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ग़लत निष्कर्ष पर पूरे विश्वास के साथ पहुँचने की
व्यवस्थित विधि का नाम ही 'तर्क' है।
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जब किसी सिस्टम को पूरी तरह से पारिभाषित कर लिया जाता है
तभी कोई मूर्ख आलोचक उस में कुछ ऐसा खोज निकालता है जिस के
कारण वह सिस्टम या तो पूरा बेकार हो जाता है या इतना
विस्तृत हो जाता है कि उस की पहचान ही बदल जाती है।
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तकनॉलाज़ी पर उन प्रबंधकों का अधिकार है जो इसे समझते
नहीं।
यदि बिल्डिंग बनाने वाले, प्रोग्राम लिखने वाले
प्रोग्रामरों की तरह कार्य करते होते तो विश्व के पहले
बिल्डर का पहला ही काम संपूर्ण समाज को नेस्तनाबूद कर चुका
होता।
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किसी संस्थान के फ्रंट ऑफ़िस की सजावट उस की संपन्नता के
व्युत्क्रमानुपाती होती है।
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किसी कंप्यूटर के कार्य का विस्तार उस के बिजली के तार के
विस्तार जितना ही होता है।
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विशेषज्ञ वो होता है जो क्षुद्र से क्षुद्र चीज़ों के बारे
में अधिक से अधिक जानकारी रखता है। सही विशेषज्ञ वह होता
है जो 'कुछ नहीं' के बारे में सबकुछ जानता है।
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किसी आदमी को बताओ कि
ब्रह्मांड में ३०० खरब तारे हैं तो वो आप की बात पर
विश्वास कर लेगा। उसे बताओ कि किसी कुर्सी पर अभी-अभी पेंट
लगाया गया है और वह गीला है तो वह इसकी तसदीक के लिए छूकर
अवश्य देखेगा।
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विश्व की महानतम खोजों के पीछे मानवीय भूलों का ही हाथ रहा
है।
कोई भी चीज़ नियत कार्यक्रम या निश्चित बजट में नहीं बन
सकती।
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मीटिंग में मिनट्स को रखा जाता है और घंटों को गँवाया जाता
है।
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प्रबंधन का पहला मिथक है – कि उस का का अस्तित्व है।
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कोई यूनिट तब तक असफल नहीं होती जब तक कि उस का अंतिम
निरीक्षण नहीं कर लिया जाता।
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नए सिस्टम नई समस्याएँ पैदा करते हैं।
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ग़लतियाँ करना मनुष्य का
स्वभाव है, परंतु ढेरों, सुधारी नहीं जा सकने वाली
ग़लतियों के लिए कंप्यूटर की आवश्यकता होती है।
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कोई भी
उन्नत तकनीक जादू सदृश्य ही होती है जब तक कि वह समझ न ली
जाए।
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एक कंप्यूटर मात्र दो सेकंड में उतनी सारी ग़लतियाँ कर
सकता है जितना २० आदमी मिलकर २० वर्षों में करते हैं।
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किसी व्यक्ति को कोई भी बात इस से ज़्यादा प्रोत्साहित
नहीं कर सकती – कि उस के बॉस ने किसी दिन घंटा भर ईमानदारी
से काम किया।
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कुछ व्यक्ति नियमबद्ध
होते हैं – भले ही उन्हें यह नहीं पता होता कि नियम क्या
हैं व किस ने लिखे हैं।
फेब्रिकेटर के लिए मुश्किलें बढ़ाना तथा सर्विस इंजीनियर
के काम को असंभव बनाना ही डिज़ाइन इंजीनियर का पहला काम
होता है।
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भीड़ में से विशेषज्ञ का पता लगाना मुश्किल नहीं। वह किसी
कार्य को पूरा होने में सर्वाधिक समय व पैसा लगने की
भविष्यवाणी करता दिखाई देता है।
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कहने भर से कोई काम तो हो जाता है, मगर फिर उस के बाद और
बहुत-सा कहा जाता है जो होता नहीं।
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किसी भी नवीनतम सर्किट डिजाइन में एक भाग वो होता है जो
कालातीत हो चुका होता है, दो भाग बाज़ार में उपलब्ध नहीं
होता तथा तीन भाग विकास के चरणों में होते हैं।
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कोई जटिल सिस्टम अंततः जब
काम करने लगता है तो पता चलता है कि इसे तो एक कार्यशील
सरल सिस्टम से ही बनाया गया है।
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कंप्यूटर अविश्वसनीय हैं, परंतु मनुष्य और ज़्यादा
अविश्वसनीय हैं। जो सिस्टम मनुष्य की विश्वसनीयता पर
निर्भर है, वह अविश्वसनीय ही होगा।
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यदि आप कुछ समझ नहीं पाते हैं तो वह आप की अंतर्बुद्धि से
प्रकट हो जाता है।
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ख़रीदार संस्था का सचिव यदि आप से ज़रा ज़्यादा ही सहृदयता
से पेश आता है तो यह समझें कि ख़रीद आदेश आप के
प्रतिद्वंद्वी कंपनी ने पहले ही हड़प लिया है।
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किसी कंस्ट्रक्शन को डिज़ाइन करते समय, शनिवार
४.३० बजे के
बाद उस के आयामों का सही योग नहीं निकाला जा सकता। सही योग
सोमवार सुबह ९ बजे स्वतः सुस्पष्ट हो जाता है।
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जो खाली है उसे ही भरें। जो भरा है उसे ही खाली करें। और
जहाँ खुजली है, वहीं पर ही खुजाएँ।
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दुनिया में सब संभव है,
रिवॉल्विंग दरवाज़े से होकर स्कीइंग को छोड़कर।
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कठिन परिश्रम से नहीं, बल्कि चतुराई से काम करें तथा अपनी
वर्तनी के प्रति सावधान रहे।
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यदि यह गूगल में नहीं मिलता, तो फिर इस का अस्तित्व ही
नहीं है।
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यदि कोई प्रयोग सफल हो जाता है तो फिर कहीं कुछ ग़लत अवश्य
है।
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यदि सबकुछ असफल हो जाता है तो फिर निर्देश पढ़ें।
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जो भी ऊपर जाता है, वह
नीचे आता ही है – फिर भले ही वह सेंसेक्स क्यों न हो।
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हाथों से छूटा औज़ार हमेशा कोने में वहाँ जा पहुँचता है
जहाँ आसानी से नहीं पहुँचा जा सकता।
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किसी भी सरल सिद्धांत की व्याख्या अत्यंत कठिन तरीके से ही
संभव है।
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जब कोई सिस्टम इतना सरल बनाया जाता है कि कोई मूर्ख भी उस
का इस्तेमाल कर सके, तो फिर उस का इस्तेमाल सिर्फ़ मूर्ख
ही करते हैं।
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तकनीकी दक्षता का स्तर, प्रबंधन के स्तर के उलटे अनुपात
में होता है।
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एक अत्यंत मुश्किल कार्य
पूर्ण होने के ठीक पहले, एक अति महत्वहीन छोटे से विवरण की
अनुपलब्धता के कारण रुक जाता है।
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कोई भी काम भले ही पूरा हो जाता हो, परंतु उसे सही ढंग से
पूरा करने के लिए कभी भी समय नहीं होता।
जैसे-जैसे अंतिम समय सीमा क़रीब आती है, वैसे-वैसे बचे हुए
काम की मात्रा बढ़ती जाती है।
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यदि कोई उपकरण ख़राब हो जाता है और उस की वजह से काम अटकने
लगता है, तो वह उपकरण तब ठीक होता है जब,
उस की आवश्यकता नहीं होती है या कोई दूसरा आवश्यक कार्य किया जा रहा होता है।
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बिजली से चलने वाले किसी भी उपकरण को यह कभी भी न पता चलने
दें कि आप बहुत जल्दी में हैं।
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यदि कोई उपकरण ख़राब नहीं हुआ है तो उस में और सुधार न
करें। आप उसे ऐसा ख़राब कर देंगे जो फिर कभी सुधारा नहीं
जा सकेगा।
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पटरी को देखकर आप यह
अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि ट्रेन किस तरफ़ से आएगी।
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यदि आप पूरी तरह से भ्रमित (कनफ़्यूजन में) नहीं हुए हैं
तो इस का मतलब है कि आप को पूरी बात मालूम ही नहीं है।
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मानक पुरजे नहीं होते हैं।
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हाथों से छूटा औज़ार
किसी चलते उपकरण के ऊपर ही गिरता है।
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नवीनतम तकनॉलाज़ी पर कभी भरोसा न करें। भरोसा तभी करें जब
वह पुरानी हो जाए।
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बोल्ट जो अत्यंत अपहुँच स्थान पर होता है, वही सब से
ज़्यादा कसा हुआ मिलता है।
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तकनॉलाज़ी और विज्ञान में सब से ज़्यादा बोला जाने वाला
वाक्यांश है – “उफ़ – ओह!”
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तकनीशियन के मुँह से दूसरा सब से बेकार शब्द आप सुनते हैं
– “ओफ़!”। पहला सब से बेकार शब्द होता है “ओफ़! शि...ट”
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किसी भी दिए गए
सॉफ़्टवेयर को जब आप इस्तेमाल करने में दक्षता हासिल कर
लेते हैं तो पता चलता है कि उस का नया संस्करण जारी हो गया
है।
उप प्रमेय १ – नए संस्करण में जो सुविधा आप को चाहिए होती
है वह अभी भी नहीं होती।
उप प्रमेय २ – नए संस्करण में जिस सुविधा का इस्तेमाल आप
बारंबार करते रहे होते हैं उसे या तो निकाल दिया जाता है
या उस में ऐसा सुधार कर दिया जाता है जो आप के किसी काम का
नहीं होता।
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आज के इनफ़ॉर्मेशन ओवरलोड के ज़माने में सब से आवश्यक
तकनीकी दक्षता यह है कि हम जो सीखते हैं उस से ज़्यादा
भूलने लगें।
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जटिल चीज़ों को सरलता से बनाया जा सकता है, सरल चीज़ें
बनने में जटिल होती हैं।
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बंदर के हाथ में आई-पॉड कोई काम का नहीं होता।
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बहते हुए गंदे नाले में कचरे के ढेर का सब से बड़ा हिस्सा
ही सब से ऊपर आता है।
किसी समुद्री यात्रा में जहाज़ के बंदरगाह को छोड़ने के
बाद ही कोई महत्वपूर्ण पुरज़ा ख़राब होता है, जो भंडार में
नहीं होता है।
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रखरखाव विभाग उपभोक्ता की शिकायतों को तब तक नज़र-अंदाज़
करते रहते हैं जब तक कि उपभोक्ता कोई नया ख़रीद आदेश न दे
दे।
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निरीक्षण की प्रत्याशा के
महत्व के अनुसार ही किसी मशीन के ख़राब हो जाने की संभावना
होती है।
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यदि कोई नया सिस्टम सिद्धांत में काम करेगा तो अभ्यास में
नहीं और अभ्यास में काम करता है तो सिद्धांत में नहीं।
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आप की खोज चाहे जितनी भी पूर्ण व बुद्धिमानी भरी हो, कहीं
न कहीं कोई मौजूद होता है जो आप से ज़्यादा जानता है।
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आसानी से सुधारी जा सकने वाली चीज़ें कभी ख़राब ही नहीं
होतीं।
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काटा गया कोई भी तार आवश्यक लंबाई में छोटा ही निकलता है।
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जब आप अंतत: नई तकनॉलाजी
को अपना लेते हैं, तब पता चलता है कि हर कहीं उस का सपोर्ट
व इस्तेमाल बंद हो चुका है।
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किसी परियोजना का प्रस्तावित आकार, उस परियोजना के अंतिम
रुप में पूर्ण होने के आकार के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
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कोई विचार जितना ही बुद्धिमानी भरा होगा, उतने ही कम उसे स्वीकारने वाले मिलेंगे।
जितना ज़्यादा ज्ञान आप प्राप्त करते जाएँगे, आप उतना ही
कम सुनिश्चित होते जाएँगे।
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यदि आप सोचते हैं कि आप विज्ञान (या कंप्यूटर या औरत) को
समझते हैं, तो निश्चित रूप से आप विशेषज्ञ नहीं हैं।
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सिर्फ़ तकनीशियन ही ऐसे
हैं जो तकनॉलाजी पर किसी सूरत भरोसा नहीं करते।
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सभी असंभव असफलताएँ जाँच स्थल पर ही होती हैं।
उप प्रमेय – सभी असंभव असफलताएँ ग्राहक यहाँ होती हैं।
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इंस्टैंट
मैसेंजर पर जिसकी ज़रूरत आप
को सबसे ज़्यादा होती है, उस के ऑफ़ लाइन होने की संभावना
उतनी ही ज़्यादा होती है।
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किसी उपकरण (या तकनीशियन) का उपयोग और कार्यकुशलता उसे दिए
गए गालियों के सीधे अनुपात में होती है।
कोई बढ़िया, ख़राब न होने वाला पुर्जा असुरक्षित समझा जाकर
कीमती, बारंबार सर्विस की आवश्यकता वाले पुर्ज़े से हमेशा
बदल दिया जाता है।
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ख़राब हो चुका पाँच रुपए
कीमत का पुर्जा बदला नहीं जा सकता, परंतु उसे किसी
सब-एसेम्बली से बढ़िया, कार्य-कुशल तरीके से बदला जा सकता
है जिस की कीमत मूल उपकरण से ज़्यादा होती है।
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किसी ख़राब पुरज़े की कीमत व उपलब्धता संपूर्ण सिस्टम की
कीमत के व्युत्क्रमानुपाती होती है। पाँच रुपए का पुरज़ा
पाँच लाख की मशीन को अनुपयोगी बना देता है।
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पाँच लाख की मशीन का पाँच रुपए कीमत का ख़राब पुरज़ा
बाज़ार में या तो उपलब्ध नहीं होता, उस का निर्माण बरसों
पहले से बंद हो चुका होता है और अंतत: अपने कई गुने कीमत
से मेड टू आर्डर से बनवाया जाता है तो पता चलता है कि उस
मशीन की जगह नई मशीन ने ले ली है।
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सभी मेकेनिकल /
इलेक्ट्रिकल उपकरण अपनी गारंटी अवधि अच्छी तरह से जानते
हैं – वे इस अवधि के बाद ही फेल होते हैं।
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तकनीशियन ने पहले कभी भी आप के जैसा मशीन नहीं देखा हुआ
होता है।
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तकनीशियन आप की मशीन को उस के जाने के तुरंत बाद या फिर
बहुत हुआ तो, अगले दिन ख़राब होने के लिए ही ठीक करता है।