रविवार, दिनांक-10/12/ 2006 को 'बिहार राज्य
माध्यमिक शिक्षक संघ' के सभागार में अखिल भारतीय
प्रगतिशील लघुकथा मंच के तत्वावधान में 19 वें
अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन का उद्घाटन किया गया। सम्मेलन के
अध्यक्ष कथाकार कृष्णानंद
कृष्ण ने कहा कि वर्तमान समय में लघुकथा अब किसी की
मोहताज नहीं रह गई है। किंतु इसको शिल्प, प्रस्तुतीकरण और
अंतर्वस्तु के स्तर पर वैश्विक बनाने के लिए रचनाकारों
को अपनी दृष्टि का विस्तार करना होगा।
(
चित्र में 20 वें अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन का
उद्घाटन करते हुए डॉ0 सतीशराज पुष्करणा,
कथाकार शशांक, अध्यक्ष कृष्णानन्द कृष्ण एवं नचिकेता )
सत्र के प्रारंभ में
बरेली से आए सुप्रतिष्ठ लघुकथाकार सुकेश साहनी ने
वीणा-वादिनी के चित्र पर माल्यार्पण किया और श्री
राजकुमार प्रेमी ने वाणी-वंदना प्रस्तुत की। उस के बाद
मंच के संयोजक प्रख्यात कहानीकार डॉ. सतीशराज पुष्करणा
ने देश के विभिन्न भागों से आए सुजनकर्मियों का स्वागत
करते हुए कहा कि कोई भी लघुआकारीय कथात्मक रचना लघुकथा
नहीं होती। संपादकों एवं लेखकों को लघुकथा की सही
पहचान करनी चाहिए। लघुकथा की भाषा सांकेतिक तो होनी ही
चाहिए, साथ ही उस में लयात्मकता भी होनी चाहिए ताकि
पाठक को रस की सहज अनुभूति हो सके। ऐसा तभी संभव है जब
भाषा कथानक के अनुकूल हो। हिंदी और
संस्कृत की विदुषी डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र ने मंच का संचालन
करते हुए लघुकथा और 'मंच' के विकास हेतु युवा
रचनाकारों को पूरी निष्ठा के साथ आगे आने को कहा।
इस अवसर पर लघुकथा के
सर्वांगीण विकास में योगदान करने हेतु डॉ. इंदिरा
खुराना (पानीपत) तथा चुरू, राजस्थान से पधारे डॉ.
रामकुमार घोटड़ को 'डॉ. परमेश्वर गोयल लघुकथा शिखर
सम्मान एवं डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल (इंदौर) को
''मंच-सम्मान'' से सम्मानित किया गया। साथ ही साहित्य
की सेवा करने हेतु नरेंद्र कुमार सिंह, बेगूसराय को
''पत्रकार शिरोमणि'', महेंद्र नारायण पंकज अररिया को ''कथाभूषण''
तथा हारूण रशीद अश्क, पटना को ''विशिष्ट हिंदी सेवी'' उपाधियों से क्रमश: अखिल भारतीय हिंदी प्रसार
प्रतिष्ठान एवं पीयूष साहित्य परिषद द्वारा सम्मानित
किया गया। इसके पश्चात कई महत्वपूर्ण पुस्तकों एवं
पत्रिकाओं के विशेषांकों का लोकार्पण कार्य संपन्न
किया गया जिन में प्रमुख थे 'गांधारी की पीड़ा' (डॉ.
इंदिरा खुराना, पानीपत), 'नदी सोच में है' (डॉ. शैल रस्तोगी, मेरठ), 'नारी जीवन की लघुकथाएँ'
(ईव
केदारनाथ, सीतामढ़ी ), ''हमारा देश'' (डॉ. परमेश्वर
गोयल, पूर्णिया) तथा ''घुटन'', ''महावीर प्रसाद: जीवन
एवं अवदान'' तथा ''लोग-बाग उदास'' (डॉ. स्वर्ण किरण)।
इस के साथ ही ख्यातिलब्ध जनगीतकार नचिकेता की
षष्टिपूर्ति के अवसर पर पुन:-अंक 17 (संपादक-
कृष्णानंद कृष्ण) एवं ''अलका मागधी'' संपादक अभिमन्यु
मौर्य का लोकार्पण किया गया।
उत्तर प्रदेश के
बरेली नगर से पधारे ख्यातिलब्ध कथाकार सुकेश साहनी ने
लघुकथा में नवीन कथानकों एवं उस की प्रस्तुति पर मेहनत
करने की आवश्यकता पर बल देने की सलाह देते हुए मंच की
ओर से लघुकथा पर केंद्रित पत्रिका के प्रकाशन पर बल
दिया तथा अपने सहयोग हेतु आश्वस्त किया। महासचिव
नरेंद्र प्रसाद 'नवीन' ने अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत
किया। शिक्षाविद सच्चिदानंद सिंह 'साथी' ने मुख्य
अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि लघुकथा में अपने
समय की समस्याओं की तस्वीर पेश करनी चाहिए।
अपने अध्यक्षीय
उद्बोधन में कृष्णानंद कृष्ण ने लघुकथा की वर्तमान
स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए लघुकथाकारों से
आह्वान किया कि वे पुरानी घिसी-पिटी परिपाटी को छोड़कर
राष्ट्रीय स्तर पर कथा साहित्य में आए बदलावों के
अनुरूप लघुकथा लेखन में भी बदलाव लाएँ तभी इस का विकास
संभव होगा। साथ ही 'लघुकथा मंच पत्रिका' की उपयोगिता
की चर्चा करते हुए उस के प्रकाशन पर बल दिया।
दूसरे सत्र में
''लघुकथा-लेखन की समस्याओं'' पर केंद्रित था। विचार
विमर्श में रामेश्वर कांबोज हिमांशु, डॉ. जितेंद्र
सहाय, डॉ. लक्ष्मी विमल, इंदिरा खुराना, नागेंद्र
प्रसाद सिंह, सुकेश साहनी, नचिकेता, राजेंद्रमोहन
त्रिवेदी 'बंधु', पुष्पा जमुआर, वीरेंद्र कुमार
भारद्वाज, डॉ. नीलू कुमारी, डॉ. राज कुमारी शर्मा
'राज' ने भाग लिया तथा सत्र का सफल संचालन डॉ. सतीशराज
पुष्करणा ने किया। सर्वसम्मति से जो समस्याएँ उभर कर
सामने आईं वे निम्न हैं-
- लघुकथा पर केंद्रित पत्रिका का अभाव,
- लघुकथा
क्या है की जानकारी का अभाव,
- काल-दोष एवं अंतराल
दोष की समझ का अभाव,
- संपादकों को यह समझना होगा कि
कोई भी लघुआकारीय रचना लघुकथा नहीं होती,
- लघुकथा के इतिहास
और उस के तकनीकी पक्ष की जानकारी का अभाव,
- कथा-साहित्य की
अन्य विधाओं से लघुकथा के अलगाव बिंदु की जानकारी का
अभाव,
- कथानक का चुनाव,
सही शिल्प और सटीक भाषा का अभाव।
तीसरे सत्र की शुरुआत
लघुकथाओं के पाठ से प्रारंभ हुआ जिस का संचालन
कृष्णानंद कृष्ण ने सफलतापूर्वक संपन्न किया। इस सत्र
में लगभग पैंतालीस लघुकथाकारों ने अपनी लघुकथाओं का
पाठ किया जिन में प्रमुख थे- सर्वश्री युगल, डॉ.
सतीशराज पुष्करणा, सुकेश साहनी, रामेश्वर कांबोज
हिमांशु, (बरेली) राजेंद्रमोहन त्रिवेदी 'बंधु', (राय
बरेली) डॉ. राज कुमारी शर्मा 'राज', (गाजियाबाद) डॉ.
इंदिरा खुराना, (पानीपत) डॉ. रामकुमार घोटड़,(राजस्थान)
डॉ. योगेंद्रनाथ शुक्ल ,(इंदौर) पुष्पा जमुआर,
वीरेंद्र कुमार भारद्वाज, डॉ.लक्ष्मी विमल, (झारखंड)
डॉ. मधु वर्मा, प्रभुनारायण विद्याथी (झारखंड)
रामप्रसाद 'अटल', (भोपाल) राजेन्द्र वमौ, (लखनऊ,)
नरेन्द्र कुमार सिंह, स्वाति गोदर, आलोक भारती, ई.
केदारनाथ, ए. के. आँसू, चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह,
सतीश प्रसाद सिन्हा, डॉ. स्वर्ण किरण, सतीशचंद्र भगत,
नरेंद्र प्रसाद नवीन,, भरत कुमार शर्मा, विशुद्धानंद,
भुवनेश्वर प्रसाद 'गुरमैता' विश्वमोहन कुमार शुक्ल,
नृपेंद्रनाथ गुप्त, योगेंद्र प्रसाद मिश्र,
देवेंद्रनाथ साह, नरेश पांडेय 'चकोर', देवेंद्रनाथ
साह, डॉ. सी.रा. प्रसाद आदि। पठित लघुकथाओं पर
नागेंद्र प्रसाद सिंह और गीतकार नचिकेता ने अपनी प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हुए सुकेश
साहनी, डॉ इंदिरा खुराना, डॉ. सतीशराज पुष्करणा,
रामेश्वर कांबोज हिमांशु, डॉ. लक्ष्मी विमल, रामप्रसाद
'अटल' की लघुकथाओं की काफ़ी सराहना की तथा लघुकथा के
शिल्प उस की प्रस्तुति और कथानक के चुनाव पर सावधानी
बरतने की सलाह लघुकथाकारों को दी।
सम्मेलन के अंतिम
सत्र में काव्य पाठ का आयोजन किया गया जिस का संचालन
किया राजकुमार प्रेमी ने। लघुकथा लेखकों के अलावा
कविता पाठ करने वालों में कैलाश झा 'किंकर' डॉ.
तेजनारायण कुशवाहा, मुना प्रसाद, नरेश कुमार हरिद्वार
प्रसाद किसलय, आशा प्रभात, डॉ. नीलू कुमारी,
चंद्र किशोर पाराशर, सिद्धेश्वर प्रसाद कश्यप,
सुरेंद्र भारती, विमल किशोर सहाय, हारून रशीद अश्क,
प्रमुख थे। डॉ. राजकुमारी शर्मा 'राज' की ग़ज़लों पर
श्रोता झूम उठे। इस अवसर पर सर्वश्री पुष्करणा
ट्रेडर्स की स्वामिनी श्रीमती नीलम पुष्करणा और अयन
प्रकाशन के मालिक श्रीभूपाल सूद द्वारा पुस्तक
प्रदर्शनी तथा फतुहा के कलाकार अमरेंद्र द्वारा लघुकथा
पोस्टर प्रदर्शनी लगाई जिस की सराहना मुक्त कंठ से की
गई। पुस्तकों की अच्छी बिक्री हुई।
यह सम्मेलन लघुकथा
लेखक कमल गुप्त (वाराणसी), सुगनचंद मुक्तेश, सुरेंद्र
वर्मा (सिरसा), पटना के अनुरंजन प्रसाद सिंह तथा
परमानंद दोषी की पुण्यस्मृति को सादर समर्पित था।
साहित्य सचिव वीरेंद्र कुमार भारद्वाज के धन्यवाद
ज्ञापन के साथ सम्मेलन संपन्न हुआ।
वीरेन्द्र कुमार
भारद्वाज
साहित्य सचिव
अ0 भा0 प्र0लघुकथा मंच पटना। |