|  | पूर्णिमा को अजीब-सा लगा। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में बेचैनी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। उसकी 
                    उम्र ज़्यादा न थी। चौबीसवाँ पूरा कर पच्चीसवें में दाखिल हुई 
                    थी। वह माँ भी जल्दी बन गई थी। उसका चार बरस का बेटा था जिसे 
                    वह मिंटू कहकर पुकारती थी।
 उसका चिंतित होना स्वाभाविक था। उसने अपनी सहेली सरिता को खाने 
                    पर बुलाया है जो अपने पति के साथ  डिनर पर आई है। 
                    पूर्णिमा का पति नदारद है। न जाने कहाँ गया है। भोजन का समय हो 
                    गया है, पर अभी तक वह नहीं आया है और यही चिंता का कारण है।
 
                    ''पापा क्यों नहीं आए,'' मिंटू ने 
                    अपनी माँ से पूछा।''काम से ही वापस नहीं आए। शायद ओवरटाइम कर रहे होंगे।'' वह 
                    अपने बेटे के मुख की तरफ़ देखने लगी।
 सरिता ने अपनी पति की ओर देखा जैसे वे आपस में मौन-मंत्रणा कर 
                    रहे हों। मौन तोड़ते हुए सरिता ने सलाह दी,
 ''विनोद के मोबाइल में फ़ोन करके देख लो।''
 ''फ़ोन किया था तो व्यस्त होने का संकेत मिला।''
 ''काम पर देख लेती,'' सरिता ने पूर्णिमा की ओर देखते हुए कहा।
 ''काम पर फ़ोन किया तो पता चला कि वह काम से जा चुके हैं।''
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