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पिछले
सप्ताह
पुराने
अंकों से
डॉ शांति देवबाला की हृदयस्पर्शी कहानी
गुलमोहर
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हास्य
व्यंग्य में
अनूप शुक्ला जानना चाहते हैं
है
किसी का नाम गुलमोहर
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प्रकृति
में
अर्बुदा ओहरी का तथ्यों से भरपूर आलेख
लाल
फूलों वाला गुलमोहर
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ललित
निबंध में
पूर्णिमा
वर्मन
के
साथ
साहित्य
की
गलियों
में
गुलमोहर दर गुलमोहर
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नाटक
में
मथुरा कलौनी की संवेदनशील
प्रस्तुति
संदेश
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कहानियों में
यू के से शैल अग्रवाल की कहानी
यादों
के गुलमोहर
डालडाल फूल
पतियों से सजा, गरमियों के इन दो तीन महीनों
में पूरा का पूरा यूरोप कुछ और ही निखर जाता है . .
.दुल्हनसा संवर जाता है। यों तो यहां भी वही धरती,
आकाश, हवा, पानी सब वही हैं, बस रंग ही कुछ और
ज्यादा शोख और चटक हो जाते हैं . . .आदमियों के ही नहीं
. . .धरती, आकाश, फूल पती सभी के। घास कुछ और
ज्यादा हरी दिखने लगती है और आसमान व समंदर कुछ और ही
गहरे और नीले। फिर वैनिस तो एक रूमानी शहर
है।आकाशचुंबी इमारतों की गोदी में इठलाइठलाकर बहती
नदी और मैंडेलिन व बैंजो की सुरीली धुनों पर हंसों
से गर्दन उठाए बहते गंडोले और इन सब में मंत्रमुग्ध
रेशमा।
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इस
सप्ताह
उपन्यास
अंश में
भारत से असग़र वजाहत के
उपन्यास
'कैसी आग लगाई' का अंश
राजधानी
में हार
दफ्तर के
चपरासियों से लेकर हर राह चलता आदमी बस दूसरे
का अपमान करना चाहता है। वह आपके कपड़े देखता है और
आपकी दो टके की इज्ज़त को पहचान लेता है, और
अपमान कर देता है। बात 'तू' से शुरू होती है और
मारपीट तक आ जाती है। कोई किसी के पचड़े में नहीं
पड़ना चाहता और ताकतवर हमेशा कमज़ोर पर झपटता है।
कमज़ोरों का नरक है यह शहर . . .लानत है इस पर . .
.यार यहां कौन लोग बसते हैं, समझ में नहीं
आता। किसी को किसी से, अपने अलावा, न लेना है
न देना है। न किसी को शहर से लगाव है न मोहल्ले
से प्यार है। मैं यहां क्यों हूं? और क्या कर रहा
हूं? लानत है इस सब पर।
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साक्षात्कार
में
मधुलता अरोरा की बातचीत
असग़र
वजाहत के साथ
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आज
सिरहाने
अभिनव शुक्ल का कविता संग्रह
अभिनव
अनुभूतियां
°
साहित्य
समाचार में
रवीन्द्रनाथ त्यागी स्मृति
व्याख्यान माला
मीडिया के
बदलते सरोकार
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हास्य
व्यंग्य में
गुरमीत सेठी का व्यंग्य
सपने
में साक्षात्कार
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गीत, कविताएं,
दोहे और
हास्य व्यंग्य
में
नये पुराने कवियों की
नयी रचनाएं
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° पिछले अंकों
से °
कहानियों में
शहादतसुषमा जगमोहन
भाई
साहबगिरीश पंकज
ठूंठऋषि कुमार शर्मा
मां
आकाश हैगिरिराज किशोर
बुधवार का
दिनगुरमीत बेदी
धूप के मुसाफ़िर
मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी
°
हास्य
व्यंग्य में
राम! पढ़ मत, मत पढ़डा प्रेम जनमेजय
आरक्षित
भारत रविशंकर
श्रीवास्तव
जब मैने आदमीअभिरंजन कुमार
तोहफ़ा
टमाटरों कामनोहर पुरी
°
मंच
मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में
प्रभो
उनको काले नाग से बचाए
°
चिठ्ठापत्री में
चिठ्ठापंडित की पैनी नज़र
मई महीने के चिठ्ठों पर
°
संस्मरण में
रामप्रकाश सक्सेना का आलेख
पुण्य का काम
°
प्रकृति
और पर्यावरण में
ऑस्ट्रलिया से सूरज जोशी की
प्रस्तुति
ऑस्ट्रेलिया
के कंगारू
°
पर्यटन में
चंदन सेन के साथ देखते हैं
बूंदों में
खिलता बूंदी का रूप
°
फुलवारी
में
ललित
कुमार से जानकारी की बातें
मिस्र,
द
.अफ्रीका, नाइजीरिया
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