभावनाएँ तलाशते रहते
हैं। फ़िल्मी दुनिया में भी निर्माता-निर्देशक संभावनाओं
की तलाश में रहते हैं और रातों-रात हीरोइन बन जाने का
ख्वाब देखने वाली भोली-भाली लड़कियाँ इन संभावनाओं की बलि
चढ़ जाती हैं।
अपनी गली में कुछ साल पहले एक व्यक्ति सब्ज़ी की रेहड़ी
लगाता था। फिर उसने गली में आना बंद कर दिया। अचानक एक दिन
वह कीमती कार में दिखा। बातों-बातों में उसने बताया कि
सब्ज़ी की रेहड़ी लगाकर इतने बड़े परिवार का गुज़र-बसर नहीं
होता था। इसलिए उसने अवैध दारू की भट्ठी लगा ली है। 'क्या
पुलिस तंग नहीं करती ?' मैंने उससे जानना चाहा। वह
मुस्कराते हुए बोला - ' नहीं साहब, पुलिस भी इस धंधे में
साथ है। एक पॉलिटीशीयन को भी पटा रखा है और अब बड़े पैमाने
पर दारू की भट्ठियाँ लगाने की संभावनाएँ तलाश रहा हूँ।
इसी तहत संभावनाएँ बनती रहीं तो अगले इलैक्शन में किस्मत
आजमाने की भी योजना है। अपनी जाति के काफ़ी वोट हैं इधर
...।' बोलते-बोलते उसकी आँखों में चमक आ जाती है।
मेरे श्रीमुख से
संभावनाओं का इतना लंबा-चौड़ा व्याख्यान सुनकर बेटा प्यार
से कहता है - ' पापा, आप कब तक घर में गिने-चुने नोट ही
लाते रहोगे? अब कोई नई संभावनाएँ भी तलाशिए न!'
१६ जनवरी
२००७ |