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                        लोग
                        कहते हैं अफीमची बड़े 'पैसिव' होते हैं। लेकिन
                        बाबा के साथ ऐसा नहीं है। जब कभी उसे टाइप का
                        ज़्यादा काम करना होता था तो आफ़िस के बाद करता
                        था। मैं भी अक्सर बैठा रह जाता था। बीच-बीच
                        में बातचीत भी होती रहती थी और बाबा को अक्सर
                        गुस्सा आ जाता था। और पता नहीं क्यों, वह हाथ
                        धोकर मेरे पीछे पड़ा हुआ था कि मैं वापस अपने
                        वतन चला जाऊं और आराम से रहूं। खेती करूं। आज
                        भी बात घूम-फिर कर वहीं आ गई।"तो कितना अनाज पैदा हो जाता है तुम्हारी
                        ज़मीनों में।" उसने पूछा।
 "देखो, हमारी तरफ़ की खेती उतनी अच्छी नहीं है
                        जैसी हरियाणा या पंजाब की है। और फिर बटाई पर
                        खेती कराते हैं। बटाई समझते हो?"
 "हां-हां . . .आगे बताओ।"
 "पिछले साल मैंने पच्चीस मन गेहूं बेचा
                        है। सात मन के करीब धान भी हो जाता है। लाही
                        सरसों भी डेढ़-दो मन हो जाती है। आम का बाग़
                        दो हज़ार साल में उठता है। खाने को आम अलग से
                        मिलते हैं।"
 वह सीधा होकर बैठ गया।
 "तुम सच कह रहे हो?"
 "यार, मैं झूठ क्यों बोलूंगा।"
 "तुम पागल हो . . .पागल।"
 "क्यों?"
 "यहां क्यों पड़े हो?"
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