मैं गुलमोहर के विषय में सोच रहा हूँ। दिमाग़
में गाना बज रहा है- गुलमोहर गर तुम्हारा नाम होता. . .
गाने की पहली लाइन सुनते ही मैं सोचने लगता हूँ कि किसका नाम गुलमोहर है- मेरी
जान–पहचान में। कोई चेहरा याद नहीं आता जिसका नाम गुलमोहर हो। मोहल्लों के नाम याद
हैं जिनके नाम गुलमोहर के नाम पर रखें गए हैं- गुलमोहर पार्क, दिल्ली।
गुलमोहर के बारे में जानकारी के लिए किताबें
टटोलते रहिए मजाल है आपको कुछ मिल जाए। हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने 'अशोक के फूल' को
अपने लेखन का विषय बनाया है, 'शिरीष के फूल' को भी, लेकिन गुलमोहर नदारद है। कहाँ
छिपे हो गुलमोहर? गुलमोहर गुमशुदा है। इसीलिए शायद गाना बना है - गुलमोहर गर
तुम्हारा नाम होता. . .तो कम से कम खोजना तो न पड़ता गुलमोहर को। तुम्हारे बारे में
लिख देता। काम हो जाता।
गुमशुदा गुलमोहर की तलाश इंटरनेट पर करता हूँ
तो पूर्णिमा वर्मन की कविता मिलती है–
खिड़की के नीचे से प्यार गुनगुनाता है
गुच्छा गुलमोहर का हाथ यों हिलाता है
अभी नहीं अभी नहीं
कल आएँगे
गाँव तुम्हारे
यहाँ भी गुलमोहर गच्चा दे गया। बोला कल आएँगे, वो भी गाँव। लगता है मुँह चुरा रहा
है गुलमोहर।
लगा कि किसी का क्या भरोसा करना! खुद देखा जाय
गुलमोहर को, कहाँ खिला है, कैसा लगता है, क्यों टरका रहा है, क्या गुल खिला रहा है,
मुलाक़ात क्यों टाल रहा है! निकल पड़े भरी दुपहरी में कैमरा लपेट के।
बाहर प्रचंड धूप खिली थी। लेकिन ज़्यादा दूर
नहीं जाना पड़ा, गुलमोहर का पेड़ सामने खड़ा था। उसे देखते ही माजरा समझ में आ गया।
जनाब क्यों टरका रहे थे मुलाकात को। गुलमोहर का पेड़ बगल के अमलतास से बतिया रहा था।
दोनों को इकट्ठे देखकर लगा कि दो कामचोर कर्मचारी काम के घंटों में लापरवाही से
बतिया रहे हैं। लाल गुलमोहर को पीले अमलतास से बतियाते देख मेरा मन लाल-पीला होने
को हुआ लेकिन जुगल-जोड़ी को देखकर हरा हो गया। जो लाल पीले मन को हरा कर दे उससे बड़ा
कलाकार कौन हो सकता है?
प्रचंड गर्मी में जब तमाम दूसरे फूल दुम दबा
के फूट लेते हैं तब गुलमोहर खिलता है, सर उठाकर गर्मी का बहादुरी से मुकाबला करता
है। गर्मी ने उसके अन्य वृक्ष साथियों को धराशायी कर दिया है तो गर्मी के प्रति
गुस्से से लाल–लाल हो कर भर उठता है। जो कवि समझते हैं कि वह खुशी और आनंद का
प्रतीक है वे यह बात याद रखें। आश्चर्य की बात है कि गुस्सैल गुलमोहर वाली यह बात
मुझे ही सबसे पहले क्यों समझ में आई? बड़े-बड़े कवियों–लेखकों को (जो अपने को विचारक
और दार्शनिक और न जाने क्या-क्या समझते हैं) क्यों नहीं समझ में नहीं आई? हालाँकि
मेरे कुछ जनवादी दोस्त कहते हैं कि गुलमोहर क्रांति का प्रतीक होता है। गर्मी के
विरुद्ध क्रांति — इसीलिए वह लाल फूलों का झंडा धारण किए रहता है। दूसरे जनवादी
साथी बताते हैं कि गुलमोहर बेहया होता है। जब दूसरे फूल मुरझा रहे होते हैं तब
खिलता है। शरम तक नहीं आती कि साथियों के जाने का दुख मनाए। बेहया सर उठाए
हिलता-डुलता रहता है।
कभी–कभी मुझे भी संदेह होने लगता है कहीं ऐसा
तो नहीं कि गुलमोहर शर्मीला होता है, इसलिए जब अमलतास से गुपचुप गुफ़्तगू करते पकड़ा
जाता है तो मारे शरम के लाल हो जाता है और अमलतास डर के कारण पीला पड़ जाता है। न न
मैं ऐसा नहीं कह रहा कि आज के युग में ऐसा होता है। मैं तो यह सोच रहा था कि शायद
पूर्व काल में ऐसा होता रहा होगा और बार-बार ऐसा होते-होते हज़ारों सालों में
गुलमोहर और अमलतास क्रमश: लाल और पीले रंगों में हमेशा के लिए रंग गए।
गुलमोहर समर्थक साथी बताते हैं कि यह दिखाता
है कि कैसे भीषण गर्मी का सामना करते हुए सर उठा के जिया जाता है। विरोधी दोस्त
बताते हैं गुलमोहर को देखकर लगता है कि कोई लाल-लाल गाल वाला नेता सूखे मुँह वाले
समर्थकों के बीच खड़ा भाषण दे रहा हो। तमाम गुलमोहर के पेड़ तमाम प्रेम कथाओं के गवाह
रहते हैं। लेकिन कोई गुलमोहर का पेड़ इतना छतनार नहीं होता कि अपनी छाँह में बैठे
जोड़े को आसमान की बेधती निगाहों से बचा सके। गुलमोहर की छाँव प्रेमियों को अपने
नीचे केवल खड़े होने की सुविधा देती है, लेटने का उपक्रम करते ही आसमान टोंक देता
है।
फ़ैशन के दौर में गारंटी की अपेक्षा नहीं करनी
चाहिए। गर्मी में खिला गुलमोहर खूबसूरत तो दिखता है लेकिन जैसे सुंदरता की सार्थकता
छुई-मुई होने में होती है वैसे ही गुलमोहर का पेड़ भी फुसफुसा होता है। इसके नीचे आप
खड़े होकर कल्पना की पींगे तो मार सकते हैं लेकिन इसकी डाल पर झूला डालकर नहीं झूल
सकते।
देख रहा हूँ कि मौसम तथा गुलमोहर की
जुगलबंदी–सी हो रही है। दोनों आग उगल रहे हैं। गुलमोहर नाम का कोई बंदा अभी तक नहीं
तक नहीं मिला है। हम वापस घर लौटते हैं। गाना अभी भी बज रहा है- गुलमोहर गर
तुम्हारा नाम होता. . . गीत कुछ-कुछ समझ में आने लगा है. . .अब इसका कारण भी समझ
में आ रहा है कि लोग अपना नाम गुलमोहर रखने में किसलिए कतराते हैं। भयानक गर्मी में
सर उठाकर खिले रहने का हौसला सबका नहीं होता। यह गुलमोहर ही है जो जलते हुए भी
खिलता रहता है। लाल गुलमोहर पीले अमलतास से बतियाता है। मनको हरा-हरा कर जाता है।
आज की दुनिया में लोगों के पास इतनी हिम्मत कहाँ? फिर भी एक बार आवाज़ देकर पूछ लेता
हूँ— है किसी का नाम गुलमोहर?
16 जून 2006 |