संदेश
पात्र : सोनल, पूजा, प्रदीप,
सोमनाथ, नेपथ्य से आवाजें
दृश्य एक
स्थान - सोनल का घर। समय - संध्या।
नेपथ्य से
बचपन की दोस्ती में कितनी मिठास
होती है! बचपन में मासूमियत के धागों से बंधी दोस्ती की डोर इतनी
मज़बूत होती है कि समय के झंझावातों को झेल जाती है। तब के
बिछु़डे जब भी मिलें, जहां भी मिलें फिर बचपन में लौट जाते हैं।
जीवन के टेढे़-मेढ़े रास्तों में जब कोई बिछुड़ा साथी मिल जाता है
तो कितना अच्छा लगता है।
सोनल और पूजा बचपन की सहेलियां थीं।
बचपन बीता, अल्हड़पन बीता और दोनों बिछुड़ गए। सोनल को क्या
मालूम था कि पूजा यादों में पड़े मकड़ी के जालों को हटा कर सशरीर
उपस्थित हो जाएगी।
-सोनल अपना मेकअप पूरा कर रही है और
गुनगुना रही है। फ़ोन की घंटी बजती है। दूसरी तरफ़ प्रदीप है। -
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